कहानी फगली को समर्पित एक अप्रकाशित उपन्यास. (अंश नहीं, पूरा का पूरा उपन्यास.)
प्रथम अध्याय.
क्या यह एक फिल्म है. नहीं. अधूरी फिल्म. नहीं. इस सृष्टि की अदृश्य रचना. नहीं. आषाढ़ का एक दिन. नहीं. सूरज का जनरेटर. नहीं. जीवन. नहीं. मौत. नहीं. कष्ट. पीड़ा. जहर का कटोरा. नहीं. नहीं. नहीं. तो आखिर ये फगली फगली क्या है, ये फगली फगली. कैसे समझाऊं मैं ये आपको, उसके लिए आपको फगली के तल में रहना होगा, पेट में पानी भरना होगा, दो घंटे बाद जब उबरेंगे तब भी समझेंगे, कह नहीं सकता. तब तक ये दुनिया फगली के आगे के रिक्त स्थान को कैसे भरेगी मान्यवर. फगली का चरित्र अमीबा जैसा है, उसका आकार निरंतर बदलता रहता है, उसे परिभाषित करना इतना आसान नहीं है, कुछ वर्षों का समय दीजिए और सब्र रखिए.
प्रथम और अंतिम के बीच के अध्याय.
फिल्म को शुरू होकर खत्म होने का ही चस्का है, उसका रस्ता सस्ता है, हाथों में उसके एक किताब का बस्ता है, जिसके सारे पन्ने खाली हैं, फिर भी पहले पन्ने पर स्क्रिप्ट लिख रखा है.
अंतिम अध्याय.
यहां हम एक फिल्म के मकरासन करने की क्रिया पर विस्तार से लिखेंगे. एक रोज जिंदगी से ऊब कर फगली मकरासन करने निकली. वो पेट के बल लेटी और उसने अपनी कहानी को दो भागों में बांटकर (दो हाथ बनाकर) जांघों के बगल में रख दिया. धीरे से उसने अपने सभी पात्रों के पैरों के पंजे बाहर की ओर फैलाए और एड़ियां अंदर की ओर कर लीं. एड़ियों (यानी सांकेतिक रूप से किरदारों की समझ) को दुनिया से छुपाकर अंदर की तरफ रखना जरूरी था, क्योंकि अगर लोगों को पता चलता कि उसके पास एड़ियां हैं (समझ/अक्ल), तो फिर ये देश उसे बहिष्कृत कर देता. इसके बाद योगा इंस्ट्रक्टर के कहे अनुसार फगली कहानी के दोनों भागों को सिर के नजदीक ले आती है. अब धीरे से बायीं कहानी अपनी कोहनी मोड़ते हुए दाहिनी कहानी के बगल के नीचे से निकालकर अपनी हथेली दाएं कंधे पर लगा देती है, और दाहिनी कहानी अपनी कोहनी को मोड़कर बाएं कंधे के ऊपर ले आती है. दोनों कहानियों के बने त्रिकोण के बीच फिर फगली अपना सिर टिकाती है. और फिर सो जाती है. फिल्म को सोता हुआ देख इस क्रिया को करा रहे योगा इंस्ट्रक्टर अक्षय कुमार (फिल्म के निर्माता) जूनियर इंस्ट्रक्टर (निर्देशक) कबीर सदानंद के साथ भागते हुए उसके नजदीक आते हैं और जोर से डांटते हुए उसे यो यो हनी सिंह के दो-चार गाने सुनते हुए आसन करने का आदेश देते हैं. आदेश मानकर फगली मस्त हो जाती है और फिर एक सौ पैंतीस मिनिट तक मकरासन करती है, हमें सन्न करती है.
चेतावनी : इस आसन को अच्छी-समझदार फिल्में न करें.
उपसंहार.
फगली मकरासन करने क्यों निकली? वाहियात फिल्में जिनके रक्त का संचार रुक-सा गया है, उन्हें इसे दिन में चार-बीस बार कर ही लेना चाहिए. इसलिए.
(नियमविरुद्ध) दूसरा उपसंहार.
कोई नहीं जानता ऐसा कैसे संभव हुआ. दस साल पहले बनाई अपनी एक फिल्म में ही निर्देशक कबीर सदानंद ने 2014 की फगली को सफलतापूर्वक देखने की कुंजी छोड़ी हुई थी. 2004 की उस फिल्म के नाम में ही. ‘पापकार्न खाओ! मस्त हो जाओ’.