उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में केन्द्रीय बजट का कोई खास असर नहीं है। यहां के लोगों का कहना है कि बजट तो लोकलुभावन वाला हर साल पेश किया जाता रहा है। लेकिन धरातल पर उसका लाभ बड़े-बड़े लोगों को ही मिलता है। जिनके कारोबार बड़े है। यहां के लोगों को और किसानों की समस्या जस की तस है। जो समस्या है, उसका समाधान राज्य सरकार के पास ही है। लेकिन समस्या का समाधान कम ही दिख रहा है।
बताते चलें भाजपा की सरकार केन्द्र में है और प्रदेश में है। सो भाजपा के नेता तो बढ़चढ़ कर बजट की तारीफ कर रहे है और देश हित के साथ –साथ सभी वर्ग के लोगों के लिये लाभकारी वाला बजट बता रहे है।वहीं सपा, बसपा और कांग्रेस के लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार ने गरीबों के लिये कोई खास योजनायें नहीं दी है और न ही कोई राहत दी है। जो भी बजट में है वो अमीरों के लिये है। उनका कहना है कि कोरोना काल चल रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाये चौपट पड़ी है। उस पर सरकार ने कोई खास नहीं किया है।
खैर सत्ता और विपक्ष के आरोप –प्रत्यारोपों को छोड़ दें. तो किसानों और मजदूरों के साथ बेरोजगारों का कहना है कि सरकार आंकड़ों में उलझानें में माहिर है। उत्तर प्रदेश के किसान नेता व किसानों के जमीनी हकीकत जानने वालें गोविन्द दास ने बताया कि ये तो सभी जानते है कि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव है।इसलिहाज से सरकार ने जो राहत और पैकेज देने की बात की है। वो तो ठीक है।
लेकिन कोरोना काल में जिनकी नौकरी गयी है। उनके परिजनों पर क्या बीती है। उस पर सरकार ने कुछ भी नहीं किया है। जिससे जनता में नाराजगी है।उत्तर प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल को पेश किये गये बजट का कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। क्योंकि बजट से किसी को कोई खास उम्मीद नहीं थी।चुनाव में असल मुद्दा तो बिजली –पानी और सड़क साथ –साथ विकास का है। लेकिन चुनाव आते –आते ये सारे मुद्दे भी गौड़ हो जायेगे। सिर्फ व सिर्फ चुनाव ध्रुवीकरण पर आकर टिकेगा और वही जीत हार का फैसला करेगा। क्योंकि जो मौजूदा हालात में देखने को मिल रहा है।