उत्तराखंड में इन दिनों चार धाम यात्रा चरम पर है. हर साल गर्मियां शुरू होते ही लाखों श्रद्धालु सपरिवार बद्रीनाथ, केदारनाथ,गंगोत्री एवं यमुनोत्री की यात्रा पर निकल पड़ते हैं, वहीं ठंड के दिनों में ये धाम सूने पड़े रहते हैं. यहां मौजूद ज्यादातर मंदिरों की व्यवस्था पीढ़ियों से कुछ खास पुजारी और पुरोहित आदि देख रहे हैं. लेकिन वे कौन लोग हैं जिनकी बदौलत ये स्थान इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को संभाल पाते हैं?
बद्रीनाथ में मुख्य पुजारी दक्षिण के नंबूदरीपाद ब्राह्मण हैं जो सुदूर केरल से आकर यहां पूजा-अर्चना करते हैं तो केदारनाथ में भोले-भंडारी के पुजारी कर्नाटक-महाराष्ट्र तथा उसके आस-पास के राज्यों के रहने वाले हैं. गंगोत्री और यमुनोत्री में भी उत्तरकाशी के निचले इलाकों से पुरोहित पूजा के लिए जाते हैं. इन तीर्थों से जुड़ा एक वर्ग ऐसा भी है जिसके बिना इन स्थानों पर एक पल के लिए रहना मुश्किल होगा. लेकिन उनकी उपेक्षा का आलम यह है कि कोई इनको न तो याद करता है न ही जानता है. अस्तित्वहीन-से ये अपने काम में लगे रहते हैं. यह वर्ग है हर साल यात्रा के समय आने वाले सफाई कर्मचारियों का. तीर्थयात्रा के दौरान हजारों लोग रास्ते के तमाम गांवों और कस्बों से गुजरते हैं. इन स्थानों को साफ-सुथरा रखने के लिए यात्रा काल में अस्थायी सफाईकर्मी नियुक्त किए जाते हैं. ये कर्मी प्राय: उत्तर प्रदेश के बिजनौर, मुरादाबाद और बरेली आदि जिलों से आते हैं. दुखद बात यह है कि इतना महत्वपूर्ण काम करने वाले लोगों को न तो सामाजिक मान्यता हासिल है और न ही स्थायी रोजगार.
राज्य सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष भगवत प्रसाद मकवाना बताते हैं, ‘पुजारियों, तीर्थ पुरोहितों और अन्य सभी वर्गों को भले ही बदलती जा रही हर व्यवस्था में बेहतर सुविधाएं, वेतन व स्थायित्व मिला और सम्मान बढ़ा, लेकिन सबकी गंदगी साफ कर देव-भूमि को निर्मल और पवित्र रखने वाले ये सफाई कर्मी हर साल काम मिलने की अनिश्चितता में समय काट रहे हैं. अल्प काल के लिए यात्रा पर आने वाले यात्रियों का सामूहिक बीमा हो रहा है, लेकिन विकट भौगोलिक परिस्थितियों में रहने वाले सफाई कर्मियों को यह सुविधा नहीं मिल रही है.’ इसके चलते दुर्घटना या ठंड के कारण जान गंवाने वाले अस्थायी सफाई कर्मियों को कुछ भी नहीं मिल पाता है.
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की नगीना तहसील के हकीकतपुर गांव के 62 साल के महावीर सिंह बद्रीनाथ से 20 किमी पहले स्थित यात्रा पड़ाव, पांडुकेश्वर में मुख्य सफाई कर्मी हैं. वे 12 सफाई कर्मियों के मुखिया हैं जो गोविंदघाट से लेकर देश के अंतिम गांव माणा तक छोटे-छोटे पांच स्थानों पर सफाई के लिए तैनात किए गए हैं. पांडुकेश्वर की आबादी तकरीबन 1,000 है, लेकिन यात्रा के दिनों में हर दिन यहां से लगभग 20 हजार यात्री गुजरते और ठहरते हैं. इन यात्रियों द्वारा फैलाई जाने वाली गंदगी साफ करने का जिम्मा महावीर सिंह और उनके पांच साथियों पर है. उनका 22 साल का बेटा सुनील भी इस साल मुख्य सफाई कर्मी के रूप में पांडुकेश्वर के पास के पड़ाव गोविंदघाट में अपनी सेवाएं देगा. गोविंदघाट से सिखो के प्रसिद्ध गुरुद्वारे हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी का पैदल मार्ग शुरू होता है. महावीर बताते हैं कि उनके पिता के अलावा दादा कन्हैया लाल और परदादा ने भी पूरी उम्र यही काम करते बिता दी. यह लगभग 150 साल का इतिहास है. यात्रा में लगे अभिजात वर्गों और पेशों का भी इतना ही लंबा इतिहास उपलब्ध और ज्ञात है. 300 रुपये महीने के वेतन पर काम शुरू करने वाले महावीर का वेतन पिछले साल जाकर 3,000 रुपये हुआ है. यह राशि राज्य में दैनिक मजदूरों के तय वेतन से भी कम है. मकवाना बताते हैं, ‘प्रदेश में मजदूरों की मजदूरी 210 रुपये प्रतिदिन तय की गई है,परंतु इन सफाई कर्मियों को 100 रुपये प्रतिदिन में टरका दिया जा रहा है.’
