चीनी मिलों के आवंटन बजट में योगी की शून्य भ्रष्टाचार योजना को लगाया जा रहा पलीता
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शून्य भ्रष्टाचार योजना को पलीता कैसे लगाया जाता है और क़ायदे-क़ानून की धज्जियाँ कैसे उड़ायी जाती हैं, इसका यदि जीता-जागता कोई उदाहरण देखना हो, तो यह आपको उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल संघ में देखने को मिल जाएगा।
यहाँ भाजपा की सरकार के विगत छ: वर्षों के कार्यकाल में चाहे नियुक्तियों की जाँच हो या फिर चाहे चीनी बिक्री घोटाला, चीनी निर्यात घोटाला हो, चाहे भ्रष्टाचार में लिप्त सेवानिवृत्त अधिकारियों को संविदा पर रखकर चीनी तथा शीरा विक्रय कराने का कार्य, चीनी मिलों के अपग्रेडेशन का घोटाला हो, चाहे शून्य तरल निर्वहन (ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज) के नाम पर भट्टियों (डिस्टिलरीज) में हुआ घोटाला हो, या फिर नयी चीनी मिल परियोजना में हुआ घोटाला हो, आज तक किसी भी प्रकरण की सही जाँच नहीं होने के कारण सारे घोटाले चीनी मिल संघ की फाइल में ही दबे हुए हैं। संघ के अधिकारी सरकार की जीरो भ्रष्टाचार पॉलिसी की धज्जियाँ उड़ाते हुए मलाई खाने और अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं।
दरअसल उत्तर प्रदेश की सहकारी चीनी मिल संघ में केंद्रीय क्रय एवं आवंटन बजट में करोड़ों के घोटाले की ख़बरें आ रही हैं। प्रधान प्रबंधक क्रय तथा प्रधान प्रबंधक तकनीकी के पद एक ही अधिकारी के पास होने से करोड़ों के घोटाले की आशंका जतायी जा रही है। ज़ाहिर है कि उत्तर प्रदेश की सहकारी चीनी मिलों के मरम्मत तथा रख-रखाव के तकनीकी बजट आवंटन में भी करोड़ों के वारे-न्यारे किये जा रहे हैं। बताते हैं कि अपर मुख्य सचिव गन्ना तथा प्रबंध निदेशक के चहेते अधिकारी प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय विनोद कुमार के पास कुल चार प्रमुख प्रधान प्रबंधक का प्रभार और सभी तकनीकी पाँच विभागों का प्रभार में से तीन विनोद कुमार के अधीन हैं।
ख़बरों के मुताबिक, ताज़ा घोटाला केंद्रीय क्रय पद्धति के अंतर्गत तक़रीबन सभी सहकारी चीनी मिलों की मरम्मत के लिए ख़रीदे जाने वाले सामानों की दर संविदा जारी करने में प्रकाश में आया है। इसमें विगत कई वर्षों से प्रधान प्रबंधक क्रय तथा प्रधान प्रबंधक तकनीकी के दोनों पदों पर जमे प्रधान प्रबंधक द्वारा पार्टियों से साँठ-गाँठ करके कई इंजीनियरिंग सामानों की दरें तय करने में एक और जहाँ करोड़ों रुपये का नुक़सान चीनी मिल संघ को पहुँचाया है। वहीं दूसरी ओर सप्लायर्स से करोड़ों रुपये की रिश्वत लेकर अपनी जेबें भरने का काम किया है। जानकारी के मुताबिक, विनोद कुमार ने करोड़ों की सम्पत्ति मेरठ तथा गुरुग्राम सहित अन्य जगहों पर भी है। अगर प्रधान प्रबंधक क्रय तथा प्रधान प्रबंधक तकनीकी के भ्रष्टाचार तथा आय से अधिक सम्पत्ति की निष्पक्ष जाँच सरकार करा ले, तो दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो जाएगा।
