उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश को औद्योगिक प्रदेश बनाने के प्रयास में लगे हैं। पिछले दिनों उनके नेतृत्व में लखनऊ में आयोजित हुए यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट- 2023 का उद्देश्य भी यही था। इस समिट में निवेशकों ने 20 से अधिक औद्योगिक क्षेत्रों में 33.52 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की जो रुचि दिखायी उससे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अत्यंत उत्साहित हैं।
भले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में विभिन्न उद्योगों, विशेषकर डेयरी उद्योग को फलीभूत करना चाहते हैं; मगर उत्तर प्रदेश को औद्योगिक प्रदेश बनाने में अनेक चुनौतियाँ हैं। क्योंकि पहले भी कई बार उत्तर प्रदेश में निवेशकों के ऐसे सम्मेलन हो चुके हैं, मगर कोई योजना आज तक परवान नहीं चढ़ सकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पहले कार्यकाल में भी देशी तथा विदेशी निवेशकों को उत्तर प्रदेश में उद्योग करने के कई निमंत्रण दे चुके हैं। 2018 में भी निवेशक सम्मेलन उन्होंने किया था, मगर उसका कोई विशेष लाभ नहीं हुआ।
इस बार के यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2023 की बात करें, तो निवेशकों ने कुल निवेश में से डेयरी उद्योग तथा पशुधन योजना में 35,569 करोड़ रुपये का निवेश करने पर सहमति जतायी है। इसमें डेयरी उद्योग पर 31,116 करोड़ रुपये तथा पशुपालन पर 4,453 करोड़ रुपये का निवेश तय हुआ है। कहा जा रहा है कि कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश डेयरी उद्योग में देश का अग्रणी राज्य होगा, जो कि प्रदेश के 72,000 से अधिक युवाओं को रोज़गार प्रदान करेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के अनुसार, इन दोनों उद्योगों को स्थापित करने के लिए पशुपालन विभाग के मार्गदर्शन में पाँच सदस्यीय समिति कार्य में जुट गयी है। यह समिति सुनिश्चित करेगी कि डेयरी उद्योग में 1051 तथा पशुधन क्षेत्र में 1432 निवेश प्रस्तावों को शीघ्र ही भुनाया जाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश हैं कि सभी उद्योगों के लिए मिले निवेश प्रस्तावों पर तीव्रता से कार्य हो, ताकि प्रदेश की आय के रास्ते खुलें। राज्य के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह डेयरी उद्योग तथा पशुपालन में सुगमता के लिए जुट गये हैं। प्रदेश में विभिन्न उद्योगों की स्थापना के लिए औद्योगिक विकास विभाग और निवेशक उत्तर प्रदेश दल विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों की समितियों की मदद करेंगे।
भले ही यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2023 में निवेशकों ने निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में कृषि, पशुपालन, डेयरी उद्योग, अक्षय ऊर्जा तथा अन्य कई औद्योगिक क्षेत्रों में निवेश करने की रुचि दिखाकर प्रदेश के युवाओं में एक नयी आशा जगायी है; मगर इससे प्रदेश के सभी या अधिकतर युवाओं को नौकरी मिलना सम्भव नहीं है। कहा जा रहा है कि इस उद्योग से लगभग 72,000 नौकरियाँ युवाओं को मिलेंगी।
यह ऊँट के मुँह में जीरा ही है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में लगभग 3.42 करोड़ युवा हैं। इतनी बड़ी संख्या में 72,000 को नौकरी मिलने का अर्थ है 1,000 से अधिक युवाओं में दो युवाओं को नौकरी मिलना।
बंद हो चुके अनेक उद्योग
उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता के पहले तथा बाद के कुछ दशकों में खुले सैकड़ों उद्योग बन्द हो चुके हैं। बन्द होने वाले उद्योगों में निजी तथा सरकारी दोनों ही के उद्योग सम्मिलित हैं। अगर केवल दो जनपदों बरेली तथा पीलीभीत की बात करें, तो यहाँ के लगभग 70 प्रतिशत उद्योग पिछले चार दशकों के अंदर बन्द हो चुके हैं। बरेली का फर्नीचर उद्योग, पतंग उद्योग में अब पहले जैसा उछाल नहीं रहा है। बरेली के पश्चिमी फ़तेहगंज में बनी रबड़ फैक्ट्री, कई प्लाई कम्पनियाँ, कत्था फैक्ट्री, सरकारी चीनी मिलें, साइकिल कम्पनियाँ, काग़ज़ फैक्ट्रियाँ या तो बन्द हो चुकी हैं या बन्द होने की दशा में हैं। ऐसे ही पीलीभीत के कई औद्योगिक संस्थान आज वीरान पड़े हैं।
दुर्भाग्य की बात यह है कि प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा, सपा तथा बसपा इन सभी पार्टियों की सरकारें बनी हैं; मगर किसी भी पार्टी की सरकार में चार दशक के अंदर बन्द होने वाले उद्योगों को दोबारा चालू करने के सार्थक प्रयास नहीं हुए। सन् 2007 से सन् 2012 तक जब बसपा की सरकार बनी थी, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह ही प्रदेश में नये उद्योगों की स्थापना के प्रयास किये थे, जो सफल नहीं हुए। मगर उन्होंने भी बन्द पड़े उद्योगों को दोबारा चालू करने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखायी।
सबसे बड़ी चुनौतियाँ
उत्तर प्रदेश में नये उद्योगों की स्थापना में सबसे बड़ी चुनौती भूमि है। किसान कृषि योग्य भूमि देना नहीं चाहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की भूमि तो कृषि के लिए अति उत्तम मानी जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भूमि अधिग्रहण के $कानूनों को सरल करने का प्रयास किया है। वर्तमान केंद्र सरकार ने भी यह प्रयास किया है। मगर किसान आसानी से अपनी उपजाऊ भूमि देना नहीं चाहेंगे। अगर सरकार पुराने बन्द पड़े औद्योगिक संस्थानों की भूमि का अधिग्रहण करे, तो उसके लिए आसानी भी हो सकती है तथा कृषि योग्य भूमि भी ख़राब नहीं होगी। प्रदेश में औद्योगिक इकाइयाँ लगाने के लिए बाहर से निवेशक तो आ चुके हैं; मगर चुनौतियों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को तैयार रहना होगा। कमुआँ निवासी नंदराम मास्टर कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए जो प्रयास कर रहे हैं, वो अत्यधिक सराहनीय हैं मगर उद्योगों को स्थापित करने में चुनौतियों से निपटने पर उन्हें ध्यान देना होगा।
पहली चुनौती तो यही है कि प्रदेश में औद्योगिक नीतियों को सुगम बनाना होगा, ताकि प्रदेश के लोग भी उद्योग स्थापति करने के लिए आगे आ सकें। अधिकारियों को ईमानदार तथा सहयोगी बनाने की दिशा में कार्य करने की अत्यधिक आवश्यकता है। क्योंकि देखा जाता है कि कोई व्यक्ति किसी कार्य को आरम्भ करने के लिए लाइसेंस लेने जाए, तो उसे सम्बन्धित विभाग अधिकारियों तथा कर्मचारियों को रिश्वत तक देनी पड़ती है। अगर इच्छुक व्यक्ति ऐसा नहीं करता, तो उसे लाइसेंस नहीं मिलता।
प्रक्रिया हो सरल, बिजली हो सस्ती
प्रदेश में उद्योग अथवा दूसरे व्यवसायों को स्थापित करने के लिए प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सरकार तथा प्रशासनिक अधिकारियों को बिना किसी भेदभाव के लोगों को व्यवसाय स्थापित करने के लिए उनका सहयोग करना होगा। मीरगंज क्षेत्र के बड़े व्यापारी प्रकाश कहते हैं कि उद्योगों की स्थापना के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। मगर आज भी प्रदेश में उद्योगपतियों तथा व्यापारियों को अपना व्यवसाय चलाने के लिए कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यवसायी कोई व्यवसाय कर रहा है, तो उसे उसके व्यवसाय से सम्बन्धित विभाग की कई प्रक्रियाएँ इतनी जटिल होती हैं कि उनसे पार पाना आसान नहीं होता।
