उत्तर प्रदेश की सियासत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से गरमा गयी है। उनके दौरे से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं में जोश तो भरा ही है, योगी का सीना भी चौड़ा हो गया है। अब प्रदेश में भाजपा नेता और कार्यकर्ता पूरी ताक़त से चुनावी मैदान में हैं। इसकी वजह यह है कि गृह मंत्री भाजपा पर पूरा ध्यान केंद्रित करते हुए पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में टीम भावना से काम करने को कह गये। उन्होंने योगी की जमकर तारीफ़ की और स्पष्ट कर दिया कि अब पार्टी के लोग विपक्ष को परिवारवाद और क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर घेरें। इसके साथ ही उन्होंने अपने सहयोगी दलों को भी गठबन्धन का संकेत देते हुए साफ़ कर दिया कि पार्टी में उन्हें पूरा मान-सम्मान मिलेगा।
केंद्रीय गृहमंत्री ने यह भी संकेत दिया है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा गुजरात की थीम पर लड़ेगी। जैसा कि सब जानते हैं कि गुजरात में हर बार भाजपा एंटी इनकमबेंसी की काट के लिए पुराने विधायकों का टिकट काटकर नये चेहरे पर दाँव लगाती है। इस बार उत्तर प्रदेश में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संकेत से यही ज़ाहिर है, जिसे हमने पिछले लेख में भी उजागर किया था।
माना जा रहा है कि इस बार भाजपा से 100 से ज़्यादा मौज़ूदा विधायकों के टिकट कट सकते हैं और उनकी जगह रुतवेदार नये चेहरों को मैदान में उतारा जा सकता है। लेकिन इससे यह भी सम्भव है कि भाजपा के मौज़ूदा विधायक और उनके समर्थक पार्टी से नाराज़ हो जाएँ और किसी और पार्टी में खिसक जाएँ। यहाँ ध्यान दिला दें कि 2017 में भाजपा ने बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दम पर विधानसभा चुनाव लड़ा था और प्रदेश की 403 सीटों में से बहुत बड़े बहुमत के साथ 312 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया था। मगर इस बार प्रदेश में पार्टी योगी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है और 300 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य बना चुकी है। इसके पीछे संघ की भी बड़ी भूमिका है। क्योंकि संघ की वजह से भाजपा में पक्के मतदाताओं की संख्या काफ़ी है, जो कभी भी कहीं नहीं जाएँगे। इधर, चुनाव की रणनीति प्रधानमंत्री ने स्वयं तय की है। 16 अगस्त से उनके नये मंत्रिमंडल में नियुक्त मंत्री अपने-अपने राज्यों में प्रचार कर रहे हैं।
कांग्रेस की रणनीति
प्रियंका गाँधी के पूरी तरह उत्तर प्रदेश में डेरा डाल लेने के बावजूद अभी प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति कमज़ोर ही कही जाएगी। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में निडर, युवा और नये दावेदारों पर दाँव लगाने की रणनीति बनायी है और क़रीब 38 नेताओं की सूची जारी की है। माना जा रहा है कि कांग्रेस किसी भी हाल में प्रदेश में भाजपा को हराने की काट ढूँढ रही है, जिसके लिए प्रियंका गाँधी मैदान में उतर चुकी हैं।
कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हो न हो, प्रियंका गाँधी प्रदेश में मुख्यमंत्री चेहरा हैं। क्योंकि कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी राजेश तिवारी यह दावा कर चुके हैं। कांग्रेस की इस रणनीति से भाजपा में एक डर तो बैठा है। हारने का हो न हो, लेकिन सीटें कम होने का तो पक्का है। हालाँकि कांग्रेस का जनाधार पिछले दो दशक में धीरे-धीरे बहुत खिसक चुका है और अब लोग उसमें सुपर नेतृत्व तलाश रहे हैं। अगर प्रियंका पर लोग भरोसा कर गये, तो कोई बड़ी बात नहीं कि कांग्रेस के दिन फिर जाएँ। इसके अलावा कांग्रेस भाजपा से रूठे लोगों को भी टिकट देकर अपनी शाख मज़बूत कर सकती है, जैसा कि उसने पंजाब में किया। क्योंकि भाजपा का किला घर के भेदी ही ढहाएँ, तो ही वह ढह सकता है। कहने का लब्बोलुआब यह है कि कांग्रेस को इस समय अपने अन्दर मज़बूती बनाने के साथ-साथ भाजपा में अन्दरखाने पड़ी फूट का भरपूर फ़ायदा उठाना चाहिए।
समाजवादी पार्टी की स्थिति
समाजवादी पार्टी (सपा) को प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने में मुश्किल तो बहुत है, मगर यह नामुमकिन नहीं है। जिस तरह से उसने कुछ ही समय पहले हुए ज़िला पंचायत के त्रिस्तरीय चुनावों में भाजपा को पटखनी दी, उससे यह साफ़ है कि लोग अब उसे एक बड़े विकल्प के रूप में देख रहे हैं। मगर सपा के लोगों को डर है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में कोई ऐसा दाँव न चल जाए, जो उसने ज़िला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनावों में चला था। पहले भी गठबन्धन करके चुनाव लड़ चुके सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दूसरे दलों को संकेत दिया है कि सपा के दरवाज़े गठबन्धन के लिए खुले हैं। लेकिन उन्होंने अपनी इस बात में छोटे दलों की बात कही।