आजादी के पहले तक ऋषिकेश से ऊपर सारी यात्रा पैदल होती थी. यात्री खुले में ही शौच आदि करते थे. उस दौर में गर्मियों में गंदगी से हैजा आदि बीमारियां फैल जाती थीं. आए दिन यात्रियों तथा स्थानीय लोगों के मरने की खबरें आती थीं. सन 1901 में चमोली के डॉ. पातीराम इंग्लैंड में भारतीय उपमहाद्वीप के चिकित्सा अधीक्षक बने. स्थानीय होने के कारण वे इन सब समस्याओं से परिचित थे. इतिहासकार योगंबर बत्र्वाल‘तुंगनाथी’ बताते हैं, ‘उन्होंने टिहरी रियासत और ब्रिटिश गढ़वाल के अधिकारियों को स्वच्छता समितियों के गठन की सलाह दी थी.’ बाद में जब डॉ. पातीराम पौड़ी के जिला परिषद अध्यक्ष बने तो उन्होंने हर नौ मील पर एक डिस्पेंसरी बनाई और जिले की स्वच्छता समितियां सुचारू रूप से सफाई का काम करने लगीं. इन समितियों के निर्माण के बाद यात्रा मार्ग पर शौचालयों का प्रचलन हुआ और मैदानी क्षेत्रों से सफाईकर्मी वहां आने लगे.
जनसंख्या बढ़ी और यात्रा से जुड़े चार जिलों चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और टिहरी के कई कस्बों में 1970 के बाद नगरपालिकाएं या पंचायतें बनने लगीं. इन नगरपालिकाओं या नगर पंचायतों में भले ही सफाई के व्यवस्थित इंतजाम हो गए हों, लेकिन यात्रा के अधिकांश छोटे स्थानों और पैदल मार्गों पर हर दिन पहुंचने वाले हजारों यात्रियों द्वारा पैदा की गई गंदगी और कूड़े के निस्तारण का जिम्मा उत्तर प्रदेश से आने वाले तकरीबन एक हजार सफाई कर्मियों पर ही रहा. आज भी मोटर मार्ग के इन छोटे स्थानों के अलावा केदारनाथ और यमुनोत्री के पैदल मार्ग में हर दिन चलने वाले हजारों यात्रियों द्वारा फैलाई गई गंदगी को साफ रखना एक चुनौती पूर्ण कार्य है.
[box]प्रदेश में मजदूरों की मजदूरी 210 रुपये प्रतिदिन तय की गई है, परंतु चार धाम यात्रा में लगे सफाई कर्मियों को 100 रुपये में टरका दिया जाता है[/box]
यात्रा मार्ग में तमाम कस्बों या पड़ावों मसलन पीपलकोटी,पांडुकेश्वर, पातालगंगा, गुप्तकाशी, रामपुर, सीतापुर टिहरी का नैनबाग, नौगांव, ब्रह्मखाल, डामटा जैसे स्थानों में अब भी नगर पंचायतें नहीं हैं. इन जगहों पर सफाई का जिम्मा इन्हीं सफाई कर्मियों पर रहता है. रुद्रप्रयाग जिले के स्वच्छता निरीक्षक बृजेश नैथानी बताते हैं, ‘पिछले कई सालों से यात्रा मार्ग पर कहीं महामारी का प्रकोप नहीं फैला है जो यह सिद्ध करता है कि सीमित संसाधनों के बाद भी इन सफाई कर्मियों की मदद से चलाई जा रही व्यवस्था ने सुचारू काम किया है.’ इस साल उत्तरकाशी में ये अस्थायी कर्मी जिला पंचायत के अधीन, रुद्रप्रयाग में स्वास्थ्य विभाग, जिला पंचायत और सुलभ इंटरनेशनल के साथ और चमोली में स्वास्थ्य विभाग व ईको विकास समिति के माध्यम से काम कर रहे हैं. इस व्यवस्था में ऊपर पर्यवेक्षण करने वाला चाहे कोई भी हो लेकिन सफाई का काम करने वाले घूम-फिर कर वही लोग होते हैं.
