उत्तर प्रदेश के चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आते जा रहे हैं, सभी दल नयी-नयी राजनीतिक पैंतरेबाजियाँ करके अपनी-अपनी जीत का इंतज़ाम करने में लगे हैं। मगर कई तरह की कोशिशों की के बावजूद सत्ता में मौज़ूद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गोटियाँ जब फिट नहीं बैठ रही हैं, तो उसने पुलिस को भी अपने पक्ष में काम करने के लिए लगा दिया है। पुलिस भी अपनी असली ड्यूटी के कर्तव्यों को भूलकर चुनावी मोड में आ गयी है। मगर पुलिस के कई क़दम लोगों के दिमाग़ में विद्रोह के बीज बो रहे हैं। हाल-फ़िलहाल में सहायक शिक्षक भर्ती मामले में अपनी माँगों को लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कैंडल मार्च निकाल रहे 69,000 सहायक शिक्षा अभ्यार्थियों पर पुलिस ने तब लाठियाँ भाँज डाली, जब वे परिषदीय विद्यालयों मे नियुक्ति की माँग को लेकर मुख्यमंत्री आवास की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने इन अभ्यर्थियों को दौड़ा-दौड़ाकर मारा। अब सरकार के विरोध में एक बार फिर आवाज़ों उठने लगी हैं और प्रदेश की सियासत गरमा गयी है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने वाले विपक्षी दलों के हाथ सरकार को घेरने के लिए किसानों, बेरोज़गारों, महँगाई और प्रदेश में बढ़ते अपराध के अलावा टीईटी पेपर लीक के बाद एकदम से अब यह एक नया मुद्दा मिल गया है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने ट्वीटर पर लिखा है कि भाजपा के राज में भावी शिक्षकों पर लाठीचार्ज करके विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। हम 69,000 शिक्षक भर्ती की माँगों के साथ हैं। वहीं कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), आम आदमी पार्टी (आप) ने भी सरकार को घेरा है। बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने तो लिखा है कि साहब! बात तो नौकरी की हुई थी। लाठियाँ क्यों मार रहे हो? देश के भविष्य इन बच्चों को बूट वाले जूते से मारा जा रहा है। ये अत्यंत शर्मनाक और निंदनीय है।
इससे पहले ही टीईटी पेपर लीक मामले में सरकार बुरी तरह घिरी रही है। उसे यूपीटेट की परीक्षा भी रद्द करनी पड़ी। टीईटी पेपर लीक मामले में भले ही योगी सरकार ने 23 लोगों को गिरफ़्तार करके अपनी पगड़ी बचाने की कोशिश की है, मगर इससे भगवा और सफ़ेद कुर्तों पर लगे धाँधली के दाग़ तो नहीं धुल जाएँगे! अब मामले की जाँच एसटीएफ करेगी, जबकि ऐसे मामलों में जाँच का ज़िम्मा न्यायालय की देखरेख में कम-से-कम दो-तीन जाँच संस्थाओं के द्वारा किया जाना चाहिए, ताकि जाँच में कोई धाँधली न हो। क्योंकि जब दो या तीन संस्थाएँ इतने गम्भीर मामले की जाँच करेंगी, तो वह निष्पक्ष होगी। अन्यथा या तो मामले में लीपापोती करके मुख्य दोषियों को बचा लिए जाने की आशंका रहती है या निचले स्तर के लोगों की धरपकड़ करके मामले को दबा दिये जाने की चाल चली जाती है। वैसे योगी सरकार आम लोगों के विरोध को कुचलने में पीछे नहीं है। चाहे वो किसान हों, अध्यापक हों, आँगनबाड़ी कार्यकर्ता हों या कोई और; विरोध पर लाठियाँ पड़वाना, जेल भेज देना, मक़दमे दर्ज करना, एन्काउंटर करवाना, गुण्डों से पिटवाना और मरवाना उत्तर प्रदेश की सत्ता अपना विशेषाधिकार समझती है। अपराध में नंबर वन इस प्रदेश के कथित राम राज्य को लोग गुण्डाराज के नाम से सम्बोधित करते हैं।
