उत्तर प्रदेश में अब तालाबंदी (लॉकडाउन) में काफ़ी हद तक ढील दी जा चुकी है। प्रदेश सरकार ने 01 जून से 600 से कम सक्रिय मामलों वाले ज़िलों में अनलॉक की घोषणा कर दी है। हालाँकि रात्रि निषेधाज्ञा (नाइट कफ्र्यू) और सप्ताहांत निषेधाज्ञा (वीकेंड कफ्र्यू) पूरे प्रदेश में लागू रहेगा। दुकानें और व्यावसायिक संस्थान आदि खोलने के लिए नये दिशा-निर्देश सरकार ने जारी कर दिये हैं। शाम 7:00 बजे से सुबह 7:00 बजे तक रात्रि निषेधाज्ञा लगायी गयी है और शनिवार व रविवार को सप्ताहांत तालाबंदी लागू हो गयी है। लेकिन सरकार द्वारा सप्ताह में पाँच दिन दी गयी थोड़ी ढील का लोग बड़ा फ़ायदा उठाने लगे हैं। लोग बेधड़क सड़कों पर उतरने लगे हैं।
फ़िलहाल जिन जनपदों में 600 से मरीज़ों से कम मामले आने लगेंगे, तो वहाँ यह ढील जारी रहेगी। लेकिन अगर किसी ज़िले में 600 से अधिक मामले आने लगेंगे, तो फिर से वहाँ पूर्ण तालाबंदी कर दी जाएगी। दूसरी तरफ़ कोरोना वायरस की तीसरी लहर को लेकर प्रदेश सरकार बड़ी तैयारी की दावा कर रही है। लेकिन समाजचिन्तक और जागरूक लोग कह रहे हैं कि जो सरकार दूसरी लहर से लोगों को नहीं बचा सकी, वह तीसरी लहर से लोगों को कितना बचा पाएगी, इसमें सन्देह है।
कोरोना की दूसरी लहर में जान गँवाने वाले फतेहगंज के संतोष के परिजन कहते हैं कि उन्हें सरकारी इलाज पर भरोसा ही नहीं है। सही से इलाज न मिलने के चलते उनके घर का जवान बेटा चला गया। समाजसेवी और कोरोना के प्रति जागरूकता फैलाने वाले रामौतार नेताजी कहते हैं कि जिस सरकार के राज्य में गंगा में लाशें बह रही हों, उससे बीमारी में इलाज की क्या उम्मीद की जा सकती है? रामौतार ने कहा कि उन्होंने अपनी 52 साल की उम्र में किसी सरकार को इतना नाकारा नहीं देखा कि गंगा में लाशें फेंकी जा रही हों और सरकार गंगा किनारे दफ़्न शवों के कफ़न हटवा रही हो। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व की रक्षा का दम्भ भरने वाली यह पहली सरकार है, जिसके राज्य में मृत हिन्दुओं के शवों का अन्तिम संस्कार तक ठीक से नहीं हो पा रहा है। सोचिए उन लोगों के दिलों पर क्या बीत रही होगी, जिनके घरों में मातम पसरा हुआ है। किसी के घर में कमाने वाले की मौत हो गयी है; कहीं बुजुर्ग बेसहारा हो गये हैं; कहीं बच्चे अनाथ हो गये हैं; तो कहीं पूरा का पूरा घर अकाल मौत के मुँह में समा गया है। सरकार केवल अपनी तारी$फ के पोस्टर लगाने में व्यस्त है। गाँवों में कोरोना फैल चुका है, कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोग मर गये और सरकार के द्वारा तीसरी लहर को लेकर बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं।
अगर पूछने लग जाओ, तो लोगों की शिकायतों का कोई अन्त नहीं है। लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश के क्या हालात हैं? इसकी चर्चा से पहले पिछले दिनों लगातार क़रीब दो महीने तक रही तालाबंदी में क्या हुआ? इसकी चर्चा ज़रूरी है। यह इसलिए भी ज़रूरी है; क्योंकि योगी के रामराज्य वाले प्रदेश में व्यवस्था का सरकारी ढोल कितना बेसुरा बज रहा है, इसकी पड़ताल ज़मीनी हक़ीक़त पर करने से पता चलता है कि पूर्ण तालाबंदी के समय उत्तर प्रदेश में क्या हालात रहे और अब अल्प तालाबंदी में क्या हालात हैं?
