आगामी 2024 में होने वाले लोकसभा के चुनाव को लेकर पौने दो साल का समय है पर लोकसभा चुनाव की आहट इसी माह होने वाले राज्य सभा के चुनाव में देखी जा रही है। बताते चलें उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इसी साल भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत से भाजपा गदगद है। लेकिन लोकसभा चुनाव में कोई सियासी समीकरण न बिगाड़ सकें सो, अभी से भाजपा वो सारे सियासी दांव चल रही है। ताकि लोकसभा के चुनाव में कोई सियासी अड़चन न आ सकें। उत्तर प्रदेश में सपा के अलावा कोई दूसरी पार्टी नहीं है जो राज्यसभा में अपने प्रत्याशी भेज सकें।इसलिहाज से सपा की सियासत पर प्रदेश के नेताओं के साथ राष्ट्रीय नेताओं की नजर उत्तर प्रदेश की सियासत में है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार प्रमोद गर्ग का कहना है कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक पार्टी है। जो सुर्खियों में है।सपा जानती है कि अगर लोकसभा के चुनाव में दो अंको का आंकडा वो पार करती है। तो निश्चित तौर सपा के साथ लोगों का जुड़ाव होगा और वोट बैंक बड़ेगा।अन्य़था सपा को अपने खोये हुये जनाधार को वापस लाना मुश्किल होगा। वहीं भाजपा का कहना है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव के पूर्व जो माहौल बना था कि भाजपा चुनाव में पिछड़ सकती है।
ऐसे में भाजपा के अंदर जीत का तो भरोसा था लेकिन हार का भी भरोसा था। लेकिन अब भाजपा लोकसभा के चुनाव के पूर्व अभी से वो मुद्दे बनाने में लगी है। जिसके दम पर उसने 2 सीटों से 300 सीटों का आंकड़ा प्राप्त किया है।मथुरा और बनारस जो भी सियासी माहौल बनाया जा रहा है उसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है। साथ ही नये सिरे से देश में ध्रुवीकरण की राजनीति का नया माहौल बनाया जा रहा है।