चीनी निगम की पिपराइच व मूँडेरवा की स्थापना में रमाला मिल के समान मशीनरी होने पर भी विशेष पार्टी को करोड़ों रुपये ज़्यादा में दिया ठेका
आगामी साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने और गन्ना किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार ने सन् 2017 में भाजपा की योगी सरकार ने तीन नयी बड़ी और अत्याधुनिक चीनी मिलें लगाने की घोषणा की। इस परियोजना में गोरखपुर के पिपराइच और बस्ती ज़िले की मूँडेरवा की चीनी मिलें थीं, जो बन्द पड़ी थीं; जबकि तीसरी शुगर फेडरेशन की बाग़पत जनपद की रमाला मिल थी। इस मिल की वर्तमान गन्ना पेराई क्षमता 2750 टीसीडी से बढ़ाकर 5000 टीसीडी की जाने की बात हुई थी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन तीनों चीनी मिल परियोजनाओं में 5,000 टीसीडी गन्ना पेराई की क्षमता के साथ-साथ 27 मेगावॉट बिजली उत्पादन इकाई की स्थापना करायी, ताकि गन्ना किसानों को समय से भुगतान मिल सके। लेकिन बीते क़रीब साढ़े चार साल से गन्ना मंत्री का आशीर्वाद प्राप्त विभाग से सम्बन्धित सरकारी उच्चाधिकारियों, चीनी निगम और शुगर फेडरेशन में परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने चीनी मिल के अधिकारियों की मिली-भगत से गन्ना किसानों को जल्द भुगतान करने के बजाय अपनी आय दोगुनी कर ली। स्थिति यह आ गयी कि उपरोक्त चीनी मिलें करोड़ों के घाटे में चली गयीं।
सच्चाई यह है कि उत्तर प्रदेश में गन्ना एवं चीनी विभाग के अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने, कुप्रबन्धन बनाकर रखने और अपनी जेबें गरम करने के चलते कई चीनी मिलें भारी घाटा होने के कारण बन्द होती चली गयीं। यहाँ तक कि एक ज़माने में उत्तर प्रदेश की चीनी का कटोरा (शुगर बाउल) कहे जाने वाले ज़िला देवरिया में सबसे ज़्यादा चीनी मिलें थीं, जो सरकारों की अनदेखी और अफ़सरों के भ्रष्टाचार के कारण कालांतर में बन्द हो गयी। एक समय ऐसा भी आया, जब पूर्वांचल के तक़रीबन सभी ज़िलों में चल रहीं निगम और सरकारी मिलें भारी घाटे के कारण बन्द हो गयीं और गन्ना किसान न के बराबर रह गये।
सन् 2017 में भाजपा की सरकार बनते ही योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल के किसानों को संजीवनी देने के लिए गोरखपुर सहित वर्षों से बन्द पड़ी चीनी निगम की दो चीनी मिलों को लगाने के लिए ई-टेंडर निकाले। शुगर मिल लगाने वाली फर्मों का चयन किया गया। लेकिन गन्ना विभाग में शासन के मुखिया सहित तत्कालीन एमडी, फेडरेशन और निगम में परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने योगी की शून्य भ्रष्टाचार (ज़ीरो टॉलरेंस) नीति की धज्जियाँ उड़ा दीं। रमाला की चीनी मिल परियोजना के लिए मशीनरी आपूर्ति सहित इरेक्शन और सिविल का ठेका सरकार ने ग़ाज़ियाबाद की एक पार्टी को 310 करोड़ रुपये में दिया। चीनी निगम के परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने तत्कालीन एमडी तथा एसीएस गन्ना से मिलकर बड़ी सफ़ार्इ से रमाला की निविदा दे दी। रमाला के समान तकनीकी स्पेसिफिकेशन पर पिपराइच और मूँडेरवा के लिए समान काम का ठेका 42 करोड़ रुपये प्रति मिल ज़्यादा में तय करके उनका ठेका 252 करोड़ रुपये में दे दिया। इस प्रकार रमाला मिल की तुलना में एक ही विभागीय मंत्री, एसीएस गन्ना व एमडी के होते योगी के ज़िलों में स्थापित होने वाली निगम की चीनी मिलों में फर्म से साँठ-गाँठ करके क़रीब 84 करोड़ से अधिक का चूना लगाकर अपनी अपनी जेबें भर लीं, जिसकी किसी को कानोंकान ख़बर तक नहीं हुई।