तहलका ब्यूरो
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर एक ओर राजनीतिक दलों में उत्साह, भय और सहानुभूति का माहौल देखा जा रहा है। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों का कहना है कि जो पार्टी या प्रत्याशी ईमानदारी से जनता के साथ किये गये वादे को पूरा करता है। वह चुनाव में उत्साह के साथ लोगों के बीच वोट मांगता है।और जीत हासिल करता है। जबकि जो प्रत्याशी या पार्टी लोगों को ठगती है और जनता के साथ किये गये वादे को पूरा नहीं करती है। वह जनता के बीच जाने में भय में रहती है। कि कहीं चुनाव प्रचार के दौरान ही जनता उसके साथ अभद्रता पूर्ण व्यवहार न कर दें। ऐसा ही मामला आजकल प्रदेश में एक पार्टी के साथ देखा जा रहा है। मौजूदा समय में एक ऐसा माहौल भी देखा जा रहा है। ज्यादात्तर प्रत्याशी सहानुभूति बटोरने वाला दांव खेल रहे है। वे जनता के बीच ये मैसेज लेकर जा रहे है। कि जाने-अन्जाने में गलती हो जाती है। इसलिये उन्हें मौका एक मिलना चाहिये।
बताते चलें चुनावी हवा में जो माहौल है। वो पूरी तरह से आरोपों से भरा है। प्रदेश के लोगों और स्थानीय नेताओं का कहना है कि प्रदेश हो या देश की राजनीति दोनों में जातीय गुणा-भाग का जादू सिर चढ़कर बोलता है। जैसे उत्तर प्रदेश में 2007 में जब मायावती की सरकार बनी थी तब दलितों में भी एक विशेष वर्ग का बोलबाला रहा है। वही जब 2012 में जब अखिलेश यादव की सरकार बनी । तब एम-बाई फैक्टर की जमकर चली अन्य जातियों देखती ही रही है। इसी तरह का आरोप प्रदेश की जनता और विरोधी राजनीतिक दल योगी सरकार पर लगा रहे है। कि योगी ठाकुर है। इसलिये प्रदेश में ठाकुरों का बोलवाला रहा है। बड़े-बड़े पदों पर ठाकुर –क्षत्रिय विराजमान है। प्रदेश की राजनीति के जानकार एस के खन्ना का कहना है कि जब 2000-2002 में राजनाथ सिह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब ठाकुरवाद हावी नहीं था। लेकिन योगी के शासन-काल में ठाकुरवाद हावी रहा है।फिलहाल चुनाव में आरोप –प्रत्यारोपों का दौर जारी है।