उत्तर प्रदेश में सरकारी विद्यालयों की दशा किसी प्रदेशवासी से छिपी नहीं है। योगी आदित्यनाथ सरकार इन विद्यालयों के सुधार में तो लगी है मगर बड़े अनोखे रूप से। योगी आदित्यनाथ सरकार का यह अनोखा रूप सरकार के प्राइमरी जूनियर विद्यालयों को निजी विद्यालयों को गोद देने का है। योगी आदित्यनाथ सरकार का कहना है कि शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने के लिए उसने एक प्रयोग किया है। इसका सकारात्मक नतीजा शीघ्र ही देखने को मिलेगा।
एक निजी विद्यालय के संचालक एवं प्राधानाध्यक प्रेमपाल गंगवार कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने सरकारी विद्यालयों को गोद देने का जो निर्णय किया है, उससे निजी विद्यालयों के संचालकों को प्रसन्नता है कि उन्हें सरकार विद्यालयों को भी संचालित करने का अवसर प्राप्त होगा। उनका कहना है कि प्रदेश में निजी विद्यालयों के विद्यार्थियों का ज्ञान सरकारी विद्यालयों के बच्चों के ज्ञान से कहीं अच्छा है। निजी विद्यालयों के बच्चों का परीक्षा परिणाम भी सरकारी विद्यालयों के बच्चों से अच्छा आता है। ऐसे में अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निजी विद्यालयों पर सरकारी विद्यालयों में सुधार का भरोसा जताया है, तो यह निजी विद्यालयों के संचालकों एवं अध्यापकों के लिए गौरव की बात है।
नाम प्रकाशित न करने प्रार्थना करते हुए एक सरकारी प्राइमरी विद्यालय के अध्यापक ने कहा कि सरकार जो भी करे, उसे ठीक कहना सरकारी अध्यापकों की मजबूरी तो हो सकती है, मगर कोई भी सरकारी अध्यापक सरकार के इस निर्णय से प्रसन्न नहीं है। क्योंकि सरकारी अध्यापकों को सरकार निकम्मा समझ रही है, तभी उसने निजी विद्यालयों के हाथों में सरकारी विद्यालय सौंपने का निर्णय लिया है। यह तो सरकारी अध्यापकों की योग्यता एवं शिक्षा पर उँगली उठाने जैसी बात है। इसके अतिरिक्त सरकारी अध्यापकों में असुरक्षा की भावना जन्म ले रही है कि कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में योगी सरकार सरकारी विद्यालयों में रिक्त पड़े पदों पर भर्तियां ही न करे तथा सरकारी अध्यापकों को भी ठेंगा दिखा दे।
विदित हो कि योगी आदित्यनाथ सरकार सरकारी प्राइमरी जूनियर विद्यालयों को गोद लेने का आदेश जारी कर चुकी है। सूत्रों की मानें तो बेसिक शिक्षा परिषद् के विद्यालयों के कायाकल्प के लिए सरकार अब निजी कम्पनियों के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी, सामुदायिक सहयोग, प्रतिष्ठित एवं इच्छुक व्यक्तियों से सहयोग ले सकती है। इसका एक अर्थ यह निकलता है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के पास अब विद्यालय चलाने के लिए बजट नहीं है अथवा उसकी नीयत इन विद्यालयों के निजीकरण की है। क्योंकि अगर निजी विद्यालय सरकारी विद्यालयों को गोद लेंगे, तो भविष्य में सरकारी विद्यालयों में पढऩे वाले बच्चों को भी निजी विद्यालयों की तरह ही मोटा शुल्क देकर पढ़ाई करनी पड़ सकती है।
अगर उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों पर दृष्टिपात करें, तो पता चलता है कि इन विद्यालयों में पूर्ण सुविधाओं का नितांत अभाव है। कई विद्यालय भवन जर्जर अवस्था में हैं। अधिकतर विद्यालयों में बच्चों के बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है। बच्चियों के लिए शौचालयों की व्यवस्था भी कई विद्यालयों में बहुत अच्छी नहीं है। अध्यापकों की भी सरकारी विद्यालयों में कमी है। मिड-डे मील में पौष्टिकता की कमी के अतिरिक्त भोजन विवरणिका के अनुसार बच्चों के भोजन की व्यवस्था भी अधिकतर विद्यालयों में अच्छी नहीं है। इस बारे में कई समाचार भी प्रकाशित हो चुके हैं।
पिछले महीने ही उत्तर प्रदेश के कुछ सरकारी विद्यालयों द्वारा रद्दी के भाव 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से किताबें बेचने का आरोप भी लगा था। इसके अतिरिक्त सरकारी विद्यालयों के बच्चों को पाठ्य सामग्री का वितरण भी पूरी तरह नहीं हो सका है। पिछले महीने जब बच्चों को पाठ्य सामग्री वितरण न होने के समाचार प्रकाशित हुए, तो सरकार ने दावा किया कि 92 प्रतिशत किताबें वितरित हो चुकी हैं, केवल आठ प्रतिशत किताबों का वितरण शेष है।
अब सरकारी विद्यालयों को गोद लेने का निर्णय लेते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार ने 27 सुविधाओं की सूची जारी की है। प्रश्न यही है कि निजी विद्यालयों के संरक्षण में जाने पर क्या सरकारी विद्यालयों में सुधार हो सकेगा?