क्या कभी सत्ता से कांग्रेस का वनवास खत्म होगा? क्या आने वाले समय में कांग्रेस सत्ता में वापसी होगी? ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब शायद किसी के पास नहीं है। लेकिन अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बूथ मज़बूत करने की मुहिम से लगता है कि यहाँ कांग्रेस का वनवास खत्म हो सकता है। कांग्रेस ने प्रदेश में 30 साल बाद ब्लॉक इकाइयों के गठन का काम शुरू कर दिया है। बड़ी बात यह है कि यहाँ पार्टी को नये सिरे से खड़ा करने का काम कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा के निर्देशन में चल रहा है। माना जा रहा है कि उनका मकसद बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को जोड़कर पार्टी को मज़बूती प्रदान करना है। पिछले महीने पूरे प्रदेश में करीब दो हज़ार 300 से अधिक ब्लॉक इकाइयों का गठन किया जा चुका है।
प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू दिसंबर से ही प्रदेश का सिलसिलेवार दौरा कर रहे हैं। इसके लिए वह 16 ज़िलों की न्याय पंचायत स्तर की बैठकों में शामिल होकर ब्लॉक कांग्रेस समितियों और न्याय पंचायत समितियों के गठन में शामिल हो रहे हैं। उनका दावा है कि ब्लॉक स्तर पर 21 सदस्यों की समितियों का गठन किया जा रहा है और जल्द ही प्रदेश की सभी आठ हज़ार न्याय पंचायतों में पार्टी इन समितियों के गठन प्रक्रिया को अंजाम तक पहुँचा देगी। समितियों के गठन में तेज़ी लाने और अधिक-से-अधिक लोगों को पार्टी से फिर से जोडऩे के लिए आगामी दिनों में हर ज़िले में 15 दिवसीय प्रवास की योजना बनायी जा रही है। इसके अंतर्गत पार्टी के पदाधिकारी अपने-अपने ज़िलों में संगठन की निर्माण प्रकिया को मज़बूती देने के लिए अन्तिम रूप देंगे। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी का लक्ष्य प्रदेश की सभी 60 हज़ार ग्राम सभाओं पर ग्राम कांग्रेस समितियों का जल्द-से-जल्द गठन पूरा करना है। हालाँकि जानकारों का कहना है कि कांग्रेस ने ब्लॉक स्तर पर इकाइयों का गठन भाजपा की तर्ज पर करना शुरू किया है; लेकिन कांग्रेस के समर्थकों का कहना है कि भाजपा जब देश में कहीं नहीं थी, तबसे ही कांग्रेस बूथ मज़बूत करने के लिए ब्लॉक और ग्राम स्तर पर कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ती रही है। बहरहाल जो भी हो, कांग्रेस के लोग इस मुहिम को पार्टी की डूबी हुई नैया को फिर से पार लगाने की पहल मान रहे हैं और इसे कांग्रेस की मौन क्रान्ति बता रहे हैं।
प्रदेश पार्टी इकाई का कहना है कि भाजपा की नीतियों और निरंकुश शासन से तंग लोग इस मुहिम से बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं। बड़ी बात यह है कि पार्टी में सलाहकार के रूप में उपेक्षित बुजुर्ग नेताओं को शामिल किया जा रहा है, ताकि उनके अनुभवों को भुनाया जा सके। राजनीति के जानकार कहते हैं कि जब तक कांग्रेस में अन्दरखाने जिस तरह कलह चल रहा है, अगर उसे खत्म नहीं किया गया, तो ब्लॉक इकाइयों के गठन का उतना फायदा नहीं मिलेगा, जितना कि मिलना चाहिए। इसके अलावा पार्टी को गाँवों के साथ-साथ शहरों में भी खुद को मज़बूत करना चाहिए। कुछ जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को मीडिया में लगातार बने रहना चाहिए और सरकार की ऐसी नीतियों पर घेरे रहना चाहिए, जो देशहित में नहीं हैं।
बता दें कि आज़ादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश में 47 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस प्रदेश में 21 बार सरकार बना चुकी है। लेकिन प्रदेश में सन् 1989 से कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकी है। अब लोगों का कहना है कि केंद्र में कांग्रेस की वापसी का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही खुलेगा। अगर यह बात सही साबित होती है और 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में वापसी होती है, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बने या न बने, लेकिन यह तय है कि उसे बड़ा बहुमत ज़रूर मिलेगा। इसकी उम्मीद इसलिए भी है, क्योंकि देश भर में भाजपा का विरोध बढ़ता जा रहा है। इन दिनों चल रहे किसान आन्दोलन ने इस विरोध को और भी धार देनी शुरू कर दी है। कांग्रेस के समर्थक राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर प्रियंका गाँधी के हाथ में उत्तर प्रदेश की कमान रही, तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। वहीं कुछ लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस को बिहार में अपनी ढीली गतिविधियों से करारी हार मिली है, इससे उसे सीख लेनी चाहिए और उत्तर प्रदेश में इस तरह की लापरवाही से बचना चाहिए। सवाल यह है कि ब्लॉक स्तर पर मज़बूत करने के बाद 2022 में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री चेहरा किसे बनाएगी? क्योंकि अगर 2022 में कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री का कोई बेहतर चेहरा नहीं होगा, तो एक बार फिर उसे प्रदेश की सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि अगर खुद प्रियंका गाँधी प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने का ऐलान कर दें, तो फिर भाजपा किसी भी हाल में उत्तर प्रदेश में दोबारा सरकार नहीं बना पाएगी।