इसका मतलब अखिलेश यादव भाजपा को छोडक़र बाक़ी को सपा से अब छोटा दल मानने लगे हैं और भाजपा के ख़िलाफ़ लड़ रहे दलों के साथ-साथ निर्दलीयों को भी गठबन्धन का न्यौता दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कह डाला कि 2022 के चुनाव में कई छोटी पार्टियाँ उनके साथ आएँगी। लेकिन उन्हें अपने इस समय के अनुमानित 18 से 22 फ़ीसदी वोट बैंक को खींचकर 35 फ़ीसदी करना होगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर अखिलेश को मुस्लिमों ने वोट दे दिया, तो वह जीत सकते हैं।
बहुजन समाज पार्टी
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती इस बार अपने निश्चित वोट बैंक के अलावा ब्राह्मणों को अपने ख़ेमे में करने की रणनीति बना ही चुकी हैं। मगर इस बार वह सन् 2007 की तरह पिछड़ा वर्ग को भी लुभाने का प्रयास करेंगी। वह इस दाँव में जीत के लिए पिछड़ा वर्ग से प्रत्याशी मैदान में उतारेंगी। वह ब्राह्मणों को टिकट देकर उन्हें अपने ख़ेमें में लाकर कामयाब होना चाहती हैं। क्योंकि ब्राह्मण भाजपा से नाराज़ हैं। अर्थात् बसपा की मुखिया प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाह रही हैं। क्योंकि वह जानती हैं कि उनकी जीत सन् 2007 के फार्मूले से ही सम्भव है, जिसकी शुरुआत वह कर चुकी हैं।
सन् 2017 में तो उन्होंने 100 से अधिक मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देकर धोखा खा लिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2007 में बसपा के पक्ष में 30 फ़ीसदी वोट पड़ा था, जो कि उसकी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त साबित हुआ। लेकिन इस बार उसके खाते में फ़िलहाल 13 से 14 फ़ीसदी वोट है, जिसे मायावती अपनी रणनीति से बढ़ाने में लगी हैं।
अन्य पार्टियाँ
इस बार उत्तर प्रदेश में कई छोटे-बड़े दल भाजपा को हराने की कोशिश में रहेंगे, मगर कुछ दल भाजपा के ही घटक हैं। इनमें ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल मुख्य रूप से शामिल हैं। यह भी ज़ाहिर है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी भाजपा की ही बी पार्टी बनकर बंगाल की तरह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के मैदान में उतर रही है। लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि भारतीय समाज पार्टी और अपना दल को भाजपा ने उनकी शर्तों पर शामिल किया है। क्योंकि ये दोनों ही पार्टियाँ कुछ समय पहले तक भाजपा से नाराज़ चल रही थीं, जिन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देकर उसने मनाया है।
इसके अलावा प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) जैसी पार्टी भी है, जिसका पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ख़ासकर मुज़फ़्फ़रनगर, बाग़पत, मेरठ, मथुरा और इन ज़िलों के आसपास के इलाक़ों में ठीकठाक दबदबा है। भले ही उसने पिछले चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, मगर इस बार उसके पक्ष में काफ़ी वोट जाएँगे। चर्चा है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिहार की भाजपा की सहयोगी पार्टी जद(यू)भी 200 सीटों पर मैदान में उतरेगी। मगर निर्दलीयों को भी कम नहीं आँकना चाहिए। क्योंकि उत्तर प्रदेश में निर्दलीय प्रत्याशी ठीकठाक संख्या में जीत हासिल करते हैं। इस बार भी काफ़ी निर्दलीयों के जीतने की उम्मीद है।
मेडिकल कॉलेज पर घमासान
उत्तर प्रदेश में इन दिनों मेडिकल कॉलेज और मूर्तियों पर घमासान मचा हुआ है। दरअसल केंद्र सरकार ने मेडिकल कॉलेज में यूजी और पीजी की पढ़ाई में पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमज़ोर अगड़ों को आरक्षण देने की बात कही है। अर्थात् भाजपा ने इस बार पिछड़ा वर्ग और अगड़ा वर्ग के कमज़ोर तब$के के आगे आरक्षण का चारा फेंका है। भाजपा के इस दाँव पर दूसरी पार्टियाँ हमलावर हो रही हैं और इसका काट ढूँढ रही हैं। इसके अलावा प्रदेश की योगी सरकार ने नौ मेडिकल कॉलेजों की सौगात प्रदेश को देने का वादा किया है।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज तो समाजवादी पार्टी की देन हैं, जिन्हें लेकर भाजपा दाँव खेल रही है। उनका यह भी कहना है कि विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ छ:-सात महीने ही बचे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जिस सरकार ने साढ़े चार साल में शिक्षा पर इतना ध्यान नहीं दिया, वह इतने कम समय में नौ मेडिकल कॉलेज बनाएगी, यह बात समझ से परे है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार पहले से प्रदेश में खड़े मेडिकल कॉलेजों के नाम बदल रही है, जिसका विरोध भाजपा में ही ख़ूब हो रहा है। सच तो यह है कि भाजपा के प्रदेश सिपहसालार और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाम बदलू हैं, काम करने वाले नहीं। क्योंकि काम करने वाले नाम बदलने में समय नहीं गँवाते।