इसके अतिरिक्त व्यवसाय के लिए बिजली महँगी पड़ती है। भारी भरकम जीएसटी तथा तमाम तरह के सुविधा शुल्क व्यापारियों को भरने पड़ते हैं। इस ओर भी सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। कहने का अर्थ यह है कि प्रदेश में उद्योग तथा व्यवसाय स्थापित करने तथा उन्हें चलाने के लिए प्रक्रिया सरल होनी चाहिए, ताकि व्यापारियों को अपने प्रतिष्ठान चलाने में सुगमता हो सके।
पशु पालन नहीं आसान
उत्तर प्रदेश में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पशुधन पालन की आवश्यकता पड़ेगी। इसके लिए गोपालन को योगी आदित्यनाथ सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही बढ़ावा देने में लगी है। योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के उपरांत प्रदेश में कई गोशालाएँ स्थापित हुई हैं। अब प्रदेश में कई सरकारी तथा निजी गौशालाएँ हैं। अब एक बार पुन: योगी आदित्यनाथ सरकार गोसंरक्षण और गोपालन को बढ़ावा देने के लिए गोपालन की इच्छुक स्वयंसेवी संस्थाओं एवं लोगों को लीज पर 25 से 30 एकड़ नि:शुल्क भूमि मुहैया कराने की योजना बना रही है। मगर दुधारू पशुओं का पालन इतना आसान नहीं है। इसका कारण चारे वाली फ़सलों की कमी, चोकर तथा वाटे पर बढ़ी महँगाई, पशुओं को चराने के लिए मैदानों का न होना आदि है। इसके अतिरिक्त एक चुनौती यह है कि दूध का भाव बहुत कम है। दुग्ध कम्पनियाँ किसानों से 32 से 38 रुपये प्रति लीटर जिस दूध का क्रय करती हैं, उसकी क्रीम खींचकर भी 60 रुपये प्रति लीटर से अधिक में उसकी बिक्री करती हैं।
दुग्ध उत्पादन की सच्चाई
समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक प्रदेश है। कहा जाता है कि देश में होने वाले कुल दुग्ध उत्पादन का 16.60 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन अकेले उत्तर प्रदेश में होता है। सरकारी आँकड़े कहते हैं कि वर्तमान में प्रदेश में प्रतिदिन 8.72 करोड़ लीटर से अधिक दुग्ध उत्पादन हो रहा है, जिसमें से 48 प्रतिशत खपत प्रदेश में है, तथा शेष 52 प्रतिशत दूध दूसरे प्रदेशों को निर्यात होता है।
सरकारी आँकड़ों की मानें, तो पिछले पाँच वर्षों में उत्तर प्रदेश में 20 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन बढ़ा है। अब योगी सरकार उत्तर प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए 1,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। इसके अतिरिक्त निवेशकों द्वारा 35,569 करोड़ डेयरी उद्योग तथा पशुपालन के लिए व्यय किये जाएँगे। इससे अनुमानित तौर पर दुग्ध उत्पान डेढ़ से दो गुना होने की आशा है। वर्तमान में प्रदेश में 110 डेयरी प्लांट लगे हैं। इनमें 13 डेयरी प्लांट सरकारी तथा शेष 97 निजी डेयरी प्लांट हैं। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, इसे जानने के लिए गाँवों में पशुपालकों से जानकारी सरकार को लेनी चाहिए।
गंगाराम नाम के एक पशुपालक ने बताया कि 8-10 साल पहले उनके पास चार-पाँच भैंसें थीं, मगर अब दो ही हैं। रामसेवक नाम के पशुपालक बताते हैं कि उनके बचपन में उनके घर में 10-15 गायें पलती थीं, मगर अब एक ही गाय है घर में दूध के लिए। एक पशुपालक ने बताया कि अब पशु पालना आसान भी नहीं है तथा गोरक्षा की मुहिम के बाद लोगों ने गाय पालनी कम कर दी हैं। प्रदेश में सन् 2012 की तुलना में सन् 2019 में गोवंश की संख्या में 3.93 प्रतिशत की कमी आ चुकी थी। इन चुनौतियों को देखते हुए स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दूध की नदियाँ बहाना उतना आसान नहीं है, जितना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मानकर चल रहे हैं। अपना सपना पूरा करने के लिए उन्हें धरातल पर उतरकर पहले उन समस्याओं से निपटना होगा, जो पशुपालकों के सामने खड़ी हैं।