इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 35 साल पुराने गैंगस्टर एक्ट के अब तक नियम न बनाने पर राज्य सरकार पर नाराजगी जताई है। अदालत ने प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह व पुलिस महानिदेशक को गिरोहबंद एवं समाज विरोधी क्रियाकलाप कानून 1986 के तहत 31 दिसंबर 2021 तक नियमावली तैयार करने का निर्देश दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक नियम नहीं बन जाते, तब तक सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों व पुलिस अधीक्षकों को सर्कुलर जारी कर अपने यहां डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारी की तैनाती करने का निर्देश दिया जाए। सीओ रैंक के उक्त अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाकर संगठित अपराध के आरोपियों का गैंगचार्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जाए और एसपी व एसएसपी के क्रास चेक करने के बाद उनके अनुमोदन से गैंगचार्ट जारी हो।
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने गैंगस्टर एक्ट के मामले में आरोपियों की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि गैंगचार्ट में अपराध, अपराध की प्रकृति, अपराधों की संख्या, पारिवारिक पृष्ठभूमि, अवैध संपत्ति, सामाजिक व आर्थिक स्तर, जिले से लेकर प्रदेश के बाहर तक का गैंगक्षेत्र आदि पूरा ब्योरा दिया जाए।
हाईकोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराधियों के गैंगचार्ट बनाने में पुलिस की लुकाछिपी वाली कारगुजारियों पर नाराजगी जताई। साथ ही कहा कि पुलिस की यह मनमानी संगठित अपराध से कठोरता से निपटने के लिए बने गैंगस्टर एक्ट के उद्देश्य को विफल करने वाला है।
कोर्ट ने कहा कि गिरोहबंद कानून को बने 35 साल हो गए और अब तक नियम नहीं बने। पुलिस इसका दुरुपयोग कर रही है और अपराधियों के आधे-अधूरे गैंगचार्ट बना रही है। नतीजतन आरोपी जमानत के समय इसका फायदा उठा रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि थाना इंचार्ज अधूरा गैंगचार्ट तैयार करते हैं और उच्च अधिकारी बिना सत्यापन किए उसका अनुमोदन कर देते हैं, जिसका फायदा आरोपी आसानी से जमानत मंजूर कराने के वक्त उठा लेते हैं।