सूत्र बताते हैं कि प्रधान प्रबंधक क्रय तथा प्रधान प्रबंधक तकनीकी लगातार अपने भ्रष्ट कला कौशल के आधार पर सभी प्रबंध निदेशक के चहेते अधिकारी बने रहे हैं, जिसके कारण ही पिछली समाजवादी की अखिलेश सरकार में भी यह तत्कालीन प्रबंध निदेशक डॉ. बी.के. यादव के चहेते अधिकारी रहे तथा कई मलाईदार चीनी मिलों के प्रधान प्रबंधक भी रहे। बताते हैं कि सन् 2016 में सहारनपुर ज़िले की सहकारी चीनी मिल नानौता में प्रधान प्रबंधक रहते हुए इन्होंने तत्कालीन प्रबंध निदेशक के कहने पर मिल में लगभग 70 फ़र्ज़ी भर्तियाँ भी की थीं। इनकी कोई भी जाँच आज तक नहीं करायी गयी, जबकि हैरानी की बात है कि डॉ. बी.के. यादव के कार्यकाल में सहकारी चीनी मिल संघ में हुई भर्तियाँ की जाँच भी हुई, जिसमें भर्तियाँ को लखनऊ मंडल के आयुक्त ने फ़र्ज़ी पाया तथा सरकार द्वारा अब यही जाँच सीबीआई से करायी जा रही है। इन्होंने दोनों महत्त्वपूर्ण पद का प्रभार होने के कारण ई-टेंडर में इतनी सफ़ाई से तकनीकी शर्तों में मनमाने तरीक़े से सप्लायर्स से साँठगाँठ करके परिवर्तन किये, ताकि किसी अन्य अधिकारी को इसकी कोई जानकारी न हो पाए तथा टेंडर में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के दिशा निर्देशों के विपरीत कई इंजीनियरिंग सामानों में एल-1 के साथ-साथ एल-2, एल-3 की सभी पार्टियों को भी उनकी ही मूल्य सूची (प्राइस लिस्ट) पर विभिन्न छूटें (डिस्काउंट) दिखाकर दर संविदा जारी कर दी। इन आइटम में प्रमुख रूप से मिलों में भारी मात्रा में उपयोग होने वाले वेल्डिंग इलेक्ट्रोड, इलेक्ट्रिक आइटम, सेंट्रीफ्यूगल पम्प, मिलों में उपयोग होने वाली बियरिंग आदि है। इसका परिणाम यह हुआ कि मिलों द्वारा मनमाने तरीक़े से महँगा-महँगा सामान ख़रीदा गया, जिससे आवंटित बजट में वृद्धि हुई तथा मिलों को अनावश्यक घाटा उठाना पड़ा। प्रधान प्रबंधक क्रय तथा प्रधान प्रबंधक तकनीकी के पद पर बैठे अधिकारी ने पम्प की दर संविदा में सन् 2014 में निम्न गुणवत्ता के पम्प आपूर्ति करने वाली मेरठ ज़िले की फर्म अम्बा प्रसाद जैन को अम्बा मेक के पम्प को ई-टेंडर में भाग लेने पर रोक लगा दी थी तथा सभी चीनी मिलों को उच्च गुणवत्ता के पम्प ख़रीदने के निर्देश दिये गये थे। परन्तु प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय ने सन् 2018 में दोनों पदों का प्रभार लेकर बड़ी सफ़ाई से पुन: ई-टेंडर में अम्बा मेक के पम्प को शामिल कराकर अम्बा प्रसाद जैन की अपनी ही प्राइस लिस्ट पर छूट दिखाकर दर संविदा जारी करा दी। उसका प्रभाव यह हुआ कि सन् 2014 में संघ द्वारा जारी आदेश कि किर्लोस्कर कम्पनी के उच्च गुणवत्ता के पम्पों के स्थान पर चीनी मिलों में पुन: निम्न गुणवत्ता के अम्बा मेक के पम्प पार्टी द्वारा संघ तथा मिलों के अधिकारियों को भारी कमीशन देकर आपूर्ति करा दिये। यदि सन् 2018 से 2022 तक की मिलों को आपूर्ति पम्पों की निष्पक्ष जाँच हो, तो सारी स्थिति स्वयं ही साफ़ हो जाएगी। बहरहाल सहकारी चीनी मिल संघ में घोटाले और अनियमितता के सम्बन्ध में बात करने के लिए हमने उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी, गन्ना मंत्री के निजी सचिव, जन सम्पर्क अधिकारी, गन्ना आयुक्त एवं अपर मुख्य सचिव गन्ना से सम्पर्क साधने की कोशिश की, उनके द्वारा फोन नहीं उठाने पर उनके व्हाट्स ऐप नम्बर सवालों को भी भेजा गया; लेकिन क़रीब सप्ताह भर तक इंतज़ार करने के बाद भी इनमें से किसी का भी कोई जवाब हमें प्राप्त नहीं हुआ।
ख़बरों के मुताबिक, यह कम्पनी केवल सहकारी चीनी मिलों को ही निम्न गुणवत्ता के पम्प सप्लाई करती रही है। अधिकतर निजी चीनी मिलों का प्रशासन अम्बा मेक के पम्प नहीं ख़रीदता है। विभागीय कर्मचारियों की मानें, तो इस तथ्य की जानकारी किसी भी निजी चीनी मिलों के अधिकारियों से की जा सकती हैं। लेकिन प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय पर अपने चहेते सजातीय मेरठ के ही पम्प सप्लायर्स अम्बा प्रसाद जैन को हर साल एक करोड़ से ऊपर के निम्न गुणवत्ता के पम्पों का बिजनेस दिलवाकर