लोकसभा चुनाव के पहले मुंबई कांग्रेस के चीफ के तौर पर विराजे, मिलिंद देवड़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इसके पहले अशोक चव्हाण भी महाराष्ट्र कांग्रेस चीफ़ के पद से इस्तीफा दे चुके हैैं।
दोनों ही लोकसभा चुनावों में अपनी काबिलियत साबित करने में कामयाब नहीं रहे।हालांकि चुनावी नतीजों के तुरंत बाद उन्होंने असफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश नहीं की। लेकिन राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस चीफ़ के पद से इस्तीफे के बाद यह फैसला लिया है। राहुल के इस्तीफे के बाद कांग्रेसियों में इस्तीफे की लाइन लगी हुई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के पद अपना इस्तीफा दे दिया है।इससे पहले केशव चंद यादव ने भारतीय युवा कांग्रेस के चीफ पद से त्यागपत्र दे दिया था। कांग्रेस की एससी सेल से नितिन राउत पद छोड़ अलग हो चुके थे। समेन मित्रा,कमल नाथ ,राज बब्बर सुनील जाखड़,अजय कुमार आदि के इस्तीफों के साथ – साथ कांग्रेसी नेताओं द्वारा राहुल पर इस्तीफा वापस लेने के लिए दबाव बनाने वास्ते आत्महत्या करने और खूनी ख़त लिखने जैसे ड्रामें चापलूसी की हद नहीं तो और क्या है।इन इस्तीफों की फेहरिस्त और लंबी होती दिखेगी।
इन इस्तीफों में इन कांग्रेसी नेताओं की देश और कांग्रेस के प्रति प्रतिबद्धता और नैतिक जिम्मेदारी के बजाय राहुल गांधी और गांधी परिवार के प्रति परंपरागत प्रतिबद्धता अधिक दिखाई देती है। जाहिर तौर पर इन इस्तीफों को कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के प्रति सामूहिक मजबूती दिखाने की कोशिशों के तौर पर दर्शाया जा रहा है।
जहां तक मिलिंद देवड़ा की बात की जाए तुम्हें एक मास लीडर के तौर पर कभी स्वीकारें नहीं गए। भले ही दक्षिण मध्य मुंबई से कांग्रेस की कैंपेनिंग में वह वह कोटक और अंबानी जैसे उद्योगपतियों को शामिल करने में सफल हुए लेकिन वह अपनी सीट नहीं बचा पाए। मिलिंद को महाराष्ट्र से ज्यादा दिल्ली में अपनी सही भूमिका दिखाई देती है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद संजय निरुपम देवड़ा पर तंज़ कसते हुए कहते हैं कि वह राष्ट्रीय स्तर के पद के लिए बहुत उत्सुक हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव तक मुम्बई पार्टी इकाई की देखरेख के लिए कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं की एक समिति बनाए जाने के सुझाव पर निरुपम कहते हैं कि ऐसे कदम से पार्टी को और नुकसान होगा। यह राजनीतिक पार्टी है कोई कारपोरेट कंपनी नहीं।संजय निरुपम ने ट्वीट कर कहा , ‘इस्तीफा में त्याग की भावना अंतर्निहित होती है।यहां तो दूसरे क्षण ‘नेशनल’ लेवल का पद मांगा जा रहा है। यह इस्तीफा है या ऊपर चढ़ने की सीढ़ी? पार्टी को ऐसे ‘कर्मठ’ लोगों से सावधान रहना चाहिए।’
लेकिन जाकिर अहमद- उपाध्यक्ष मुम्बई कांग्रेस कहते हैं, ‘उलूल जुलूल ! बयान देना संजय निरुपम का शगल है। वे अपने बडबोलेपन के चलते खुद का भी और पार्टी का भी नुकसान करते हैं। अपने बयानों के चलते वे पार्टी र्काकर्ताओं और ’ मुंबईकरों में अत्यधिक अलोकप्रिय हैं। चुनाव परिणाम इसका उदाहरण है।’
इसे मुंबई कांग्रेस में आपसी कलह की बू के तौर पर देखें जाने में कोई हर्ज नहीं है। यह अंतर्कलह मुंबई में है, महाराष्ट्र में है, राजस्थान में है, देश की हर कॉन्ग्रेस इकाई में है।
राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद इस्तीफों का सिलसिला सारे देश में चलता रहेगा लेकिन सोचने की बात यह है कि कांग्रेस के यह कार्यकर्ता वाकई कांग्रेस के प्रति प्रतिबद्धता रखते और पार्टी को जिताने का माद्दा रखते हैं तो यह स्थिति नहीं आती ।और यदि इनमें कांग्रेस की हार को लेकर नैतिकता बची हुई थी तो क्यों नहीं राहुल गांधी के इस्तीफे के पहने इन्होंने अपने इस्तीफे पेश कर दिए।
हाल ही में मुंबई के शिवड़ी कोर्ट में अपनी पेशी पर पहुंचे राहुल गांधी ने मुंबई के नेताओं से एक चुभता हुआ सवाल किया था। सवाल यह था कि जब मुंबई(मूसलाधार बारिश के चलते) डूब रही थी तब सारे नेता कहां थे ?क्यों नहीं वे सड़कों पर लोगों की सहायता करने उतरे?