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि बाग़पत की रमाला परियोजना में तकनीकी बिड में 5000 टीसीडी क्षमता वाली दो मिलें लगाने के अनुभव की शर्त रखी गयी। निगम की पिपराइच एवं मूँडेरवा मिलों में 3,500 टीसीडी की पेराई क्षमता बड़ी सफ़ार्इ से और बढ़ा दी गयी। इसी तरह वित्तीय बिड में भी रमाला के विगत पाँच साल के औसतन टर्नओवर 250 करोड़ रुपये की शर्त को निगम के अधिकारियों ने बढ़ाकर औसतन 300 करोड़ रुपये कर दिया और दो मिलें लगाने पर इसे बढ़ाकर 600 करोड़ रुपये कर दिया। नतीजा यह हुआ कि रमाला की बिड में भाग लेने वाली नोएडा की इस फर्म को छोडक़र सभी पार्टियाँ बिड से बाहर हो गयीं। विभागीय मंत्री सहित अपर मुख्य सचिव गन्ना, तत्कालीन एमडी और परियोजना के अधिकारियों ने इन महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए योजनाबद्ध तरीक़े से तीन-चार बार टेंडर निकालकर अन्तिम बार एक ही फर्म का ठेका
84 करोड़ रुपये से ज़्यादा में देकर वारे-न्यारे कर लिये। इस सम्बन्ध में जब एसीएस गन्ना, गन्ना मंत्री और गन्ना आयुक्त से पूछा गया, तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इसका ख़ामियाज़ा इन मिलों के गन्ना किसानों पर पड़ा। जहाँ रमाला मिल पर अभी भी गन्ना किसानों का पेराई सत्र 2020-21 के क़रीब 130 करोड़ रुपये का भुगतान और चीनी निगम की मिलों पर भी कुल क़रीब 128 करोड़ रुपये का भुगतान का बक़ाया है।
अब भाजपा सरकार आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों में जीत का सपना सजाये बैठी है। इसके लिए हो सकता है कि योगी सरकार गन्ने का भाव बढ़ा दे और गन्ने का बक़ाया भुगतान भी तेज़ी से करे। लेकिन यह भी सच है कि आगामी पेराई सत्र 2021-22 के शुरू होने में दो महीने से भी कम का समय रह गया है, जबकि गन्ना किसानों का कुल बक़ाया मूलधन भी क़रीब 7,000 करोड़ रुपये है। यदि इसमें योगी सरकार के कार्यकाल के समय का ब्याज और जोड़ दिया जाए, तो गन्ना मूल्य भुगतान का कुल बक़ाया क़रीब 10,000 करोड़ रुपये से ऊपर है।
जबकि एसीएस, गन्ना आयुक्त एवं विभागीय मंत्री भाजपा की चार साल की सरकार में गन्ना किसानों को होर्डिंग लगवाकर रिकॉर्ड 1,40,000 करोड़ रुपये के भुगतान का दावा करते हैं। मैं स्वयं के गन्ना किसान के परिवार से होने के नाते इस दावे को सिरे से नकारता हूँ। क्योंकि विगत वर्ष उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का पेराई सत्र 2019-20 का तक़रीबन 4,000 करोड़ रुपये से ऊपर बक़ाया था। गन्ना मंत्री एवं गन्ना आयुक्त ने नियमों को ताक पर रखते हुए इस बक़ाया धनराशि का भुगतान पेराई सत्र 2020-21 में किसानों से गन्ना ख़रीदकर उससे उत्पादित चीनी की बिक्री कराकर गुपचुप तरीक़े से पहले कराया। चीनी मिलों के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ हो कि अधिकतर मिलों ने इस तरह ग़लत तरीक़े से गन्ना आयुक्त की शह पर भुगतान किया हो। इसका ख़ामियाज़ा गन्ना किसानों को भुगतना पड़ा। क्योंकि नयी चीनी बेचकर मिलों ने पुराना भुगतान कर दिया, जिससे चीनी मिलों पर अब किसानों के क़रीब 7,000 करोड़ रुपये बक़ाया हैं। सवाल यह उठता है कि जब पेराई सत्र 2020-21 की उत्पादित चीनी से विगत वर्ष का भुगतान किया गया, तो फिर पेराई सत्र 2019-20 के गन्ने द्वारा उत्पादित चीनी कहाँ गयी?
