उत्तर प्रदेश की राजनीति में छोटे-मोटे बदलाव होते रहना कोई बड़ी बात नहीं है। मगर जब प्रश्न सत्ता का हो, तो दावेदारों की कमी नहीं होती। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश पर शासन करना न आसान है तथा न छोटी बात; क्योंकि यह बड़ा प्रदेश केंद्र की सत्ता का दरवाज़ा है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चाहे जो भी रहा हो, उसने प्रधानमंत्री बनने का सपना अवश्य देखा होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यह सपना पिछले कई वर्षों से देखते आ रहे हैं। सच तो यह है कि उनके समर्थक इस पर बेझिझक खुलकर बात भी करते हैं तथा यह भी मानते हैं कि आने वाले समय में योगी आदित्यनाथ ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
योगी आदित्यनाथ की यह राह कितनी कठिन है तथा कितनी सरल? यह तो नहीं पता; मगर उनकी उत्तर प्रदेश में चलती कितनी है, इस पर कई बार प्रश्नचिह्न लगे हैं। कहा जाता है कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अवश्य हैं, मगर उनकी इच्छा से हर काम नहीं होता। क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में कई मंत्री ऐसे हैं, जिनका चुनाव केंद्र की सत्ता ने किया है। एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की विनती करते हुए बताया कि इस वर्ष विधानसभा चुनावों में अधिकतर टिकट देने का निर्णय भी दिल्ली से ही हुआ था तथा मंत्रिमंडल में भी वहीं का दख़ल अधिक रहा।
जो भी हो, अब बारी एक ऐसे पद पर चयन की आ चुकी है, जिसका क़द बहुत बड़ा माना जाता है। यह पद है- उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष का। किसी पार्टी की सत्ता हो, तो उसका अध्यक्ष स्वयं को मुख्यमंत्री के समकक्ष ही समझता है। समझे भी क्यों नहीं, उसके वारे-न्यारे होते हैं। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में स्वतंत्र देव सिंह प्रदेश अध्यक्ष हैं तथा जल शक्ति मंत्री भी। मगर अब जल्द ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र देना होगा। सभी जानते हैं कि भाजपा में एक व्यक्ति-एक पद की परम्परा आरम्भ हो चुकी है। इसके अतिरिक्त स्वतंत्र देव सिंह तीन साल का अपना कार्यकाल भी पूरा कर चुके हैं। अतएव नये अध्यक्ष का चुना जाना तय है। मगर नया अध्यक्ष कौन होगा, इस पर अटकलों तथा उड़ती सूचनाओं ने लोगों को कानाफूसी करने का अवसर प्रदान कर दिया है। प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या योगी आदित्यनाथ की इच्छा से उनका कोई पसन्दीदा व्यक्ति प्रदेश अध्यक्ष बनेगा या दिल्ली की सत्ता प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करेगी? क्योंकि एक तो दिल्ली दरबार में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की हाज़िरी चर्चा का विषय बनी हुई है, तो दूसरे कई नेताओं में वहाँ हाज़िरी लगाने की छटपटाहट भी देखी जा रही है।
इस महत्त्वपूर्ण पद पर पिछले तीन महीने में कई नाम चर्चा में आ चुके हैं, जिनमें केंद्र सरकार व राज्य सरकार के नेताओं, मंत्रियों, विधायकों व सांसदों तक के नाम सामने आ रहे हैं। इनमें सांसद डॉ. रामशंकर कठेरिया, केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर, सांसद विनोद सोनकर, केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, सांसद सुब्रत पाठक, सांसद हरीश द्विवेदी, प्रदेश के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी, डॉ. दिनेश उपाध्याय, गोविंद नारायण शुक्ला, ब्रज बहादुर शर्मा जैसे कई नाम भी सामने आ रहे हैं।
अब तक देखा गया है कि किसी विशेष पद पर अचानक सामने आये नाम तथा जानकारों के अनुमान धरे-के-धरे रह जाते हैं तथा एक ऐसा नाम निकलकर सामने आता है, जिसको कोई कल्पना तक नहीं कर रहा होता है। हालाँकि इस वर्ष दिल्ली की सत्ता पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति के लोगों को प्रसन्न करने के बारे में सोच सकती है। ऐसे में हो सकता है कि इन वर्गों का कोई बड़ा चेहरा चुन लिया जाए।