जाहिर है इस तरह के सवालों का जवाब सिर्फ मुंबई के ही नेता नहीं बल्कि देशभर के कांग्रेसी नेताओं के पास नहीं है। अपनी अगली पीढ़ी के लिए जुताई- बुआई में मशगूल इन नेताओं के पास अगर जवाब होता तो वाकई लोकसभा में बुरी तरह मुंह की नहीं खानी पड़ती कांग्रेस को। राहुल शायद आम लोगों के दर्द को समझने और पहचानने में कुछ हद तक सफल रहे हैं।
दरअसल स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी और आजाद भारत की पहली दूसरी कड़ी तक जो कांग्रेस थी वह अब नहीं रही। मास की जगह क्लास तक सीमित रही कांग्रेस को अब भी वक्त है कि वह आम लोगों से जुड़े। लोकसभा में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस को भी यह समझ में आ जाना चाहिए कि उसे महात्मा गांधी के उन पंक्तियों को याद कर राजनीति करनी चाहिए जो कहती है कि सत्ता का सुख देश के सबसे कमजोर और गरीब नागरिक तक पहुंचे।
हालांकि सत्ता का सुख चाहने वाले कांग्रेसी जरूर मौकापरस्ती नहीं चूकेंगे। महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटील इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए और उन्हें महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में कैबिनेट का दर्जा भी मिल गया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी गिरीश महाजन ने दावा किया है कांग्रेस के कई नेता उनके संपर्क में है और पार्टी छोड़ना चाहते हैं। गुजरात में दो सीटों के लिए हुए चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। कर्नाटक, गोवा में चल रहे महाभारत में भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है।कांग्रेस द्वारा बीजेपी पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप अपनी जगह पर सही हो सकते हैं लेकिन आरोप लगाने से उनकी मुश्किलें कम नहीं होंगी।सत्ता का लोभ होता ही इसी प्रकार है। कांग्रेस की कमान छोड़कर रााुलह भले ही यह साबित करने की कोशिश करें कि उन्हें सत्ता का लोभ नहीं है , वह खानदानी राजनीति के खिलाफ हैं और उनका कदम कांग्रेस की भलाई के लिए है । लेकिन इससेे ज्यादा जरूरी यह है कि कांग्रेस आज जनता के बीच जााए। उनके सुख दुख को समझे ,उनमें सहभागी बने। रफाल डील भ्रष्टाचार, नोटबंदी ,जीएसटी, हिंदुत्व जैसे कई मुद्दे हैं जिन पर कांग्रेस खूब बोल चुकी है। यह बात दीगर है चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने इन मुद्दों को भुनाने की कोशिश की लेकिन उनका तंत्र आम लोगों तक इन मुद्दों की गहराई को समझाने में नाकामयाब रहा। राहुल को जरूरत है कि वह कांग्रेस की ओवरहालिंग करें। चिंतन मनन तो ठीक है अपनी युवा टीम के साथ भारत की पदयात्रा करें ।गली मोहल्लों में झोपड़ पट्टियों में जाएं। गांव की यात्रा करें। देश गांव में बसता है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं। जवान सीमाओं में डटे हैं उनके परिवार से मिलें। शहीदों के परिजनों की पीड़ा समझें।मजदूरों की सुनें। गरीबों की सुनें। दलितों की सुनें। एक रात किसी झोपड़ी में गुजार कर उनका मिशन पूरा नहीं होगा। देश की सबसेे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के सामने अब अपने अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है। ऐसे घड़ी में कांग्रेसियों का यह स्यापा कांग्रेस के साथ बेइमानी नहीं तो और क्या है?
सीडब्ल्यूसी को लिखे पत्र राहुल के पत्र पर कांग्रेसी गौर करें
‘….स्वयंसेवक संघ और उनके द्वारा कब्जायी गई संस्थाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी। मैं लड़ा क्योंकि मैं भारत को प्यार करता हूं। कई बार मैं पूरी तरह अकेला खड़ा था….’ इस पत्र में छलका राहुल का दर्द इन इस्तीफों से खत्म हो जाएगा ?