जो भी हो, अगर प्रदेश में चुनावी तिकड़मबाज़ी की बात करें, तो तमाम माध्यमों से प्रचार करके अपनी ही पीठ थपथपाने वाली भाजपा की योगी सरकार एक तरफ़ जीत का दावा करते हुए जमकर प्रचार-प्रसार करने में लगी है और प्रदेश को नये-नये तोहफ़े एवं पैकेज देने की घोषणाओं में लगी है। बड़ी बात यह है कि इन दिनों भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज नेता प्रचार में लगे हैं। अगर नेताओं की गिनती की जाए, तो सबसे अधिक नेता भाजपा के ही मैदान में दिख रहे हैं। मगर इसी पार्टी को हार का डर भी बहुत सता रहा है, जो कि बुख़ार की तरह बढ़ता जा रहा है। क्योंकि सरकार कुछ ग़लत कामों, अपराधों पर रोक ही नहीं लगा पा रही है। भले ही वह सभी को कोरोना वैक्सीन लगाने की मुहिम चला रही हो या राशन मुफ़्त देने के अपनी योजना पर अपनी पीठ थपथपा रही हो या हर रोज़ हज़ारों की संख्या में रोज़गार देने के दावे कर रही हो। मगर समाजवादी पार्टी उसे चुनाव में हर रोज़ डराती हुई नज़र आ रही है। क्योंकि प्रदेश में सरकार के ख़िलाफ़ जो घटनाएँ काम कर रही हैं, समाजवादी पार्टी के लिए वही घटनाएँ मज़बूती देती नज़र आ रही हैं। हालाँकि बसपा भी अब पहले से काफ़ी सक्रिय दिख रही है। कांग्रेस तो इस बार पहले से कहीं अधिक चर्चा में है ही। ऐसा लगता है कि कांग्रेस का पुराना जनाधार उसकी तरफ़ मुड़ रहा है।
इन दिनों कई मीडिया चैनल और अख़बार मतदातओं का रूख़ टटोल रहे हैं। इसी सिलसिले में एक चैनल ने अपने मतदाता सर्वे में दावा किया है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा ही भारी पड़ रही है। हालाँकि इस चैनल के सर्वे पर विश्वास करना अभी उचित नहीं है। क्योंकि भाजपा का डर इस बात की गवाही दे रहा है कि उसे इस बार प्रदेश की सत्ता आसानी से हासिल नहीं होगी। इन दिनों प्रदेश में विधानसभा चुनाव की बिसात पर कुछ अलग-अलग चुनावी गतिविधियों की स्थिति इस प्रकार है-
जातिगत सम्मेलन
अब भाजपा प्रदेश में जातिगत सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलन करके प्रत्येक ज़िले जातीय समीकरण साधने में लगी है। बता दें कि प्रदेश में 75 ज़िले हैं और इन सभी ज़िलों में पिछड़े और दलितों की आबादी का फ़ीसद दूसरी जातियों से कहीं अधिक है। भाजपा इन जातिगत सम्मेलनों के माध्यम से इन्हीं पिछड़े और दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेगी। दरअसल भाजपा जानती है कि अगर उसे पिछड़े और दलित वर्ग के मतों का सहारा एक बार फिर मिल गया, तो उसे कोई नहीं हरा सकता। केवल सवर्णों के मतों के दम पर भाजपा ही नहीं, कोई भी पार्टी प्रदेश में नहीं जीत सकती। वैसे भी न तो सवर्णों के मत किसी एक पार्टी को कभी जाते हैं और न दूसरी जातियों के। लेकिन पिछड़ों और दलितों के मत जिधर का रूख़ करते हैं, उस पार्टी की जीत आसानी से हो जाती है। हालाँकि सभी राजनीतिक पार्टियाँ जातिगत आँकड़े साधने में लगी हैं और पिछड़े और दलित मतों पर सभी की नज़र है। जातिगत सम्मेलन की शुरुआत इस बार बसपा ने ब्राह्मण सम्मेलन से की थी। इसके बाद लगभग सभी पार्टियाँ जातिवार आँकड़े साधने में लगी हैं। भाजपा इस खेल को कुछ अलग तरीक़े से खेल रही है, वह पिछड़ों के सम्मेलन में पिछड़े नेताओं को मंच पर ला रही है और दलितों के सम्मेलन में दलित नेताओं को मंच पर लाती है। उसे लगता है कि ऐसा करने से पिछड़े और दलित मतदाता उसके पक्ष में मत करेंगे।
एक पद वाली चाल
इस बार भाजपा प्रदेश की जनता में यह सन्देश देने की कोशिश कर रही है कि वह उसे ही टिकट देकर पार्टी उम्मीदवार बनाएगी, जो पहले से किसी पद का लाभ नहीं ले रहा हो। इसके लिए उसने एक व्यक्ति, एक पद की मुहिम को हवा दी है। लेकिन बताते हैं कि इस बार भाजपा से टिकट पाने की उम्मीद लिए बैठे बहुतों के दिल टूटेंगे। इसका वे भले ही इसका खुलकर विरोध न करें, मगर इसका असर विपरीत ज़रूर होगा। हालाँकि मुख्यमंत्री योगी इसका तोड़ ग्रामीण स्तर पर व्यवस्था को साधने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें वह ग्राम पंचायत स्तर पर चुने हुए प्रतिनिधियों का वेतन बढ़ाने की बात पहले ही कह चुके हैं।
