हमारी स्कूली शिक्षा में 15वीं कक्षा नहीं होती है, इसलिए हम 12वीं कक्षा से ही काम चला लेंगे. यदि देश भर की 12वीं कक्षा के बच्चों को 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) पर एक निबंध लिखने का काम सौंपा जाए तो उसके जो परिणाम आएंगे, उससे थोड़ा बेहतर ही होता है 15 अगस्त पर हमारे प्रधानमंत्रियों द्वारा दिया जाने वाला भाषण.
तिरंगा फहराया जाता है और उसके बाद लाल किले की प्राचीर से शुरू हो जाता है एक पचरंगा निबंध. अक्सर इस दिन बादल छा जाते हैं और पानी भी गिरने लगता है. इस पचरंगा भाषण को सड़ने से बचाने के लिए छाते भी ताने जाते हैं. विरोध का रंग काला माना जाता है इसलिए ध्यान रखा जाता है कि छाते काले रंग के न हों. इस भाषण में पांच चीजें होना जरूरी होता है. विकास की बात तो सबसे पहले होनी ही चाहिए. इसके लिए सब अच्छी उपमाएं पहले से ही खोज ली गई हैं. लंबा रास्ता है. कठिन चढ़ाई है. लेकिन हम सब कदम-से-कदम मिलाकर इस पर बढ़ते चलेंगे और इस देश को विकास के एक ऊंचे शिखर पर ले जाएंगे. इसी के साथ जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद दर) की चर्चा भी होना स्वाभाविक है. खेती को भला कैसे भूल सकते हैं और जब किसान की याद आएगी तो फिर जय जवान को कैसे भूला जा सकता है. थोड़ी-सी चर्चा पड़ोसी देशों और बाहरी ताकतों की भी होनी चाहिए.
इसके बिना वह अदृश्य बाहरी हाथ या बाहरी शक्ति कैसे समझ में आएगी? इसके षड्यंत्र के कारण हमारे घर में शांति स्थापित नहीं हो पाती और महंगाई भी कम नहीं हो पाती. सरकार तो इन सब मोर्चों पर तेजी से दौड़ना चाहती है. सरकार निशाना लगाना चाहती है. वह गोल करना चाहती है, लेकिन पदकों की तालिका में न स्वर्ण पदक मिलता है, न रजत और न ही कांस्य.
इतना बड़ा देश है. इतने सारे लोग हैं, इसलिए अक्सर प्रधानमंत्री अपने लिखित कागजों से आंख उठाए बिना ही देश के भाइयों एवं बहनों को बार-बार संबोधित करते चले जाते हैं. इन भाइयों एवं बहनों को बार-बार याद दिलाया जाता है कि विविधता में एकता है और यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है. बाकी पूंजियां हमें विश्व बैंक आदि से समय-समय पर मिलती रहती हैं. यदि भाषण से बाहर निकल कर आएं तो इस दिन कोई संन्यासी बाहर जमा काले धन की वापसी से देश का कितना उज्जवल विकास होगा उसकी भी याद दिला देता है.
एक के बाद एक उपलब्धियां गिनाई जाती हैं और फिर इस लंबी सूची में कुछ कमियों की गिनती भी की जाती है लेकिन कमी गिनाते समय आवाज जरा भी लड़खड़ाती नहीं. अगले ही क्षण गरीबी हटाने का, भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प भी तुरंत ले लिया जाता है. इसी के आस-पास वह महान क्षण भी आता है जब सबको सब चीजें देने का वायदा फिर से दोहराया जाता है. हर हाथ को मिलेगा रोजगार. हरेक को शिक्षा. हरेक को स्वास्थ्य सेवा. हरेक को न्याय. हरेक को सूचना का अधिकार यानी हरेक को हर चीज. ये बातें इतनी गंभीरता से कही जाती हैं कि किसी को भी यह नहीं लगता कि हरेक को हर चीज उधार पर टिकी सरकारें नहीं दे सकतीं. ये दुनिया के अमीर माने गए देशों में भी अब तक ऐसे सौ-पचास भाषणों के बाद भी नहीं दिया जा सकता है.
यहां तक आते-आते अक्सर ये सब बातें कह दी जाती हैं जिन्हें पहले के 15 अगस्तों के भाषणों में अनेक प्रधानमंत्री कह ही चुके हैं. यहां पुनरावृत्ति को कभी भी दोष नहीं माना जाता है. यह तो इस दिन के भाषण का सबसे मजबूत अलंकार है. देशवासियों के सामने चल रहा यह संबोधन अब अपनी सबसे ऊंची पायदान पर पहुंच जाता है. अब जो कुछ अमूल्य क्षण बचे हैं उनमें भविष्य की आशा, सुनहरी किरणों का जिक्र और संकट से जूझ रही जनता की पीठ थपथपाने का मौका है. आशा की ये किरणें दूरदर्शन, टेलीविजन चैनल और आकाशवाणी के माध्यम से देश के कोने-कोने में बिखर जाती हैं. अलबत्ता अखबार वाले बेचारे इस पुण्य काम में साथ नहीं दे पाते हैं. कुछ अपवादों को छोड़ कर अगले दिन अखबार बंट नहीं पाते क्योंकि उस दिन उनकी छुट्टी होती है. इसलिए अक्सर ऐसे बासी भाषण एक दिन और बासी होकर हिंदी के पाठकों तक पहुंचते हैं. इस कमी को टीवी वाले पूरा कर देते हैं. वे सुबह लाइव से लेकर रात तक इसको दुहराते रहते हैं.
हमारे देश के प्रधानमंत्री के सामने ऐसे मौके साल भर में कम ही आते हैं जब उनको पूरे देश को संबोधित करने का मौका मिलता हो. कितना अच्छा हो कि ऐसे मौकों का उपयोग और ज्यादा आत्मीयता के साथ देश के लोगों की आंखों में आंखें डाल कर उनके मन को छू कर कुछ अच्छी बातें बताई जाएं. कुछ बुरी बातों की तरफ उनका ध्यान खींचा जाए. देश का पालक उनको भरोसे में लेकर एक दोस्त की तरह, एक पिता की तरह, एक भाई की तरह कुछ घरेलू बातें करे. पंद्रह अगस्त के इस शाश्वत निबंध को जिन बंधनों में बांध दिया गया है, उन बंधनों से उसकी मुक्ति हो पाए तो हम सचमुच स्वतंत्रता दिवस मना सकेंगे.