बढ़ रही हैं सत्तापक्ष की मुश्किलें
उत्तर प्रदेश में सियासत रोज़ करवट बदलती नज़र आ रही है। हर रोज़ एक नयी मुसीबत और नये-नये हंगामों के चलते न सत्तपक्ष चैन से बैठ पा रहा है और न विपक्षी दलों को क़रार आ पा रहा है। दोनों ही तरफ़ कुर्सी को पाने की तड़प इस क़दर है कि दोनों ही तरफ़ के लोग एक-दूसरे को दबाने और जनता में एक-दूसरे की छवि का ख़राब पहलू उजागर करने की कोशिश में परेशान हैं। इसकी वजह यह भी है कि योगी सरकार में एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएँ अब तक घट चुकी हैं, जिन पर विपक्षी दलों को गरजना वाजिब है।
जनता ने भी योगी सरकार की ख़ामियों को काफ़ी क़रीब से देखा, फिर भी ख़ामोश रही। इसकी एक वजह यह भी है कि संख्या में ज़्यादा हिन्दुओं ने राम मंदिर के निर्माण का श्रेय योगी को देते हुए उनकी ओर झुकाव बरक़रार रखा है। यही वजह रही कि योगी सरकार एक अहं में घिर गयी और सत्ता के नशे में उसे अपनी ही ग़लतियाँ नज़र नहीं आ रहीं। प्रदेश में सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों के हनन से लेकर दबंगों के ख़िलाफ़ बोलने वालों की हत्याओं, बलात्कारों और उसके बाद कोरोना महामारी में कीड़े-मकोड़ों की तरह लोगों के मरने के बावजूद लोगों ने धैर्य नहीं खोया। परन्तु इस बार पुलिस द्वारा होटल में जाकर तलाशी के नाम पर कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता (36) की हत्या और उसके बाद एक मंत्री के बेटे द्वारा अपनी गाड़ी से किसानों को कुचल देने की घटना ने पुराने जख़्मों को भुला बैठे लोगों को फिर से ग़ुस्से से भर दिया है। विशेषतौर पर किसानों की कार से कुचलकर की गयी हत्या ने जहाँ सत्ता पक्ष को बेतहाशा डरा दिया है; वहीं विपक्षी दलों को कुर्सी की राह बहुत आसान दिखने लगी है। विपक्ष को नेताओं की गिरफ़्तारी ने और मज़बूत कर दिया है। इसमें प्रियंका गाँधी की गिरफ़्तारी से उनका पलड़ा कुछ ज़्यादा ही भारी हुआ है। हादसे वाली जगह का दौरा करने और पीडि़तों से मिलने जाने की उनकी ज़िद और उन्हें वहाँ न जाने देने की सरकार की हनक ने उनकी गिरफ़्तारी को अंजाम दे डाला, जिससे लोग प्रियंका गाँधी और कांग्रेस के पक्ष में आने शुरू हो गये। परन्तु सत्तपक्ष का यह अहं ही कहा जाएगा कि उसने मृतक किसानों के परिवारों को 45 लाख का मुआवज़ा देने की घोषणा करके और उनकी माँगें मानकर ऐसे समझ लिया कि मानों कुछ हुआ ही न हो। इसी वजह से आरोपियों पर कार्रवाई करने के बजाय वह लम्बे समय तक अकड़ में तनी रही और घटनास्थल पर जाने की कोशिश करने वाले विपक्षी दलों के नेताओं की गिरफ़्तारी में लग गयी। शंका है कि यही अकड़ कहीं भारतीय जनता पार्टी की नाव न डुबो दे। क्योंकि किसान आन्दोलन के चलते