जो भी हो, फिलहाल तो तीन दशक के वनवास के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश की सत्ता में वापसी का मन बनाकर ब्लॉक स्तर पर लोगों को पार्टी से जोडऩे का काम शुरू कर दिया है और पार्टी ज़मीनी स्तर पर लोगों से जुड़कर उन्हें मनाना चाहती है। वैसे सत्ता में फिर से वापसी का यह समय कांग्रेस के लिए बहुत ही अनुकूल है। क्योंकि उसके पास सरकार को घेरने और लोगों को बताने के लिए बहुत से मुद्दे हैं, जिन्हें वह अपने फायदे, या कहें कि वापसी के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
भाजपा को सत्ता से बाहर करना नहीं आसान
कांग्रेस ने प्रदेश में ब्लॉक स्तर पर समितियों की गठन प्रक्रिया शुरू करके भले ही लोगों को फिर से मनाना शुरू कर दिया है; लेकिन भाजपा को अब प्रदेश की सत्ता से बाहर करना इतना आसान नहीं है। इसके कई कारण हैं। पहला यह कि भाजपा ब्लॉक और बूथ स्तर पर पहले से बहुत अधिक मज़बूत हो चुकी है। दूसरा भाजपा के पास हिन्दुत्व के नाम पर लोगों को अपने पक्ष में वोट करने की एक ऐसी जादुई छड़ी है, जिसका तोड़ कांग्रेस के पास नहीं है। प्रदेश में सबसे ज़्यादा संख्या हिन्दुओं की है और करीब 23 फीसदी उसका पक्का वोट बैंक प्रदेश में है। इसके अलावा इस बार प्रदेश में अयोध्या में राम मन्दिर का शिलान्यास होना भी बड़ी घटना है, जिससे भाजपा के प्रति हिन्दुओं का झुकाव और बढ़ा है। भाजपा अभी आने वाले कई साल तक राम मन्दिर का खेल करके हिन्दुओं को अपने पक्ष में वोट करने के आकर्षित कर सकती है। अगर यह मुद्दा भी भाजपा के काम नहीं आया, तो वह मथुरा में मस्जिदों को हटाने के मामले को उठा सकती है; जिसे वह राम मन्दिर के शिलान्यास से ही तूल दे चुकी है। इसके अलावा कांग्रेस से ज़्यादा रैलियाँ करने और जोड़तोड़ की राजनीति में भाजपा माहिर हो चुकी है। ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस की वापसी की खीर थोड़ी टेढ़ी ही नज़र आ रही है। हालाँकि प्रियंका गाँधी प्रदेश में अगर डटी रहीं, तो कांग्रेस को काफी मज़बूती मिलेगी और हो सकता है कि कांग्रेस अकेले न सही, तो गठबन्धन से सही 2022 में सरकार बना ले।
गठबन्धन का प्रयोग हो चुका है फेल
यह सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि बिहार में भी सत्ता में आने की चाह में गठबन्धन का कांग्रेस का प्रयोग फेल हो चुका है। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में दो बार गठबन्धन किया- पहली बार 1996 के विधानसभा चुनाव में और दूसरी बार 2017 के विधानसभा चुनाव में; लेकिन दोनों ही बार उसे हार का मुँह देखना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान को यह बात समझ में आ ही गयी होगी कि पार्टी की नैया अकेले के दम पर ही पार लग सकती है। शायद इसीलिए उड़ती-उड़ती खबरें यह भी आ रही हैं कि प्रदेश में होने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किसी भी पार्टी के साथ गठबन्धन नहीं करेगी और खुद के दम पर ही चुनाव लड़ेगा। पार्टी को यह भी अनुभव हो चुका है कि गठबन्धन करने पर वह अपनी सहयोगी पार्टियों से नीचे ही रहती है। मसलन 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 33 सीटें जीत पायी। जबकि 2017 के गठबन्धन में चुनाव लडऩे के बाद भी केवल सात सीटों पर ही चुनाव जीत पायी। राष्ट्रीय स्तर की पार्टी, वह भी एक ऐसी पार्टी, जिसने देश की सत्ता पर दशकों शासन किया हो, इतनी करारी हार कम शर्मनाक नहीं है। पार्टी को इससे सीख लेकर अपनी स्थिति को मज़बूत करने की इस समय बहुत सख्त ज़रूरत है।
आपसी तनाव को खत्म करे पार्टी
जैसा कि सभी जानते हैं कि पार्टी में उच्च स्तर पर पिछले दिनों जिस तरह हाईवोल्टेज ड्रामा हुआ और लेटर बम का मामला सामने आया, वह पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। पार्टी को इस उच्च स्तरीय आपसी तनाव को तत्काल खत्म करना चाहिए और सभी वरिष्ठ और युवा नेताओं को लेकर आगे बढऩा चाहिए। इसके अलावा पार्टी को जल्द-से-जल्द एक ऐसे राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति कर देनी चाहिए, जो सर्वगुण सम्पन्न हो और अपनी सबसे बड़ी विरोधी पार्टी भाजपा की हर कूटनीति का जवाब दे सके, उसे विभिन्न समस्याओं और मुद्दों पर घेर सके। पार्टी को देश के युवाओं को भी अपने विश्वास में लेना पड़ेगा, तभी उसकी नैया पार लगेगी; अन्यथा जो भाजपा ने नीति बनायी है कि वह कांग्रेस को जड़ से उखाड़ देगी, उसमें वह कामयाब भी हो सकती है।