बरातों की रौनक़
यह एक बड़ी सच्चाई है कि बहुत लोगों ने कोरोना के डर से शादी-ब्याह टाल दिये। बहुत लोगों ने बड़ी सादगी से शादी-ब्याह कर लिये। मगर यह भी सच है कि बहुत लोगों ने पूरे धूमधाम से शादी-ब्याह पूर्ण तालाबंदी में किये। अगर कहीं पुलिस ने कोई सख़्ती बरती भी, तो ले-देके मामला रफ़ादफ़ा कर दिया गया। वहीं अगर किसी रसूख़दार के यहाँ शादी-ब्याह हुआ, तो पुलिस की हैसियत ही क्या कि कुछ कहे। 01 जून से पहले ही कई शादी-ब्याह ऐसे देखे गये, जिनमें अधिकतार बराती-घराती बिना मास्क के दिखे, सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाते भी दिखे, और तो और निश्चित 20 लोगों से अधिक लोग बरात में शामिल होते देखे गये; जैसे सामान्य दिनों में अक्सर नागिन डांस करते दिखायी देते हैं। ऐसी कई बरातों के गवाह पूरे प्रदेश में बहुत-से लोग होंगे, जिनमें से संजीव (बदला हुआ नाम) इसी तरह के बराती थे। संजीव ने बड़े जोश से बताया कि उनके एक रिश्तेदार की शादी थी; पूरे धूमधाम से हुई। किसी ने कुछ नहीं कहा। बरात में 50 मेहमान तो होंगे ही। लड़की वालों ने भी बड़ी आवभगत की, ख़ूब दहेज दिया। संजीव की बात सुनकर आश्चर्य हुआ कि अगर प्रदेश में तालाबंदी थी, तो यह बरातों का दौर कैसे चल रहा है; वह भी सरकारी दिशा-निर्देशों
को तोड़कर।
चुपके-चुपके दुकानदारी
अभी पूरी तरह से अनलॉक की स्थिति नहीं है और न ही पूरे प्रदेश में तालाबंदी रह गयी है, मगर अनलॉक किये गये शहरों में दुकानें और व्यावसायिक संस्थान खोलने की अनुमति केवल सुबह 7:00 बजे के बाद से शाम को 6 बजकर 59 मिनट तक ही है। वहीं जहाँ अभी कोरोना के ज़्यादा मामले आ रहे हैं, वहाँ दुकानों को खोलने में इतनी भी छूट नहीं है। ऐसी जगहों पर सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक ही दुकानों को खोलने की अनुमति है। इसके अलावा दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के सख़्त आदेश हैं। लेकिन पूर्ण तालाबंदी से लेकर अब के अधूरे अनलॉक तक अधिकतर दुकानदार अपना घर चलाने की जुगत में तालाबंदी के नियमों को तोड़ते दिखे हैं।
भौजीपुरा के एक गाँव के एक दुकानदार ने बताया कि सामान भी न बेचें तो क्या करें? लोगों को भूखा मरते भी तो नहीं देख सकते और न अपने परिवार को भूखा मार सकते हैं। सरकार का क्या है, उसे तो आदेश पास करना है, एक बार ज़ुबान हिलायी और हो गया। उसे भूख से मरते लोग दिखायी कहाँ देते हैं। दुकानदार भी इंसान हैं। इसलिए 7:00 बजे के बाद शटर गिराकर दुकान के पास या थोड़ी दूर बैठ जाते हैं। ग्राहक कभी भी आ सकता है। अब अगर किसी के घर में आटा नहीं होगा, तो क्या उसे आटा देने से मना कर दिया जाएगा? उसके घर में बच्चे बड़े भूखे रहेंगे, तो शैतान भी रो पड़ेगा। इसलिए दुकानदार ग्राहक के आने पर चुपके से शटर उठाकर सामान