किसानों का ग़ुस्सा पहले ही भाजपा के प्रति कम नहीं था, उस पर गन्ना किसानों को योगी ने नाख़ुश कर दिया और इसके बाद कार से आन्दोलनकारी किसानों को कुचलने की घटना ने लोगों में भी आक्रोश ही पैदा किया है। अब एक ऐसा धड़ा, जो अन्दर-ही-अन्दर कुछ गरम और कुछ नरम वाली स्थिति में था; लगभग भड़कने लगा है और सरकार की ख़ामियों पर तीखी नज़र फेरकर ज़ुबानी हमले कर रहा है।
भाजपा में भी विरोध
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भले ही अपनी तारीफ़ में क़सीदे पढ़ रही हो, परन्तु हक़ीक़त यह है कि विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि भाजपा के लोग भी अपनी ही सरकार के विरोध में बोल रहे हैं। लखीमपुर खीरी में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत को लेकर घिरी योगी सरकार पर पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गाँधी ने निशाना साधा है। वरुण के अपनी ही सरकार के विरोध में मुखर होने से भाजपा में दो गुट साफ़ नज़र आने लगे हैं। हालाँकि वरुण गाँधी के अलावा कुछ भाजपा नेता दबी ज़ुबान से सरकार की कमियों की निंदा कर रहे हैं। यह कोई नयी बात नहीं है, पिछले समय में कई भाजपा विधायकों ने अपनी ही सरकार पर हनन के आरोप लगाये। वरुण गाँधी भी पहली बार विरोध नहीं कर रहे हैं। उन्होंने सरकार की कमियों और ग़लत नीतियों के विरोध में हमेशा ही बाग़ी तेवर अपनाये हैं और हर बार उन्होंने योगी आदित्यनाथ को चिट्ठियाँ लिखकर उनकी सरकार की कमियाँ उजागर की हैं। चाहे वो लखीमपुर खीरी का मामला हो, चाहे गन्ने के दामों में 25 रुपये प्रति कुंतल की मामूली बढ़ोतरी हो। उन्होंने हर बार सरकार की नीतियों की खुली आलोचना करते हुए विरोध प्रकट किया है। यहाँ तक वरुण गाँधी किसानों के पक्ष में साफ़तौर पर खड़े नज़र आये हैं। उन्होंने तो मुज़फ़्फ़रनगर में हुई महापंचायत को लेकर किसानों का समर्थन तक किया था। लखीमपुर खीरी मामले से जुड़ा एक वीडियो ट्वीट करके वरुण गाँधी ने लिखा कि लखीमपुर खीरी में किसानों को गाडिय़ों से जानबूझकर कुचलने का यह वीडियो किसी की भी आत्मा को झकझोर देगा। पुलिस इस वीडियो का संज्ञान लेकर इन गाडिय़ों के मालिकों, इनमें बैठे लोगों और इस प्रकरण में संलिप्त अन्य व्यक्तियों को चिह्नित कर तत्काल गिरफ़्तार करे। अपनी ही सरकार के विरोध में उठे वरुण गाँधी के इन शब्दों ने लाखों लोगों को एक ही झटके में योगी सरकार के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया, जिससे योगी सरकार और शायद केंद्र सरकार भी उनसे ख़ासी नाराज़ है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सूची से वरुण गाँधी और उनकी माँ मेनका गाँधी को हटाना इसका संकेत है।
क्यों झुकी सरकार?
