उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को लेकर 6 महीनें से कम का समय बचा है पर, सियासत का बाज़ार गर्म है। किसानों को लखीमपुर में रौंदें जाने के बाद से उत्तर प्रदेश में नये समीकरण बनकर ऊभरें है। मौजूदा दौर में विपक्ष एकता की तो बात कर रहा है। परंतु एकजुटता के अभाव के कारण राजनीतिक समीकरण बनते–बनते बिगड़ने लगते है।
यदि समाजवादी पार्टी विजय यात्रा निकाल रही है। तो कांग्रेस मौन व्रत करके प्रदेश सरकार का विरोध कर रही है। बसपा के विरोध को मौजूदा सियासत में कोई विशेष महत्व नहीं दिया जा रहा है।
बतातें चलें, उत्तर–प्रदेश की राजनीति पूरी तरह से जातीय समीकरणों पर टिकी है। ऐसे में राजनीतिक दल जातीय ताना-बाना बुनने में लगें है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में किसानों को लेकर राजनीति गर्म है। सभी राजनीति दल किसानों के इर्द – गिर्द राजनीति कर रहे है। उत्तर प्रदेश की राजनीति का मिजाज सियासी दल जनता के बीच जाकर भाप रहें है । उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार प्रदीप सिंह का कहना है कि, “अगर भाजपा ने समय रहते किसानों की मांगों को नहीं माना और लखीमपुर में रौदें गये किसानों के परिजनों को न्याय नहीं दिया तो, चुनावी परिणाम चौंकाने वाले होगे। क्योंकि उत्तर प्रदेश की सियासत में हर पल समीकरण बन और बिगड़ रहे है।”
इसी तरह महगांई को लेकर जनता में भारी आक्रोश है। महगांई के चलते गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को बजट बिगड़ा हुआ है। कोरोना काल के चलते लाखों लोगों के रोजगार छिन गये है। प्रदीप सिंह का कहना है कि चुनाव में समय कम बचा है। काम ज्यादा है। इस लिहाज से सरकार को जनहित में फैसलें धरातल पर लेना होगा। यदि विपक्ष एकता के साथ सरकार की जन विरोधी नीतियों को जनता के बीच लें जाती है और जनता में पकड़ बनाती है। तो निश्चित तौर पर चुनावी परिणाम चौकाने वाले साबित होगें।