भले ही उत्तर प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा अभी नहीं हुई है। लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी यात्राएं निकाल कर अपनी बिसात बिछा दी है। और जनता का दिल जीतने में लगे है।
जैसे–जैसे चुनावी आहट तेज होती जा रही है। वैसे-वैसे प्रदेश का चुनाव शनैः शनैः समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच मुकाबला बढ़ता जा रहा है। भले ही अभी चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है।
इन दोनों दलों के बीच मुकाबले की मुख्य वजह साफ है कि बसपा और कांग्रेस के चुनाव लड़ने के तरीके सिर्फ चुनाव लड़ने वाले ही दिख रहे है। न कि चुनाव में कोई परिणाम चौंकाने वाले दिख रहे है। इस लिहाज से प्रदेश की जनता अब सीधे तौर पर सपा और भाजपा के बीच ही फैसला करना चाहती है। क्योंकि प्रदेश की जनता चाहती है कि पूर्ण रूप से एक दल की सरकार बनें, जिससे कि प्रदेश का विकास हो सकें। क्योंकि एक दल की सरकार न बनने पर, गठबंधन की सरकार बनने पर विकास के काम में रोड़ा बनती है।
जिस प्रकार 2007-2012 में बसपा की ही सरकार बनी थी। फिर, 2012-17 में सपा की सरकार बनी और उसके प्रदेश की जनता ने 2017 से 2022 तक भाजपा को पूर्ण समर्थन देकर जनता ने सरकार बनाने का मौका दिया था। उसी तर्ज पर इस बार भी चुनाव में जनता चाहती है कि एक ही दल की सरकार बनें। न कि गठबंधन की सरकार बनें।
प्रदेश की जनता का राजनीतिक मिजाज तो बदला है। इस लिहाज से जनता अगर इस बार सरकार को बदलने और न बदलने के मूड़ है या नहीं। ये तो आने वाले चुनाव परिणाम ही बतलाएंगे। लेकिन इतना तो जरूर है कि मौजूदा समय में जनता ने सपा और भाजपा के बीच मुकाबला तो कर दिया है। लेकिन सियासत में संभावनायें बनी रहती है कि कौन सा राजनीतिक दल कब कौन सा माहौल बना कर सियासी माहौल बना दें। फिलहाल प्रदेश की सियासत में आरोप–प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।