नारियल से टूटी सडक़
भाजपा के दिन ख़राब चल रहे हैं या फिर वक़्त को ही कुछ और मंज़ूर है, यह तो पता नहीं; मगर यह ज़रूर है कि भाजपा सत्ता की डोर को एक हाथ सँभालने की कोशिश करती है, तो यह डोर दो हाथ टूट जाती है। कुछ दिन पहले बिजनौर में कुछ ऐसा ही हुआ। यहाँ भाजपा की विधायक ही धरने पर तब बैठ गयीं, जब सिंचाई खण्ड विभाग द्वारा बनायी गयी सडक़ के शुभारम्भ के लिए वह उद्घाटन करने पहुँचीं और नारियल फोडक़र रस्म करने के दौरान नारियल नहीं, बल्कि नयी सडक़ ही टूट गयी। इस घटना की पूरे प्रदेश में चर्चा है और विरोधी दल सरकार का मखौल उड़ा रहे हैं।
गुलाबी गैंग
इन दिनों उत्तर प्रदेश में महिलाओं का गुलाबी गैंग लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल यह गैंग आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने के लिए खड़ा हुआ है। इस गैंग से भाजपा से लेकर सपा और बसपा तक में एक डर घर कर रहा है। इस गैंग के खड़े होने के पीछे कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गाँधी का महिलाओं को चुनाव में 40 फ़ीसदी टिकट और जीतने पर नौकरियों में समान अवसर देने का वादा है। गुलाबी गैंग की नेता संपत पाल देवी कह रहीं हैं कि प्रियंका गाँधी के साथ बात यह है कि वह जो कुछ कहती हैं, करती हैं। कांग्रेस एकमात्र सरकार है, जिसने ग़रीबों, महिलाओं के बारे में बात की है।
ख़ैर, गुलाबी गैंग तो बन गया, अब देखना है कि यह गुलाबी गैंग कांग्रेस के लिए क्या बड़ा कर पाता है?
बाक़ी चार राज्यों की स्थिति
जबसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर- इन पाँच राज्यों के चुनाव की घोषणा हुई है, देश में सबसे ज़्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश की ही है। इसकी वजह यह है कि उत्तर प्रदेश की केंद्र की सत्ता में सबसे अहम भूमिका का होना है। मगर बाक़ी राज्यों की स्थिति भी जानना ज़रूरी है, जो इस प्रकार है-
उत्तर प्रदेश की ही तरह उत्तराखण्ड में भी भाजपा की सरकार है और जमकर प्रचार-प्रसार कर रही है। यहाँ तीन मुख्य पार्टियाँ मैदान में हैं- भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी। भाजपा को यहाँ भी उत्तर प्रदेश की तरह ही अनेक चुनौतियाँ हैं और उसे यहाँ भी हार का डर सता रहा है। यही वजह है कि उत्तराखण्ड का भी दौरा प्रधानमंत्री कर रहे हैं। इसी तरह गोवा में भाजपा की सरकार है। वहाँ उसे सत्ता जाने का उतना डर नहीं सता रहा है। मगर गोवा में भी उसे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से बराबर चुनौती मिल रही है।
पंजाब में भाजपा की दाल गलना मुश्किल है। क्योंकि वहाँ कांग्रेस की साख मज़बूत है। वहाँ कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी को काफ़ी तवज्जो मिल रही है। अकाली दल भी वहाँ की स्थानीय पार्टी है; मगर राज्य में उसका भी कांग्रेस के बराबर जनाधार नहीं है। भाजपा की वहाँ कोई गिनती नहीं है।
इसी तरह मणिपुर में भी भाजपा को एक बार फिर उम्मीद है कि उसकी सरकार बनेगी। वहाँ दूसरी कोई बड़ी पार्टी कांग्रेस के अलावा है भी नहीं। मगर भाजपा को इस बार वहाँ भी झटका लग सकता है। पिछली बार मणिपुर में कांग्रेस की सबसे ज़्यादा सीटें आयी थीं; मगर भाजपा ने वहाँ तीन पार्टियों की मदद से सरकार बना ली। इस बार अगर वहाँ भाजपा की हारी, तो कांग्रेस को सत्ता मिल सकती है।