इसमें कोई दो-राय नहीं कि उत्तर प्रदेश में अभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जादू चल रहा है। निकाय चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत इस बात की तस्दीक़ करती है। हाल के कुछ विवादों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर योगी ने भाजपा को मज़बूत रखा हुआ है। इन चुनावों में जैसी मेहनत योगी करते दिखे, वैसी किसी अन्य दल के नेता ने नहीं की।
इन चुनावों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को मात मिली है। भाजपा ने महापौर पद की 17 में से 17 सीटों पर जीत दर्ज की। यदि चुनाव प्रचार को देखें, तो ज़मीन पर सिर्फ़ योगी दिखे। सपा के लिए अखिलेश यादव और बसपा के लिए मायावती का प्रचार सीमित रहा। कांग्रेस के बड़े नेता तो वैसे भी कर्नाटक चुनाव में व्यस्त थे। लिहाज़ा पार्टी प्रचार में कहीं दिखी ही नहीं। मुस्लिम वोट हमेशा से सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए महत्त्वपूर्ण रहे हैं; लेकिन इस चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की उपस्थिति ने इन पार्टियों के मुस्लिम वोटों में ख़ासी सेंधमारी की, जिसका लाभ मिला भाजपा को।
योगी के माफ़िया-राज के ख़िलाफ़ अभियान से भाजपा को उम्मीद में थी कि उसे जनता का समर्थन मिलेगा। यही हुआ और जनता ने झोली भरके उसे वोट दिये। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में राजनीति और माफ़िया का गठजोड़ बहुत पुराना है। योगी ने अपने छ: वर्षों के में कार्यकाल इस गठजोड़ को तोडऩे की जो कोशिश की है, उसका भाजपा को राजनीतिक लाभ मिला है; क्योंकि आम जनता माफ़िया से बहुत परेशान रही है। उमेशपाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी अतीक अहमद के बेटे असद की मुठभेड़ में मौत पर सवाल भी उठे। उसके बाद अतीक और उसके भाई का मर्डर हो गया, वह भी पुलिस की उपस्थिति के बावजूद। लेकिन इस पर भी भाजपा को जनता का समर्थन मिला है। उसके टिकट पर कुछ मुस्लिम उम्मीदवार भी जीते हैं।
उधर माफ़िया मुख़्तार अंसारी समेत क़रीब 40 माफ़िया आज की तारीख़ में उत्तर प्रदेश की जेलों में बन्द हैं। माफ़ियाओं की हज़ारों करोड़ की सम्पत्ति ज़ब्त हो चुकी है। याद रहे मुख्यमंत्री योगी ने विधानसभा में सौगंध उठायी थी कि राज्य के माफ़िया को वह मिट्टी में मिला देंगे। इसका भी चुनाव में असर पड़ा और जनता भाजपा के समर्थन में रही।
वैसे यह ज़्यादातर होता है कि प्रदेश में जिसकी सरकार होती है, निकाय चुनावों में जनता उस पार्टी को ही वोट देती है। हिमाचल में भी हाल में यह दिखा था, जब शिमला नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस ने 34 में से 24 सीटें जीत ली थीं। निकाय चुनाव जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी कह चुके हैं कि भाजपा राज्य में 2024 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज करेगी। इसमें कोई दो-राय नहीं कि गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश ही ऐसा प्रदेश है, जहाँ भाजपा बड़े चुनावों में जीत की गारंटी मान सकती है। यहाँ यह भी दिलचस्प है कि जैसे कुछ साल पहले तक प्रधामंत्री मोदी ‘गुजरात मॉडल’ की बात करते थे, वैसे ही आज योगी ‘उत्तर प्रदेश मॉडल’ की बात करते हैं। नहीं भूलना चाहिए कि योगी राज्य में विपक्षियों के लिए जहाँ ख़तरा हैं, वहीं भाजपा के भीतर भी वह प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प के रूप में देखे जाते हैं।
चुनाव आयोग के अनुसार, नगर निगम में भाजपा ने सभी 17 मेयर सीटें जीतीं। इसके अलावा उसके 813 पार्षद, परिषदों में 89 अध्यक्ष और 1360 सभासद, 191 नगर पंचायत अध्यक्ष और 1403 वार्ड में सदस्य जीत गये। सपा के नगर निगमों में 191 पार्षद, 35 परिषदों के अध्यक्ष, 425 सभासद, 79 नगर पंचायत अध्यक्ष और 485 वार्ड सदस्य जीते, जबकि बसपा के 85 पार्षद, 16 परिषद अध्यक्ष और 191 सभासद, 37 नगर पंचायत अध्यक्ष और 215 वार्ड सदस्य जीते। कांग्रेस के 77 पार्षद, चार परिषद अध्यक्ष, 91 सभासद और 14 नगर पंचायत अध्यक्ष, 77 वार्ड सदस्य जबकि आम आदमी पार्टी के आठ पार्षद, तीन परिषद अध्यक्ष, 33 सभासद और दो नगर पंचायत अध्यक्ष जीते। एआईएमआईएम के 19 पार्षद, तीन परिषद अध्यक्ष और 30 सभासद, छ: नगर पंचायत अध्यक्ष, रालोद के 10 पार्षद, सात परिषद अध्यक्ष, 40 सभासद और सात नगर पंचायत अध्यक्ष जीते।
उपचुनाव के नतीजे
पंजाब में जलंधर की लोकसभा सीट आप प्रत्याशी सुशील कुमार ‘रिंकू’ ने 58,691 वोटों से जीत ली। मेघालय की सोहियोंग विधानसभा सीट पर यूडीपी के सिंशर कुपर रॉय लिंगदोह थबाह, ओडिशा की झारसुगुड़ा विधानसभा सीट बीजद की दीपाली दास, उत्तर प्रदेश की छानबे विधानसभा सीट अपना दल (सोनेलाल) की प्रत्याशी रिंकी कोल ने, तो रामपुर की स्वार टांडा सीट भी अपना दल के शफीक़ अहमद अंसारी ने जीती।