ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ लामबंद हो रहे खुदरा व्यापारी

देश में ऑन लाइन खरीदारी का ग्राफ बढऩे के बाद अपना धंधा चौपट होते देख अब भारत के खुदरा व्यापारी ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों अमेजन, फ्लिपकार्ट और अन्य के िखलाफ लामबंद हो रहे हैं। इन व्यापारियों के देशव्यापी संगठन कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने ई-कॉमर्स का विरोध करने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने का ऐलान कर दिया है।

गौरतलब है कि ‘तहलका’ ने पिछले अंक में ई-कॉमर्स आउटलेट्स पर एक खास रिपोर्ट छापी थी, जिसमें इन व्यापारियों में ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों के खिलाफ बढ़ती नाराज़गी का विस्तार से िज़क्र किया गया था। अब देश का सबसे बड़ा व्यापारी संगठन सीएआईटी खुलकर इनके विरोध में आ गया है।

व्यापारियों के संगठन सीएआईटी कि ई-कॉमर्स कंपनियाँ हुलाम एफडीआई नीति के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रही है, जिसका विपरीत असर खुदरा व्यापार पर पड़ा है और यह खत्म होने की हालत में पहुँच रहा है।

सीएआईटी ने अब अमेजन और फ्लिपकार्ट के खिलाफ विरोध करने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की चेतावनी दे दी है। कन्फेडरेशन ने कहा कि एक ज्ञापन एमपीएस को सौंपा जाएगा और विरोध के शुरुआती चरण में 200 शहरों में धरना आयोजित किया जाएगा।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ई-कॉमर्स उद्योग के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर छूट और मूल्य निर्धारण पर चिंताओं के समाधान के लिए एक नीति की योजना बना रहा है। सीसीआई शीघ्र ही इस सम्बन्ध में एक नीति परामर्श जारी करेगा।

सीसीआई के अध्यक्ष अशोक गुप्ता ने इस बात पर सहमति जताई कि कोई भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकता है कि ऑनलाइन यहाँ रहने के लिए है, लेकिन ई-कॉमर्स उद्योग को भारत में खुदरा क्षेत्र की तरफ़ से उठायी जा रही तमाम चिंताओं को निपटाना होगा।

कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने इस बारे में कहा- एक नीति हर देश में लागू है। यदि बहुराष्ट्रीय कंपनी किसी देश में व्यापार करती है, तो वह उस नीति का पालन करने के लिए बाध्य है। खंडेलवाल ने कहा कि ग्राहक अकल्पनीय छूट के कारण ऑनलाइन जा रहे हैं। इस वजह से इस महीने ऑफलाइन कारोबार की बिक्री में 30 से 40 फीसदी कमी आई है।

भले देरी से सही, ऑफलाइन व्यापारी ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ अब लामबंद हो रहे हैं। वे सरकार पर एक समान नीति पर ज़ोर देने लगे हैं। अगले कुछ महीनों में ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ एक नीति तय किए जाने की सम्भावना है, क्योंकि वे इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि विदेशी निवेश के लिए ज़्यादा दरवाो खोले जाएँ और कारोबारी माहौल में सुधार हो। सम्भावित नीति किसी उत्पाद पर अधिकतम छूट को सीमित कर सकती है और मूल्य-निर्धारण विवरण में छूट के विस्तृत ब्रेकअप को सुनिश्चित किये जाने की भी सम्भावना है, ताकि यह सुनिश्चित हो कि ई-कॉमर्स पोर्टल इसका वित्तपोषण नहीं कर रहे।

सीएआईटी इसके लिए ज़ोर डाल रही है और सरकार ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि ऑफलाइन रिटेलर्स प्रमुख ई-कॉमर्स फर्मों के सामने खत्म न हो जाएँ। वैसे ऑनलाइन मार्केट प्लेस अपनी ओर से हमेशा यह दावा करते रहे हैं कि वे छूट से जुड़े सभी दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं और ये विक्रेता हैं, जो छूट की पेशकश कर रहे हैं। ऑफलाइन और पारम्परिक व्यापारी छूट मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर स्पष्ट नीति चाहते हैं।

