उत्तर-पूर्व में जीत का जो उन्माद भाजपा में भरा था, वह उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनावों में मिली पराजय से उतर गया। गोरखपुर की सम्मान का प्रतीक बनी सीट के हारने से भाजपा को खासा धक्का लगा है। ध्यान रहे कि गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई थी। वे इस सीट से पांच बार चुने गए थे। इसके साथ फूलपुर की सीट भी उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या के पास थी। समाजवादी पार्टी ने ये दोनों सीटें मायावती के सहयोग से आसानी से जीत लीं। मौर्या ने स्वयं कहा कि बसपा ने बड़ी सफलता से अपने वोट समाजवादी पार्टी को दिलवा दिए।
इस जीत का अनुभव अगले लोकसभा चुनावों में एक बड़े गठबंधन का आधार बन सकता है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल आरजेडी ने अररिया संसदीय सीट और जहानाबाद की विधानसभा सीटों पर कब्जा कर लिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एकदम ट्वीट कर लालू प्रसाद यादव को बधाई दी। इससे भविष्य में अच्छे गठबंधन के संकेत मिलते हैं।
केसरिया झंडे का अब त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में लहराना भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) की ऐतिहासिक जीत है। इससे संकेत मिलता है कि कांग्रेस पार्टी किस तरह सिमट रही है और भारतीय जनता पार्टी लगातार कितनी तेजी से विकास कर रही है। उत्तरपूर्व के तीनों राज्यों में भाजपा की जो विजयगाथा लिखी गई है वह अविस्मरणीय है। पूरे देश के 29 राज्यों में से 22 राज्यों पर पार्टी या उसके सहयोगियों का सीधा नियंत्रण है। इसका राजनीतिक संदेश बहुत साफ है कि कांग्रेस का हाथ त्रिपुरा और नगालैंड में ज़ीरो रह गया है।
जबकि 2013 में त्रिपुरा में कांग्रेस को दस सीटें मिली थीं और नगालैंड में 2013 में आठ सीटें मिली थी। भाजपा अब खुद को उत्तर भारत की पार्टी नहीं अखिल भारतीय पार्टी होने का दावा कर सकती है। अब भाजपा की निगाहें कर्नाटक, ओडिसा,बंगाल पर हैं साथ ही राजस्थान और मध्यप्रदेश में एंटी इकंबैंसी का कामयाबी से मुकाबला करने पर।
पारंपरिक तौर पर उत्तरपूर्वी राज्य केंद्र में राज कर रही पार्टी की ही ओर झुकते हैं क्योंकि उन राज्यों की ज़रूरत ‘ग्रांटÓ और ‘फंडÓ की रहती है। लेकिन भाजपा ने उत्तरपूर्वी राज्यों में अपना जो सिक्का जमाया है वह इस सोच से बिलकुल अलग इसलिए है क्योंकि इन राज्यों के मतदाताओं ने खुद केसरिया को मत देकर अपनी पसंद जताई है। यानी यह पार्टी न केवल हिंदी इलाकों में बल्कि असम, मणिपुर, नगालैंड, अरूणाचल और अब त्रिपुरा के लोगों की पसंदीदा पार्टी है। दरअसल जब से ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में माकपा को परास्त किया तब से वामपंथी बेहद अलग-थलग पड़ गए हैं। उधर उत्तरपूर्व में भाजपा का प्रदर्शन कम से कम वाम राज की त्रिपुरा से विदाई को बताता है। इसने 59 सीटों में से 43 पर जीत हासिल की है। त्रिपुरा में जीत का महत्व इसलिए भी ज़्यादा है क्योंकि त्रिपुरा में वामपंथी मोर्चा 25 साल से लगातार राज कर रहा था।
‘चलो पल्टाई’ ने खींचा ध्यान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई और देखरेख में पार्टी की चुनावी मशीनरी सक्रिय रही। इसे 2013 में जहां शून्य मिला था वहीं आज इसकी सरकार बनी है। वाकई ‘चलो पल्टाईÓ और विकास के वादे का मतदाताओं पर असर पड़ा और उन्होंने उखाड़ फैंकी सरकार वह भी माणिक सरकार की। आंकड़ों के अनुसार त्रिपुरा में पूरे देश की तुलना में सबसे ज़्यादा बेरोजगारी है। लेकिन माकपा आज भी वामपंथियों की पुरानी पड़ गई विचारधारा जिसमें समान अधिकारों की क्रांति का ही राग अलापती है। जबकि भाजपा विकास और बदलाव की रणनीति का वादा करती है। त्रिपुरा में 25 साल से चला आ रहा वामपंथी राज अब धसक चुका है। भाजपा को 60 सदस्यों वाली विधानसभा में दो तिहाई का बहुमत मिल गया है। इस तरह माणिक सरकार का चार बार मुख्यमंत्री बने रहने का सिलसिला भी टूट गया है।
सत्ता संभाल रही माकपा को आंकड़ों के खेल में हराया। सत्ता में रही माकपा को 42.6 फीसद वोट तो मिले लेकिन वाम मोर्चा को आंकड़ों के खेल में पराजय मिली। यह 50 से घट कर 16 सीट पर आ गई। कांग्रेस तो पूरी तौर पर हवा हो गई। इसका 2013 में 36.53 फीसद वोटों की हिस्सेदारी थी लेकिन इस बार उसका खाता ही नहीं खुला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘शून्य से शिखर तक की यात्रा इसलिए ही कामयाब हो पाई क्योंकि विकास का मज़बूत एजेंडा है और हमारा संगठन मज़बूत रहा है।Ó
