उत्तर प्रदेश विधानसभा के सात चरण में होने वाले चुनाव में चार चरण में मतदान हो चुका है। जैसे-जैसे चुनाव सिमट रहा है। वैसे-वैसे नेताओं की चुनावी सभाओं में तीरों के बाण तेजी से चल रहे है। आलम ये है कि अब नेता अपनी बात जनता के बीच रखने के लिये सारी मर्यादाओं को तार-तार कर रहे है। जनता तो जनता है जो मचा लेने से नहीं चूक रही है।
नेताओं के भाषणों का अपने तरीके से विश्लेषण कर नेताओं के कथनी-करनी को तौल रहे है। उत्तर प्रदेश की राजनीति का अपना मिजाज है। यहां के मतदाता बोलते कम है। उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार संतोष बघेल का कहना है कि चुनाव क्या न करायें। क्योंकि चुनाव मेंं कब नेता किस के पक्ष में बोलने लगे तो कब किस के विरोध में बोलने लगे।
चुनाव मेंं किसी दावेदार नेता को टिकट न मिलने पर वह रातो-रात दूसरे दल में चला गया। ऐसे में चुनाव के हाल और परिणाम का जानना आसान नहीं होता है। प्रदेश, भूगोलिक और जनसंख्या के लिहाज से काफी बड़ा है। इसलिये ये कहना पाना आसान है कि सपा और भाजपा के बीच ही टक्कर है। जबकि कुछ विधानसभा सीटों पर बसपा का ग्राफ बढ़ा है। तो कांग्रेस भी जी तोड़ मेहनत करके चुनाव लड़ रही है। इससे तो ये लगता है कि कांग्रेस भी पिछलें चुनाव की तुलना में बढ़ा कर सकती है।
कुल मिलाकर चुनाव परिणाम जरूर चौंकाने वाले साबित होगे। लोगों का कहना है कि भाजपा को दोबारा सत्ता पाने के लिये अभी बचें तीनों चरण के मतदान के लिये कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। क्योंकि सपा के पक्ष में जो भी माहौल बन रहा है।उससे सपा को जरूर फायदा दिख रहा है।सपा के पक्ष में एक शत-प्रतिशत एम-बाई फैक्टर एक साथ रहा तो सपा को काफी सियासी लाभ मिल सकता है।