लाखों रुपये कमीशन लेने की भी चर्चा है। इलेक्ट्रॉनिक सामानों में भी एलएंडटी तथा सीमेंस कम्पनी को ई-टेंडर में न बुलाकर दिल्ली की अपनी चहेती कम्पनी जेड (5द्गस्र) कंट्रोल को उनकी ही तीन टेंडर पर मनमाने तरीक़े से दर संविदा जारी करने की बात सामने आ रही है। विभागीय सूत्रों के दावे के मुताबिक, यदि वर्तमान प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय के कार्यकाल की क्रय सम्बन्धित सामानों की दर संविदा फाइनल करने की उच्चस्तरीय निष्पक्ष जाँच शासन से करा ली जाए, तो इस जाँच में करोड़ों रुपये के घोटाले और गबन का पर्दाफाश हो जाएगा। विभागीय सूत्र यह भी बताते हैं कि सन् 2017 में भाजपा की योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अपर मुख्य सचिव, चीनी मिल उद्योग गन्ना विकास विभाग, संजय आर. भूसरेड्डी को प्रदेश के गन्ना विकास विभाग तथा चीनी मिलों के प्रबंधन की कमान सौंपी गयी।
ग़ौरतलब है कि उस समय तक चीनी मिल संघ द्वारा अपनी चीनी मिलों को मरम्मत हेतु अलग प्रारूप से वार्षिक तकनीकी बजट आवंटन करता था। भूसरेड्डी ने विभाग का प्रभार सँभालने के बाद सन् 2018 से निजी चीनी मिलों की भाँति मिलों के मरम्मत कार्यों हेतु चार रुपये प्रति कुंतल गन्ना पेराई पर बजट का निर्धारण कर दिया है, जिसमें बॉयलर तथा टर्बाइन की मरम्मत शामिल नहीं थी। लेकिन प्रधान प्रबंधक तकनीकी एवं क्रय ने संजय भूसरेड्डी द्वारा बनाये गये, तकनीकी बजट के फार्मूला को दर किनारे करके मनचाहे तरीक़े से रुपये आठ रुपये से 12 रुपये प्रति कुंतल की दर से बजट आवंटन करके मिलों के अधिकारियों से लाखों रुपये कमीशन के ले लिए।
कुछ जानकार बताते हैं कि इन्होंने बड़ी चालाकी से तकनीकी बजट आवंटन में हेरा-फेरी करके जिन मदों का बजट भूसरेड्डी के फार्मूले से रुपये चार प्रति कुंतल में होना चाहिए था, उसे मिल की आवश्यकता दिखाकर क्रिटिकल आइटम में स्वीकृत कर दिया। यहाँ तक की सामान्य मरम्मत के कई आइटम को तो कैपिटल आइटम दिखाकर स्वीकृत कर दिया, जबकि वो आइटम वास्तव में कैपिटल के न होकर मरम्मत के बजट के थे। इस प्रकार इस अधिकारी ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करने हेतु तथा अपनी जेबें भरने हेतु तकनीकी मरम्मत के बजट आवंटन में पिछले छ: वर्षों में भारी हेरा-फेरी की है। शासन के निर्देशों की खुली धज्जियाँ भी उड़ायी हैं। इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस पॉलिसी के तहत इस मामले की तत्काल निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए, ताकि करोड़ों के घोटाले का सच सामने आ सके।
हाल ही में मोहिउद्दीन (मोदीनगर) चीनी मिल में लगी भीषण आग मिलों में भ्रष्टाचार का एक और सुबूत है। इस चीनी मिल में प्रधान प्रबंधक के पद पर एक सेवानिवृत्त रसायनविद् को नियुक्त हैं। हैरानी की बात है कि चीनी मिल में लगी आग की भनक मिल के अधिकारियों को तब लगी, बड़ा नुक़सान हो गया। इस हादसे में कई सवाल उठ रहे हैं। एक रसायनविद् को सेवानिवृत्ति के बावजूद दो पद ऊपर कैसे बतौर प्रधान प्रबंधक रखा गया? उन्हें कौन-से नियमों के तहत वित्तीय अधिकार दिये गये? समय-समय पर चीनी मिल की तकनीकी जाँच क्यों नहीं हुई? इस आग से कितना नुक़सान हुआ? क्या पॉवर प्लांट की मरम्मत के बाद यह पेराई सत्र शुरू हो सकेगा? मिल की तकनीकी मरम्मत किसके ज़िम्मे थी? इस भ्रष्टाचार की जाँच कब होगी? इन सवालों के जवाब शायद तब मिल सकें, इस जाँच में स्थानीय किसानों को भी प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)