सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद तीस वर्षों में, 1995 से 2025 तक जितने पौधे, या वृक्ष सरकारी स्तर पर लगे हैं, उसके हिसाब से तो ताज ट्रिपेजियम जोन अब तक अमेजन फॉरेस्ट बन जाना चाहिए था!!
बृज खंडेलवाल
उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित वृक्षारोपण मुहिमें, जिन्हें अक्सर पर्यावरणीय मील का पत्थर बताया जाता है, ज़मीनी हकीकत में बार-बार नाकाम हो रही हैं। इसका कारण है — सरकारी लापरवाही, जवाबदेही की कमी और भ्रष्टाचार का धुंधलका। 2019 में घोषित 22 करोड़ पौधारोपण लक्ष्य की तरह कई घोषणाएं सिर्फ़ काग़ज़ों पर रह गईं। रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पौधे तो लगाए जाते हैं, लेकिन देखरेख न होने से बड़ी संख्या में सूख जाते हैं, और फंड नौकरशाही की भूलभुलैया में गुम हो जाते हैं।
हरित कार्यकर्ता उंगली उठाते हैं: योजना की कमी: पौधों के लिए पॉलिथीन बैग और गुणवत्तापूर्ण नर्सरी पौधे समय से पहले ही अनुपलब्ध थे, जिससे किसानों को घटिया बीज इस्तेमाल करने पड़े जिनकी जीवन संभावना नगण्य थी।
रखरखाव भी नदारद: 2018 के महाअभियान में एक दिन में 9 करोड़ पौधे लगाए गए, लेकिन थर्ड पार्टी निगरानी के अभाव में ज़्यादातर नष्ट हो गए — “ना रहेगा बाँस, ना बजेगी बाँसुरी”।
भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं: नर्सरी और देखभाल के लिए तय बजट का ग़लत इस्तेमाल हुआ। “कागज़ी पेड़ों” ने सरकारी फाइलों में खूब हरियाली फैलाई, मगर धरातल पर सूखा ही सूखा।
यह सिलसिला जारी है — “सियासी तमाशा हावी है, पर्यावरणीय असर बेअसर।” और भ्रष्टाचार सिर्फ फाइलों में हरियाली उगाता है, धरती पर नहीं। जब तक पारदर्शिता और जन-सहभागिता को प्राथमिकता नहीं मिलेगी, यूपी की हरियाली सिर्फ़ “मृग-मरीचिका” बनी रहेगी।
ताज ट्रेपेजियम ज़ोन (TTZ) — 10,400 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अति-संवेदनशील क्षेत्र में, जहां ताजमहल और अन्य मुग़ल धरोहरें स्थित हैं, वहां हरियाली घटती जा रही है। लाखों पौधे हर साल लगाए जाने के दावों के बावजूद ज़मीन पर जंगल कटते जा रहे हैं। वजह — अंधाधुंध निर्माण, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचार, और ज़मीन की भारी किल्लत।
रिवर कनेक्ट कैंपेन सदस्य कहते हैं कि ये असफलताएं केवल पर्यावरण के लिए ख़तरा नहीं हैं, बल्कि आगरा की ऐतिहासिक धरोहरों को रेगिस्तानी हवाओं और प्रदूषण से बचाने के संतुलन को भी बिगाड़ रही हैं। बड़ी-बड़ी परियोजनाएं — जैसे एक्सप्रेसवे, फ्लाईओवर, 29.6 किमी लंबा आगरा मेट्रो रेल मार्ग और चौड़े नेशनल हाइवे — ने हरे क्षेत्रों को निगल लिया है। “यमुना और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे” के विस्तार ने जंगलों को छीन लिया है, जिससे ताजमहल अब राजस्थान की धूलभरी हवाओं के निशाने पर है। अवैध बस्तियाँ, यमुना के डूब क्षेत्र में कॉलोनियां, रेलवे ज़मीन की नीलामी — इन सबने शहर की हरियाली को कंक्रीट में बदल डाला है। कभी अग्रवन (वन क्षेत्र) कहलाने वाला शहर अब मात्र 9% से भी कम हरित आवरण के साथ खड़ा है — जो राष्ट्रीय लक्ष्य 33% से बहुत कम है।
वृक्षारोपण अभियानों का नाटक देखिए: 2023 में 45 लाख, 2024 में 50 लाख और 2025 में 60 लाख पौधे लगाए जाने का दावा किया गया — लेकिन ये आंकड़े सिर्फ़ “काग़ज़ी पेड़” हैं। कोई देखरेख नहीं, कोई सुरक्षा नहीं — तो पौधे सूख ही जाते हैं। 2021 में यमुना किनारे, नदी की तलहटी में 12,000 पौधे लगाए गए थे, जो पहली बारिश में ही बह गए — फिर भी ठेकेदार को पूरा भुगतान हुआ। “इससे बड़ा सबूत क्या चाहिए कि व्यवस्था गड़बड़ है?”
उदासीनता का आलम ये है कि सुप्रीम कोर्ट का 1996 का निर्देश कि TTZ में हरित बफर जोन बने — आज भी अनसुना है। चारों तरफ, वृंदावन से लेकर फिरोजाबाद तक पेड़ काटने की खबरें आ रही हैं। बिल्डर्स पेड़ कटवा रहे हैं, अवैध कटाई धड़ल्ले से जारी है।
सूर सरोवर बर्ड सेंक्चुरी और कीठम झील, जो अति महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी क्षेत्र हैं, वो भी अब कॉलोनाइज़रों की गिरफ्त में हैं, बताते हैं डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य।
भूमि की कमी एक बड़ी चुनौती:
फिल्म सिटी, एयरपोर्ट, मॉल — सबने ज़मीन खा ली। 60 लाख पौधों के लिए 5 मीटर की दूरी पर 1.5 लाख हेक्टेयर ज़मीन चाहिए — कहाँ से आएगी? सरकारें 1990 से हर साल करोड़ों पौधे लगाने का दावा करती हैं, पर हरियाली वहीं की वहीं — “नंबरों का घोटाला है ये!”
ग्रीन एक्टिविस्ट्स कहते हैं कि पौधे गलत मौसम और गलत जगहों पर लगाए जाते हैं, देखभाल के अभाव में सूख जाते हैं। आगरा में बंदरों की आबादी एक लाख से ज़्यादा है — प्रशासन इन्हें दोष देता है। लेकिन कार्यकर्ता कहते हैं — बंदर तो बहाना हैं, असली गुनहगार है जवाबदेही की कमी और लालच।
परिणाम भयावह हैं: बढ़ता प्रदूषण, घटती बारिश, जल-स्तर का गिरना, और ताजमहल की संगमरमर पर काले दाग। सिर्फ दयालबाग क्षेत्र में ग्रीन एरिया बढ़ा है, बाकी इलाकों में बढ़ती बसावट ने हरियाली नीली है।
पर्यावरण और हरियाली की मुहिम से जुड़े एक्टिविस्ट्स, TTZ में किए गए सभी वृक्षारोपण अभियानों की स्वतंत्र ऑडिट की मांग कर रहे हैं, ताकि गड़बड़ियाँ उजागर हो सकें और दोषियों को जवाबदेह ठहराया जा सके।