उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर अभी तक जो समीकरण समाजवादी और भाजपा के बीच बन रहे थे। साथ ही चुनावों की तारीखों की घोषणा के बाद अब बसपा और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने भी कमर कस ली है।
बतातें चले, बसपा के नेताओं का मानना है कि उनका दलित और ब्राहमण वोट फिर से एक हो रहा है। जबकि कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने सपा और भाजपा पर कई बार सियासी हमला कर बता दिया है। जब से कांग्रेस की सरकार नहीं बनी है तब से उत्तर प्रदेश में दंगा और लूटपाट–कब्जा का चलन बढ़ा है।
कांग्रेस का मानना है कि देश में बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर जनता दुखी है। इसलिये कांग्रेस से जनता ने आस लगायी है। भाजपा का मानना है भाजपा छोड़ अन्य पार्टियां मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में जोर लगा रही है। यानि मुस्लिम वोटों का धुर्वीकरण करेगी। जबकि भाजपा मुस्लिम मतदाता की तरह हिन्दू धुर्वीकरण पर जोर दे रही है। यानि की समानान्तर धुर्वीकरण होगा।
मौजूदा समय में राजनीतिक दल इस बात पर जोर दें रहे है कि राजनीति अपने दम पर और अकेले ही अपनी पार्टी के नाम पर की जाये। अगर किसी कारण बस किसी भी दल को बहुमत में कुछ कमी रह जाती है तो चुनाव बाद भी समझौता हो सकता है।
यानि चुनाव बाद का गठबंधन हो सकता है। इसलिय राजनीतिक दल अकेले दम पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे है। उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार पवन कुमार का कहना है कि कोरोना काल चल रहा है। पहले तो ये तय नहीं हो रहा है कि चुनाव में रैली होगी या नहीं, जिस प्रकार चुनाव आयोग ने आदेश दिये है कोरोना को देखते हुये।
इससे तो स्पष्ट है कि प्रदेश में मतदाता को पहचानना मुश्किल होगा कि मतदाता किस के पक्ष में है। इसलिये चुनाव जब चरम पर होगा। तभी कुछ कहा जा सकता है। फिलहाल चुनाव में कड़ा संघर्ष है।