ई-कॉमर्स कंपनियाँ त्योहारों के सीजन से पहले विशेष छूट की घोषणा कर देती हैं। हाल में दिवाली और अन्य त्योहारों से पहले ऑनलाइन कंपनियों ने भारी भरकम छूट उपभोक्ताओं को दी। उनकी ओर से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म दावा करते रहे हैं कि केवल विक्रेता ही बड़ी छूट की पेशकश करते हैं। उनका दावा है कि खुद ई-मार्केटप्लेस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें प्रभावित नहीं करता है।

सीएआईटी जैसे पारम्परिक खुदरा विक्रेताओं और व्यापारी निकायों का आरोप है कि ऑनलाइन कंपनियाँ अपने नामों के तहत मेगा बिक्री के साथ बाहर आती हैं, न कि विभिन्न बिक्री ब्राण्डों के नाम पर। यह पता चला है कि सरकार इस बात पर गौर कर रही है कि क्या वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट और अमेजॉन.कॉम पर दी जाने वाली भारी छूट विदेशी निवेश नियमों का उल्लंघन तो नहीं। सरकार अखिल भारतीय व्यापारियों के परिसंघ की दायर की गई शिकायतों और सबूतों की समीक्षा भी कर रही है। सीएआईटी से करीब 7 करोड़ खुदरा विक्रेता जुड़े हैं।

व्यापारियों के निकाय सीएआईटी ने सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए इस महीने कई विरोध-प्रदर्शनों की घोषणा की है। इसने पहले प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ई-कॉमर्स छूट के िखलाफ कार्यवाही करने का आग्रह भी उसने किया था। यह पता चला है कि किसानों, फेरी वालों, छोटे उद्योगों और स्वयं उद्यमियों को आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा जाएगा। विभिन्न रिपोर्ट्स के अध्ययन से ज़ाहिर होता है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को मध्यस्थ बैठकों, कोर्ट-रूम और सरकार के पास ले जाने के बाद ऑल इंडियेा ट्रेडर्स के कन्फेडरेशन ने अब फ्लिपकार्ट, अमेजन और अन्य ई-कॉमर्स कंपनियों के िखलाफ महीने-भर चलने वाले देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है।

दरअसल, प्रमुख मुद्दा तटस्थता का है; क्योंकि ऑनलाइन बिक्री सीधे पारंपरिक विक्रेताओं के लाभ को प्रभावित करती है। ई-कॉमर्स एक तरह का हितों का टकराव पैदा करता है। ई-कॉमर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (टीईसीआई) के एक सर्वेक्षण में 89 उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि बाज़ार की तटस्थता एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में महत्त्वपूर्ण थी और बाज़ार में प्लेटफॉर्म पर अपने स्वयं के या सम्बन्धित पार्टी विक्रेताओं में से कोई भी नहीं होना चाहिए। इसके अलावा लगभग 94 फीसदी ने महसूस किया कि बाज़ार नियंत्रित विक्रेताओं ने प्लेटफॉर्म पर स्वतंत्र विक्रेताओं के व्यवसाय को चोट पहुँचायी है। लगभग 90 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि मार्केटप्लेस निजी लेबल मार्केट प्लेस के लिए हितों का टकराव पैदा करते हैं और मार्केट प्लेस को अपने प्लेटफॉर्म पर अपने निजी लेबल को बेचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

टीईसीआई के सर्वेक्षण में 541 उत्तरदाताओं की भागीदारी रही जो फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडील, पेटीएम मॉल और शॉप क्लूज पर कम-से-कम 12 महीने से ऑनलाइन से जुड़े हैं। सर्वेक्षण में 89 फीसदी उत्तरदाताओं का यह साफ मानना था कि ऑनलाइन बिक्री के लिए कानूनों, नियमों और िज़म्मेदारियों में ऑफलाइन बिक्री के लिए समानता होनी चाहिए।

हालाँकि सर्वेक्षण सीएआईटी के दृष्टिकोण का समर्थन करता दिखता है। व्यापारियों के निकाय का आरोप है कि फ्लिपकार्ट और अमेजन दोनों सरकार के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। उसके आरोप के मुताबिक वे मूल्य निर्धारण और बड़े डिस्काउंट से देश के खुदरा व्यापार को खत्म कर रहे हैं।