क्रिकेट के मैदान से अपना हुनर साबित करने वाले इमरान खान अब पाकिस्तान में अमन-चैन कायम रख पाएंगे इस पर खासी बहस चल रही है, लेकिन इस बात का अंदेशा ज़रूर है कि इमरान के लिए राजकाज चला पाना आसान नहीं होगा। हालांकि जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा पिच अच्छी, टॉस भी जीत लिया है। सेना के साए में वे 18 अगस्त को शपथ ज़रूर लेंगे। लेकिन देश में भूख, बेरोजगारी और मंहगाई पर कितना पुरजोर काबू बना पाएंगे इस पर विवाद है।
तकरीबन दो दशक से पाकिस्तान में इमरान की पार्टी पीटीआई भी पार्टियों की जमात में एक अदद पार्टी थी जिसका काम सिफारिश करना और काम करा देने का मकसद पूरा करना था। लेकिन इस बार इसे जो वोट मिले वह पीएमएलएन के वोट से 40 लाख ज़्यादा हंै। इमरान की पार्टी कराची में खासी उभरी। यह शहर मशीनों में जुगाड़ के काम, ठगी और राजनीति के लिए मशहूर रहा है। अभी इमरान की पार्टी को पंजाब में अपना आधार और मजबूत करना है। वहां खासी बड़ी जनसंख्या है। यहां पीएमएलएन के जाने-माने नेता शरीफ भाई हंै। यानी शाहबाज और नवाज शरीफ। इनमें नवाज शरीफ पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। शाहबाज पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं।
राष्ट्रीय असेंबली में इमरान खान को 115 सीटें अपनी पार्टी की बदौलत हासिल हुई हैं। यानी देश में सबसे बड़ी पार्टी अब इसे छोटी पार्टियों और निर्दलीयों को साथ लेकर सरकार बनानी है। पार्टी के खासमखास जहांगीर तरीन निर्दलीयों को साधने में लगे हंै। जिससे राज चले। इमरान कतई नहीं चाहते कि सरकार चलाने के लिए उन्हें क्रांतिकारी इस्लामी संगठनों का साथ लेना पड़े।
देश की आर्थिक हालत खासी नासाज है। देश में करंसी घटती जा रही है और घाटा बढ़ता जा रहा है। विदेशी मुद्रा का सुरक्षित कोष इस समय नौ बिलियन रह गया है ऐसी हालत में आईएमएफ से मदद की गुहार लगानी पड़ेगी। पाकिस्तान का चीन के साथ खासा सहयोग रहा है।
चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर पर फिलहाल काम चल रहा है। इसमे मूलभूत संसाधनों पर चीन ने 62 बिलियन डालर खर्च करने का करार किया है। उधर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंमेई ने कहा है यदि यह अहसास हुआ कि चीन को आईएमएफ कजऱ् से पाकिस्तान अदायगी कर रहा है तो अमेरिका उस कजऱ् को रुकवाने की पूरी कोशिश करेगा। अब पाकिस्तान के नज़रिए को अमेरिका को जताने और चीन को समझाने की जिम्मेदारी असद उमर को शायद मिले। ऐसी संभावना है कि वे ही पाकिस्तान में वित्तमंत्री बनेंगे। उमर साहब सुधारवादी माने जाते हैं साथ ही देश के सबसे बड़े निजी औद्योगिक समूह ‘एग्रो’ के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हंै।
देश में दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बिजली क्षेत्र है। पिछली पीएमएलएन सरकार ने चीन की मदद से देश में बिजली का एक लक्ष्य तय किया था। लेकिन राज्य, ऊर्जा सप्लाई करने वाले और बैंको ने ग्रिड से ही बिजली चुरानी शुरू कर दी । इस पर तो शायद हुक्मरान सब्सीडी कम करके, ऊर्जा पर टैक्स बढ़ा कर और राज्य को दुरूस्त करके काफी हद तक काबू पा लेंगे। एक बार बिजली पर मचे गोरखधंधे पर लगाम कस जाए तो समस्या का निदान काफी हद तक संभव होगा।
पाकिस्तान में अभी हाल जब चुनाव हुए तो हिंसा भी खासी हुई। उस हिंसा से जुड़ा धर्म का लबादा निस्संदेह खासा खतरनाक है। इससे इमरान साहब कैसे निपटते हैं यह वाकई बड़ा सवाल है। देश को बचाए रखने और वहां विकास का परचम लहराने के लिए शांति बेहद ज़रूरी है। पाकिस्तान की सीमा पर एक और तो उत्तरपश्चिम में युद्ध से त्रस्त अफगानिस्तान है दूसरी और भारत जहां अर्से से तनाव बरकरार रहा है। इमरान साहब के लिए यह ज़मीनी हकीकत काफी परेशानी पैदा करती रहेगी यदि उन्होंने योजना बनाकर सख्ती से अमल नहीं किया।
पिछले दिनों यह ज़रूर सुनाई दिया कि इमरान साहब अमेरिका के खिलाफ हैं जो ड्रोन के जरिए जिहादियों को मारता है। फिर वे उस सेना के साथी बन कर आज सत्ता की कुर्सी पर आए हैं इसलिए ऐसा जान पड़ता है कि भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध सामान्य नहीं हो सकते क्योंकि सेना नहीं चाहती कि दोनों देशों में संबंध सहज हों। पिछली सरकार में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार और सेना के बीच मतभेद की यही पुख्ता वजह थी। सेना कतई नहीं चाहती थी कि भारत के प्रति शरीफ की दोस्ती की बेचैनी बढ़े।
लेकिन देर सवेर इमरान खान की नागरिक सरकार और सेना में असहमतियां बढ़ेंगी। वे चाहते हैं कि अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की सीमा खुले। जबकि सेना चाहती है कि 2300 किलोमीटर की सीमा पर कंटीले बाड़ लगाए जाए। वे चाहते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज़्यादा खर्च हो लेकिन यह तभी संभव है जब सेना के खर्च में कटौती हो। एक दौर था जब इमरान साहब कहा करते थे कि संसद के सत्र निहायत ‘बोर’ होते हैं। वे खुद बहुत कम बार ही सदन में दिखे भी। उनका कहना था कि पृथ्वी पर सबसे बोर जगह यही है। लेकिन अब उन्हें समर्पण, ब्यौरों और समझौते की तैयारी के साथ सदन में मौजूद रहना होगा। उन्हें अब उन राजनीतिकों के संपर्क में रहना होगा जिन्हें कभी वे अमूमन खारिज कर देते थे। उन्होंने देशवासियों से वादा किया था कि 90 दिनों में वे देश से भ्रष्टाचार खत्म कर देंगे। देखना है किस हद तक वे कामयाब हो पाते हैं।