लखीमपुर खीरी कांड पर किसी भी स्थिति में अहं के नशे में चूर योगी सरकार को आख़िरकार कुछ हद तक झुकना पड़ा। परन्तु सवाल यह उठने लगे हैं कि किसानों को गाड़ी तले रौंदने की साज़िश के बाद कड़े तेवर अपनाने वाली योगी सरकार इतनी कैसे झुक गयी कि उसने विपक्षी नेताओं, ख़ासतौर पर राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को लखीमपुर जाने की इजाज़त दे दी? सरकार ने हर दल के पाँच नेताओं को दो पीडि़त परिवारों से मिलने की अनुमति देते हुए अपने रवैये में नरमी बरती। लेकिन तब तक लोगों में यह सन्देश चला गया कि पीडि़तों के आँसू पोंछने के बजाय सरकार तानाशाही रवैया अपना रही है। सरकार के कुछ हद तक झुकने की वजह विपक्षी दलों और अपने कुछ नेताओं का सरकार के विरोध में खड़ा होना नहीं है, बल्कि लोगों में सरकार के प्रति पैदा हुआ ग़ुस्सा है। पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर योगी सरकार के विरोध में ऐसी हवा चली कि योगी सरकार को हार का डर सताने लगा और वह नरम रूख़ अख़्तियार करने पर मजबूर हुई।
योगी की मुश्किलें
योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें उनके मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद से बढऩे लगी हैं। वैसे तो जब प्रदेश में विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हुई थी, तभी उन्हें मुख्यमंत्री चेहरा न बनाये जाने की चर्चा थी और सरकार की नाकामियों के चलते मुख्यमंत्री पद से उनकी छुट्टी भी लगभग तय मानी जा रही थी। केंद्रीय नेतृत्व से इसके संकेत भी थोड़े-थोड़े मिलने लगे थे, परन्तु अचानक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की तरफ़ से निर्देश आये कि योगी आदित्यनाथ ही अगले मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे। यह निर्देश आते ही केंद्रीय नेतृत्व के सुर बदल गये और उसने सहर्ष ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर योगी के नाम की घोषणा कर दी। परन्तु इसके बाद से प्रदेश में हो रही एक के बाद एक बड़ी घटनाओं ने योगी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सम्भव है कि 300 से अधिक सीटें जीतना उनके लिए मुश्किल हो। परन्तु यह भी सच है कि उत्तर प्रदेश की जनता अभी तक किसी दूसरे दल के नेता पर भी उतना भरोसा नहीं जता पा रही है, जितना कि किसी दल को सत्ता में आने के लिए चाहिए होता है।
बाक़ी दलों की स्थिति
उत्तर प्रदेश के चुनाव में हाथ आजमाने वाले बाक़ी दलों की स्थिति की समीक्षा करें, तो अखिलेश यादव उतने भाजपा से परेशान नहीं हैं, जितने कि दूसरे दलों से हैं। छोटे दलों से गठबन्धन की उनकी मंशा पर पानी फिर चुका है और कांग्रेस पहले से कुछ मज़बूत होती दिख रही है। इसके अलावा बसपा के अपने मतदाता पक्के हैं, तो रालोद भी पहले से काफ़ी मज़बूत दिख रही है, जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसी दूसरी पार्टी के पैर जमना आसान नहीं हैं। ऊपर से आम आदमी पार्टी ने भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इस वजह से अखिलेश यादव को छोटे दलों से काफ़ी ख़तरा लग रहा है। क्योंकि वह जानते हैं कि भाजपा के विरोध में उतरे लोगों और अपने पक्ष के लोगों के समर्थन से उनकी सत्ता में वापसी पक्की है; परन्तु छोटे-छोटे दल उनका खेल बिगाड़ सकते हैं। इसके अलावा उनके चाचा शिशुपाल यादव भी उनके विरोध में उतरे हुए हैं, जो कि उनके लिए ठीक नहीं है। कांग्रेस इस बार पहले से कहीं बेहतर स्थिति में रह सकती है, जिसका श्रेय प्रियंका गाँधी को जाएगा। इसके अलावा रालोद, बसपा भी ठीक-ठाक स्थिति में रह सकती हैं। दूसरे छोटे दल और निर्दलीय भी कहीं-कहीं उभरकर आ सकते हैं। इस तरह इस बार लगता है कि स्थिति त्रिकोणीय बन सकती है, जिसमें सबसे ऊपर सम्भवत: भाजपा या सपा में कोई एक दल रहेगा। उसके बाद तीसरे नंबर पर कांग्रेस या रालोद के आने की उम्मीद है। अगर चुनावी परिणाम इसी तरह के निकले, तो सरकार बनाने में सपा कामयाब हो सकती है। क्योंकि बाक़ी दल भाजपा को समर्थन देने के बजाय सपा के साथ सरकार बनाना पसन्द करेंगे। योगी आदित्यनाथ को यह बात बहुत अच्छी तरह पता है कि उनकी राह इस बार आसान नहीं है और यह चुनाव उनके जीवन की कठिन परीक्षा तो है ही, मुख्यमंत्री पद की कुर्सी तक जाने की राह भी काँटों भरी है। इसके लिए कहीं-न-कहीं सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार भी वो ख़ुद ही हैं।