इनके दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे नहीं हैं.

नवीन पटनायक,

उम्र-66,

मुख्यमंत्री, उड़ीसा

बीजू पटनायक की मृत्यु के बाद जब 1997 में उनके 51 वर्षीय नवीन पटनायक ने राजनीति की दुनिया में अपना पहला कदम रखा तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी भाषा. वह भाषा जो उड़ीसा की आम जनता बोलती और समझती थी लेकिन नवीन नहीं. हल निकला कि वे रोमन में लिखे उड़िया भाषण पढ़ें. इधर, नवीन पटनायक रोमन में लिखे उड़िया भाषण पढ़ते और उधर सामने खड़ी जनता हंसी के मारे लोटपोट हुई जाती. तत्कालीन राजनीतिक पंडित कहते कि जो नेता जनता से उसकी भाषा में संवाद नहीं कर सकता, जो अपनी युवावस्था को कभी का पीछे छोड़ चुका है वह इस उम्र में राजनीतिक अनुभव और राजनीति से लगाव के बिना कैसे राज्य की जनता से जुड़ पाएगा. और जो जुड़ नहीं पाएगा वह चुनाव कैसे जीतेगा. कहा गया कि उनकी कुल जमा यही योग्यता है कि वे कुल (पटनायक) के दीपक हैं.

वही नवीन पटनायक पिछले 13 साल से उड़ीसा के मुख्यमंत्री हैं. जनता दल से हटते हुए उन्होंने पिता बीजू पटनायक के नाम पर दिसंबर, 1997 में बीजू जनता दल का गठन किया. 2009 में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने नवीन ने न केवल खुद को सफल मुख्यमंत्री वरन एक ऐसे राजनेता के रूप में भी स्थापित किया है जिसकी ईमानदारी, नेतृत्व और व्यक्तित्व की चर्चा आज राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है. राजनीति में आने से पूर्व वे लेखन के क्षेत्र में थे. उनके राजनैतिक जीवन में संभवतः सबसे बड़ी परीक्षा उस समय आई जब 2008 में कंधमाल में सांप्रदायिक दंगे हुए. कंधमाल में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगे में लगभग 38 लोगों की मौत हुई थी. इस मुद्दे पर सत्तासीन बीजेडी-भाजपा गठबंधन सरकार में दरार पड़ने लगी. एक तरफ जहां नवीन के नेतृत्व वाली बीजेडी दंगे में भाजपा और उससे जुड़े समूहों की भूमिका होने की बात कर रही थी, वहीं भाजपा का मानना था कि सरकार लक्ष्मणानंद के हत्यारों को न सिर्फ खुली छूट दे रही है बल्कि ईसाई समुदाय के सांप्रदायिक तत्वों के आगे घुटने टेक रही है. दोनों दलों के बीच हुए संघर्ष का नतीजा अलगाव के रूप में सामने आया. नवीन का कहना था कि वे किसी कीमत पर सांप्रदायिकता बर्दाश्त नहीं करेंगे, सरकार रहे या जाए.  उस समय कहा गया कि भाजपा से अलग होने पर बीजेडी को काफी नुकसान होगा. लेकिन नवीन ने  2009 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में अकेले जाने का फैसला किया. चुनाव में न सिर्फ बीजेडी विजयी हुई बल्कि 2004 के मुकाबले उसे प्रचंड बहुमत मिला. इसका श्रेय नवीन की चुनावी तैयारियों के साथ ही उनके भाजपा के अलग होने के कठोर निर्णय को भी मिला. जानकारों का कहना था कि जनता ने एक मजबूत और गैरसांप्रदायिक व्यक्ति को वोट दिया जो उसकी सुरक्षा के लिए राजनीतिक नफे-नुकसान का गणित नहीं देखता था.

नवीन को आज राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जिसमें देश को नेतृत्व देने की संभावना है. जो पढ़ा-लिखा, संवेदनशील तथा प्रगतिशील है. जिसके दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे नहीं हैं. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार मोहंती चंद मोहंती कहते हैं, ‘नवीन बिना किसी के दबाव में आए कड़े कदम उठाने और उस पर टिके रहने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने समय-समय पर आधे दर्जन से अधिक मंत्रियों को भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त होने की आशंका के आधार पर ही मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया है. वित्त मंत्री घादेई को नवीन ने मंत्री पद से उस समय चलता कर दिया था जब उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति होने की बात सामने आई थी.’ घादेई नवीन के बेहद करीबी लोगों में से थे. अपने पिता बीजू पटनायक के समान ही ब्यूरोक्रेसी पर मजबूत पकड़ के लिए भी नवीन की सराहना की जाती है.    

-बृजेश सिंह