दे देते हैं। क्योंकि अगर खुलेआम सामान बेचेंगे, तो 5,000 का ज़ुर्माना भरना पड़ेगा। पूर्ण तालाबंदी के समय में भी कुछ दुकानदार दुकान खोलते रहे हैं। लेकिन पुलिस की नज़रों से बचकर, चोरी-छिपे ही कहीं-कहीं ऐसा होने की ख़बरें सुनने में आयीं। पड़ताल करने पर ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। दुकानों के खुलने खुलाने के सिलसिले में पड़ताल करते समय पता चला कि जिन दुकानदारों की दुकानें उनके ख़ुद के घरों में हैं, उन्होंने दुकानों का सामान घरों में रख लिया है और सुबह जल्दी व रात को घर से सामान की बिक्री कर रहे हैं। इसकी वजह पूछने पर एक दुकानदार ने कहा कि क्या सारी बंदिशें ग़रीब दुकानदारों पर ही लागू होती हैं। बड़े-बड़े लोगों पर, नेताओं पर तो कोई नियम लागू
नहीं होता।
जानलेवा शराब
उत्तर प्रदेश में पूर्ण तालाबंदी के समय में भी कई शराब भट्ठियों पर शराब के शौक़ीनों की लम्बी-लम्बी लाइनों को देखा गया, मगर कहीं किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई। हालाँकि अस्पतालों और शमशान घाटों पर भी लम्बी-लम्बी क़तारें देखी गयीं, मगर वो लोगों की एक मजबूरी थी। योगी सरकार द्वारा शराब की बिक्री पर रोक नहीं लगाने से कई सवाल खड़े होते रहे हैं, मगर अलीगढ़ में हुए ज़हरीली शराब से हुई मौतों को लेकर बवाल मच गया। बड़ी बात यह है कि अलीगढ़ में किसी कच्ची शराब माफिया की वजह से यह हादसा नहीं हुआ है, बल्कि सरकारी शराब की दुकान पर देसी शराब बेचने से हुआ है। सवाल यह है कि सरकारी शराब के ठेके पर देसी ठर्रा में ज़हर किसने मिलाया? क्या इसके पीछे राजनीतिक लोगों और माफियाओं का गठजोड़ है? अगर ऐसा नहीं है, तो ऐसा कैसे हुआ कि सरकारी ठेके पर ज़हरीली शराब बेची गयी? मामला जो भी हो, ज़िले के उन 108 लोगों को तो वापस नहीं लाया जा सकता, जिनकी जान शराब माफिया ने ले ली।
अगर यह हादसा किसी अवैध शराब माफिया की वजह से हुआ होता, तो दूसरी बात थी, मगर यहाँ तो सरकारी ठेके पर ही लोचा हुआ है। यह अलग बात है कि पुलिस ने इस शराब मृत्युकांड के मुख्य आरोपी एक लाख के इनामी ऋषि शर्मा, अनिल चौधरी और विपिन यदव समेत तक़रीबन 62 लोगों आरोपी को गिरफ़्तार किया गया है। मगर ख़ास बात यह है कि ऋषि शर्मा, जो सरकारी ठेके पर ही ज़हरीली शराब का धन्धा कर रहा था और मुख्य आरोपी है; भाजपा नेता है। उसके इस काले धन्धे ने क़रीब 108 लोगों की जान ले ली, जबकि कई बीमार हो गये।
बताया जा रहा है कि ऋषि के अवैध रूप से बने फार्म हाउस को प्रशासन ने जेसीबी से ध्वस्त करा दिया है। एक और सूचना के मुताबिक, अलीगढ़ ज़िले के 521 शराब ठेके में 390 ठेकों में इनकी शराब पहुँच रही थी। सीधी-सी बात है कि इतनी बड़ी संख्या में सरकारी ठेकों पर बिना शासन-प्रशासन की मिलीभगत के तो ज़हरीली शराब नहीं पहुँच सकती।