जानकार बताते हैं कि पेराई सत्र 2020-21 में जो क़रीब 7,000 करोड़ रुपये बक़ाया हैं, उसमें से क़रीब 1200-1300 करोड़ रुपये सहकारी और निगम की चीनी मिलों पर बक़ाया हैं। शेष 5,600 करोड़ रुपये निजी मिलों पर बक़ाया हैं। इसमें मुख्य डिफाल्टर की सूची में बजाज की 14 मिलों के साथ-साथ मोदी, सिम्भावली, यदु आदि मिलें हैं। इन मिलों पर गन्ना आयुक्त की इतनी मेहरबानी है कि इन मिलों ने किसानों की बक़ाया धनराशि का अभी तक केवल 15 से 35 फ़ीसदी भुगतान ही किया है। जबकि इन्हीं उत्पादों और सह-उत्पादों के साथ बलरामपुर ग्रुप सहित डीएससीएल, त्रिवेणी, धामपुर, डालमिया, बिरला, मुज़फ़्फ़रनगर की टिकौला, सीतापुर की बिसवा, पीलीभीत की एलएच सहित अन्य ऐसी कई चीनी मिलों ने अपने गन्ना किसानों को 100 फ़ीसदी भुगतान जुलाई में ही कर दिया। मंत्री व अधिकारियों से पूछा जाना चाहिए कि उसी चीनी, शीरा, बैगास, बिजली उत्पादन और इथेनॉल के सहारे समय से इन मिलों ने पूरा गन्ना मूल्य भुगतान कर दिया, तो फिर बजाज, मोदी, सिम्भावली सहित अन्य ग्रुप की चीनी मिलें किसानों की बक़ाया धनराशि का भुगतान क्यों नहीं कर पा रही हैं? गन्ना आयुक्त ने सरकार को दिखाने के लिए पिछले पाँच साल के अपने कार्यकाल में मात्र इस वर्ष पाँच मिलों की ही आर.सी. काटी है, तो फिर किसानों का भुगतान न करने वाली शेष चीनी मिलों की आर.सी. क्यों नहीं काटी गयी? एक अनुमान के अनुसार, सरकारी चीनी मिलों का अब तक घाटे का आँकड़ा तक़रीबन 500 करोड़ से कही ऊपर पहुँच चुका है। सवाल यह है कि जब चीनी उत्पादन में कोई कमी नहीं है, तो मिलें घाटे में क्यों हैं?
बहरहाल मेरे द्वारा प्रदेश के गन्ना मंत्री और गन्ना आयुक्त को इस विषय में भेजे गये सवालों और फोन पर वार्ता के बावजूद कोई जवाब न देना यह दर्शाता है कि सरकार के महत्त्वपूर्ण पदाधिकारी मुख्यमंत्री योगी की इस ड्रीम परियोजना को पलीता लगाने का काम कर रहे हैं। मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री का साल 2022 में किसानों की आय को दोगुना करने का सपना और मुख्यमंत्री योगी की ड्रीम परियोजना सहकारी गन्ना मिलों की तकनीकी को उन्नत करते हुए उत्पादन बढ़ाकर चीनी मिलों की हालत में सुधार करना चाहती है, तो सबसे पहले उनमें हो रहे भ्रष्टाचार को ख़त्म करना होगा। इसके लिए हर साल ऑडिट और गम्भीरता पूर्वक जाँच कराकर भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी होगी। साथ ही यह देखना होगा कि सहकारी चीनी मिलों की तकनीक और उनके अधिकारियों का अनुभव निजी चीनी मिलों की तुलना में कहाँ और किस प्रकार कमतर है?
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)