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा उनकी पार्टी की प्रभावशाली विजय से यह संकेत मिलता है कि अगले कुछ और चुनाव जो आगे होने हैं उनमें भी ऐसा ही होगा। पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है। वे 2019 के चुनावों की तैयारी में अभी से लगे हुए हैं।
वहीं माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया कि भाजपा ने त्रिपुरा में धन और बाहुबल का इस्तेमाल किया।
कुछ आसार बनते दिखते हैं पर
यह साफ है कि त्रिपुरा और नगालैंड में भाजपा को लाभ हुआ है। कांग्रेस ने हमेशा अपने को कमज़ोर करते हुए भाजपा को बढ़ाया। गुजरात में ज़रूर कांग्रेस के जीवंत होने के आसार दिखे भी। राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की उपचुनावों में जीत हुई है। राहुल गांधी के नए अवतार से यह शोर भी मचा है कि मोदी का जादू अब खत्म हो रहा है। लेकिन अब उसमें खासा ठहराव आ गया है। यों भी राहुल गांधी की जो तस्वीर तब बनी थी वह उत्तरपूर्वी राज्यों के नतीजों के आने के बाद खत्म हो गई। यह उम्मीद बंधी कि भाजपा काफी मज़बूत है।
जब 2013 के विधानसभा चुनावों में इसकी सिर्फ 1.6 फीसद मतों की हिस्सेदारी थी और एक भी सीट नहीं मिल सकी थी लेकिन अपने दम पर आज इसका मत फीसद 43 फीसद है जो अमूल्य है। भाजपा न केवल अगरतला के शहरी इलाकों में जीती बल्कि दक्षिण, मध्य और पूर्वी त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों में भी जीती।
यह सिलसिला नगालैंड में भी चला जहां इसे 12 सीटें और मत फीसद 15.3(जो 1.8 फीसद से बढ़ा) मिला। नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी से हुआ गठबंधन जिस में 16 सीटों पर जीत हासिल हुई। इससे जाहिर हुआ कि पार्टी की कितनी सधी हुई रणनीति है। मेघालय में किसी पार्टी को बहुमत 1976 से ही नहीं मिला। इसे राज्य में भी भाजपा को मत फीसद 1.3 से बढ़कर 9.6 फीसद हुआ।
उत्तरपूर्वी राज्यों की लोकसभा में 25 सीटें हैं। भाजपा ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और दूसरी जगहों पर हुए नुकसान की भरपाई इस इलाके में कर ली। पार्टी ने छोटे राज्यों को नज़रअंदाज न कर एक उदाहरण भी पेश किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस के किसी भी नेता की तुलना में यहां सबसे ज़्यादा चुनाव रैलियां की। इसके पहले कोई कांग्रेसी नेता और वर्तमान में कभी यहां रैलियां करने के लिए सक्रिय नहीं दिखा बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ट्वीट करके यह चिढ़ाया भी गया कि ‘चुनाव शायद इटली में हो रहे हैं। कांग्रेस के प्रमुख लोगों का इटली में ‘नानी’ को देखने जाने पर यह चकल्लस हुई।
रोशनी में हिरण
कांग्रेस का हाल वैसा ही दिखा मानो तेज रोशनी में हिरण दिखे। मेघालय में जहां कभी कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बतौर उभरी थी। वहां अब कोनराड संगमा के नेतृत्व में भाजपा की साझादारी में सरकार ने शपथ ली। मेघालय में 28 सीटें इसे मिली ज़रूर। यानी सबसे बड़ी पार्टी होने का मौका भी मिला। लेकिन सतर्क भाजपा बाजी मार ले गई। उसने ज़्यादा मत पाने वाली पार्टी को समर्थन दिया। लगभग ऐसा ही वाकया गोवा विधानसभा चुनाव में हुआ था जहां कांग्रेस को 17 सीटें,भाजपा को 13 सीटें मिली थी। लेकिन भाजपा ने इच्छुक विधायकों को अपने साथ लेते हुए वहां सरकार बना ली। भाजपा अब सरकार बनाते हुए इस कला में पटु हो गई है।
भाजपा ने जनता को रिझाने वाला एक नारा ‘कांग्रेस मुक्त भारतÓ खूब प्रचारित किया है। इससे लगता है कि किसी गैर भाजपा शासित पार्टियों के राज में यह कठिन ही होगा कि केंद्र में राज चला रही पार्टी के खिलाफ वे मुहिम चला सकें। भाजपा का इरादा ‘विपक्ष मुक्त भारतÓ का रहा है और उसे वे हासिल भी करते जा रहे हैं। धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक पार्टियों का किसी न्यूनतम साझा कार्यक्रम में एकजुट होना शायद ही कामयाब हो। यह बात उत्तरपूर्व में केसरिया के फैलाव से अब जगजाहिर है। यह देखना भी रोचक होगा उत्तरपूर्वी राज्यों में केसरिया पताका के फहराने के बाद विभिन्न राज्यों में राजनीति क्या रूप लेती है।