पंजाब में कांग्रेस की तरफ से नया मुख्यमंत्री बनने के बाद आज शाम वहां मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा। उधर पंजाब की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी आज मंत्रिमंडल का विस्तार होने वाला है। माना जाता है कि पंजाब में कांग्रेस के अनुसूचित जाति का मुख्यमंत्री बनाये जाने के असर को देखते हुए उत्तर प्रदेश में भाजपा इन वर्गों से मंत्री बना सकती है।
यूपी में चार महीने बाद चुनाव होने हैं। लिहाजा भाजपा इसे ध्यान में रखते हुए केबिनेट विस्तार कर रही है। कहा जा रहा है कि कुछ महीने पहले कांग्रेस से भाजपा में दलबदल कर आए जितिन प्रसाद समेत सात मंत्रियों को जगह मिल सकती है। इनमें पलटू राम, संजय गौड़, संगीता बिंद, दिनेश खटिक, धर्मवीर प्रजापति और छत्रपाल गंगवार के नाम चर्चा में हैं।
यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार काफी समय से प्रतीक्षित है। अब इसमें अनुसूचित को ज्यादा जगह देने की भाजपा की कोशिश है। माना जाता है कि पंजाब में कांग्रेस के अनुसूचित जाति का मुख्यमंत्री बनाये जाने के असर को देखते हुए उत्तर प्रदेश में भाजपा इन वर्गों से मंत्री बना सकती है।
याद रहे जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में भी चुनाव के कारण यूपी को प्रमुखता दी गई थी और यूपी से बनाए सात मंत्रियों में चार ओबीसी, दो दलित थे। इस समय यूपी से मोदी सरकार में 15 मंत्री हैं, जो एक रेकॉर्ड है।
उधर पंजाब की कांग्रेस सरकार में भी आज मंत्रिमंडल विस्तार शाम 4.30 बजे होगा। पंजाब में नए मंत्रिमंडल विस्तार के लिए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने शनिवार को राज्यपाल से मुलाकात की थी। करीब 15 मंत्रियों की शपथ होगी। पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के पांच समर्थक मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है।
जानकारी के मुताबिक परगट सिंह, राजकुमार वेरका, गुरकीरत सिंह कोटली, संगत सिंह गिलजियान, अमरिंदर सिंह राजा वारिंग, कुलजीत नागरा और राणा गुरजीत सिंह को केबिनेट में शामिल किए जाने की संभावना है। उधर अमरिंदर सिंह के नजदीकी गुरप्रीत सिंह कांगड़, राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी और साधु सिंह धर्मसोत मंत्रिमंडल से बाहर हो सकते हैं।
पुरानी केबिनेट के मंत्री ब्रह्म महिंदरा, मनप्रीत बादल, तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखविंदर सिंह सरकारिया, अरुणा चौधरी, रजिया सुल्तान, विजेंद्र सिंगला और भारत भूषण आशू फिर मंत्री बनाए जा सकते हैं। यह भी चर्चा है कि अरुणा चौधरी को मंत्री नहीं बनाया गया तो वे विधानसभा की अध्यक्ष बनाई जा सकती हैं। हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस काफी सतर्क दिखती है, ताकि ‘संकट की किसी स्थिति’ में चीजों को संभाला जा सके।