अन्य वर्गों की तरह मंदिरों के कपाट बंद होने के बाद यात्रा समाप्त होने पर ये सफाई कर्मी भी वापस अपने-अपने गांव चले जाते हैं. ये सफाई कर्मी भूमिहीन और गरीब हैं. इनमें से कोई भी 8वीं से अधिक नहीं पढ़ा है. जाड़ों में महावीर अपने गांव जाकर सूअर पालने का काम करता है जिससे उसे हजार-दो हजार रुपये महीने की आमदनी हो जाती है. कुछ सफाई कर्मी मजदूरी करके पेट पालते हैं. हर साल उत्तराखंड आने वाले एक हजार सफाई कर्मियों में से केवल दो सफाई कर्मियों को उत्तरकाशी जिला पंचायत में अस्थायी रूप से साल भर की नौकरी पर रखा जाता है, इनके अलावा किसी भी कर्मचारी को स्थायी रोजगार नहीं मिला है.
बिजनौर जिले की धामपुर तहसील के ताइड़ापुर ग्राम पंचायत के 62 साल के प्रधान भट्टल 30 साल तक केदारनाथ यात्रा मार्गों पर अनेक स्थानों पर सफाई कर्मी और उनके हेड के पद पर रहे हैं. बाबा केदारनाथ के भक्त भट्टल से ‘तहलका’ के यह पूछने पर कि भगवान ने उन पर क्या कृपा की है, वे खुद के प्रधान बनने का श्रेय भगवान को देते हैं. बहरहाल, भट्टल पर बाबा की इस कृपा के बाद भी उनकी परेशानियां कम नहीं हुईं. भट्टल के तीनों बेटे बेरोजगार हैं. गांव की राजनीतिक हस्ती और जाना-माना नाम होने के बाद भी बेरोजगारी और गरीबी की मार इतनी है कि भट्टल अपने तीनों बेटों को खुशी-खुशी सफाई कर्मी के रूप में भेजना चाहते हैं. पूरी कोशिश के बाद भी इस साल उनका एक भी बेटा इस काम के लिए नहीं लिया गया. वे कहते हैं, ‘अब इस काम पर लगाने के भी सरकारी कर्मचारी पैसे मांगते हैं.’ दिक्कतें केवल इतनी नहीं हैं. महावीर बताते हैं, ‘सवर्ण तो छोड़िए पहाड़ों के अनुसूचित जाति के लोग भी हमें रहने के लिए घर नहीं देते हैं. मजबूरन हमें झोपड़े बना कर कस्बे या पहाड़ों के कोनों में दिन काटने पड़ते हैं.’ केदारनाथ, हेमकुंड साहिब और यमुनोत्री मार्ग की ठंडक में यह खासे जोखिम का काम है. यात्रा मार्गों पर अधिकांश जगहों पर कच्चे शौचालय बने हैं,जिन्हें सफाई कर्मियों को हाथ से ही साफ करना पड़ता है. मकवाना बताते हैं, ‘देश में मैला हाथ से साफ करने से रोकने के लिए भले ही कानून बन गए हों लेकिन यात्रा मार्ग की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आया है,जबकि इस काम पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं.’
सफाई कर्मियों का वेतन और सुविधाएं भले ही बेहद कम हों लेकिन यात्रा काल में सफाई के नाम पर पर्यटन,स्वास्थ्य विभाग व जिला पंचायत हर साल करोड़ों के वारे-न्यारे कर देते हैं. कुछ साल पहले सुलभ इंटरनेशनल को जिस पर्यटन विभाग ने करोड़ों की अनियमितता करने के कारण काली सूची में डाल दिया था इस साल उसी संस्था को पर्यटन विभाग ने चार धामों की सफाई का काम देने का निर्णय लिया है. यह संस्था चार साल पहले केदारनाथ यात्रा मार्ग से अस्थायी सफाई कर्मियों के भुगतान के लाखों रुपये लेकर चंपत हो गई थी. तमाम परेशानियों के बावजूद भट्टल और महावीर के बेटे उनकी ही तरह यात्रा काल में सफाई कर्मी के रूप में आते रहेंगे. भट्टल का कहना है, ‘भले ही पुजारी, तीर्थ पुरोहित और अन्य लोग पीढ़ियों से समाज में मिल रही इज्जत के कारण यहां आते हों परंतु हम तो गरीबी और भूख के कारण इस काम को करते हैं.’सफाई कर्मचारी इस निचले दर्जे के काम को भगवान का आशीर्वाद मानकर कर रहे हैं क्योंकि यही उनका पेट पाल रहा है.