गालिब का इश्क, काम के आदमी गालिब को निकम्मा बनाता है. पता नहीं आपका इश्क आपको क्या बनाता है! चलिए हम मान लेते हैं कि वह आपको भी निकम्मा बनाता है. इश्क चाहे आपको कितना भी निकम्मा बनाए, मगर एक काम तो आपको करना ही पडे़गा, भले ही वह काम आप ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज पर करें. मोहब्बत की है, तो मोहब्बत का इजहार भी तो करना होगा, क्योंकि बिना इजहार के इश्क जैसे बिन राह की मंजिल. जैसे बिन सिंदूर के सुहागन. जैसे बिन सेहरे के दूल्हा. जैसे किसी को अंधेरे में मारी गई आंख.
इश्क पर बहुत कुछ लिखा-बोला जा चुका है, तो इश्क पर कुछ न बोल कर इजहार-ए-इश्क के मीठे और प्यारे तरीकों के सफर पर एक लांग ड्राइव पर चलते हैं. हां मगर प्यार से!
सबसे पहले आदम और ईव के प्रेम का साधन कहिए या साक्षी या तरीका, सेब बना. यह इजहार-ए-मोहब्बत न होता, तो आज न आप होते न हम. अति प्राचीन प्रेमियों ने इजहार-ए-इश्क के लिए प्रकृति को चुना. मेघ जो बरसते थे, गरजते थे, वे प्रेमियों के लिए ओवर टाइम करने लगे. प्रेमी अपनी शकुंतला से अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए मेघों को दूत बना कर भेजा करते. इसी काम के लिए किसी प्रेमी ने परिंदों से चाकरी करवाई. किसी ने हवाओं को अपना हरकारा बनाया. किसी ने चांद की सेवा ली. किसी ने यह ठेका समुंदर की लहरों को दिया, तो किसी ने सितारों को अपना अनुचर बनाया, अपना प्रेम संदेश प्रीतम प्यारे तक पहुंचाने के लिए. यहां तक कि अगम पेड़ों को भी नहीं छोड़ा गया. उनको भी जोत दिया करते थे प्रेमी लोग अपने ह्नदय के उद्गार व्यक्त करने के लिए. क्या करते बेचारे! आज की तरह इतनी तो न सुविधा थी, न आधुनिक संचार व्यवस्था.
प्रेम कहानियों में लैला-मजनूं, हीर-रांझा, शीरी-फरहाद की सुपर हिट जोड़ियां हैं, मगर क्या किसी ने सोचा है कि इनके बीच इजहार-ए-इश्क कैसे हुआ? साहबान, तब जमाना बहुत बेरहम, बेदर्द था (कमोबेश जमाना अब भी अपने व्यवहार में ऐसा ही है, ये जमाना कब सुधरेगा!) तो इजहार-ए-इश्क का पावन, महती और रिस्की कार्य सर-आंखों पर आंखों ने लिया. आंखों-आंखों में प्यार होता था और आंखों ही आंखों में इजहार. जमाना कितना भी नजर रखे या नजर लगाए, नजर गड़ाए प्रेमियों पर, मगर नजरों को उधर जाने से कौन रोक सका है जिधर वे जाना चाहती हैं, जिधर उनका प्रियतम है. सीधी-सी बात यह है, ‘इजहार हुआ इनकार हुआ, कुछ टूट गए कुछ हार गए’,
अति प्राचीन प्रेमियों ने इजहार-ए-इश्क के लिए प्रकृति को चुना. मेघ प्रेमियों के लिए ओवर टाइम करने लगे. किसी ने परिंदों से चाकरी करवाई तो किसी ने हवाओं को हरकारा बनाया
‘इजहार-ए- मोहब्बत रह-रह के आंखों से पिया दीवानों ने.’ नजरों ने बड़ी मदद की प्रेमियों की. खास तौर से कच्चे दिल के प्रेमियों की क्योंकि नजरों की एक खासियत है कि वे अपना काम तो कर जाती हैं और मौका-ए-वारदात पर कोई सबूत भी नहीं छोड़तीं. नजरें ही वे दोस्त, सखी होती थी जो प्रेमियों का हाल-ए-दिल बयां करती थीं. होंठ जब-जब दिल की बात कहने में हिचकिचाए, थर्राए, तो नजरों ने उनकी भूमिका बखूबी अदा की और मौन भाषा में कह दिया कि हमें तुमसे प्यार है. अगर प्रेमियों को उर्दू जुबान आती (माशाअल्हा! ), तो कहा, हमें तुमसे मोहब्बत है. अगर अंग्रेजी लैंग्वेज आती तो कहा, आई लव यू. कहने का मतलब कि नजरों को कोई भी भाषा सीखने की जरूरत नहीं, क्योंकि वे हमेशा दिल की भाषा बोलती हैं. इसलिए इजहार-ए-इश्क के लिए नजर एक अति महत्वपूर्ण जरिया बनी. जो आज भी बनी हुई है.
नजरों के अतिरिक्त अपने प्रेम को व्यक्त करने का एक तरीका अपने मित्र या उनकी सखी से अपने दिल की बात कहलवाना या कहना था. कई बार कई प्रेमियों ने अपने इजहार-ए-मोहब्बत के लिए अपने-अपनी विश्वसनीय दोस्त-सखी की सहायता ली. लेकिन इजहार-ए-मोहब्बत का यह तरीका खतरों से खाली नहीं था. एक तो इसमंे प्रेम त्रिकोण बनने का खतरा बना रहता था. दूसरे, सनम की रुसवाई का डर बना रहता था.तीसरे विश्वसनीय दोस्त होना सबके भाग्य में कहां बदा रहता है!लिहाजा, इजहार-ए-मोहब्बत का यह तरीका कुछ भाग्यशाली प्रेमियों के ही खाते में रहा.
नजरें कह तो देतीं, मगर कुछ अनकही की कसर फिर भी रह ही जाती है न! इजहार-ए-मोहब्बत का कोई ऐसा तरीका हो जिसमें दिल खोल कर रख दिया जाए! इन गांठों को सुलझाया खत ने. फिर एक दौर ऐसा आया कि प्रेमी अपना इजहार-ए-इश्क खत के जरिए करने लगे. खत इतना पुख्ता तरीका सिद्ध हुआ इजहार-ए-मोहब्बत का, कि प्रेमी उसमें अपना दिल तक भेजने लगे और भावातिरेक में झूम झूम गाने लगे कि फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है. सृजनात्मक लेखन में तो ‘लव लेटर’ नाम की एक विधा-सी ही बन गई.
इसमें कोई शकोशुबहा नहीं कि खत ने बहुत साथ दिया आशिकों का. मगर खत भेजने में पेंच यह था कि कहीं किसी ऐसे-वैसे के हाथ लग गया, तो वह खत जमाने भर की जुल्मत का फरमान बन जाता था. अपने इस ऐब के बावजूद खत इजहार-ए-इश्क का एक लोकप्रिय जरिया बना. आशिक का दिल जब प्यार से लबालब होता है, तो वह अपने जज्बात का इजहार भी डूब कर करना चाहता है. इसके लिए खत से बेहतर तरीका और कोई नहीं. ‘अपनी अफ़सुरदा (मुरझाई, उदास) निगाहों के दो आंसू रखकर खत मुझे भेज दिया और लिखा कुछ भी नहीं.’ इजहार-ए-मोहब्बत के इस नेक, मगर कठिन काम को खतों ने बखूबी अंजाम दिया और आज भी दे रहे हैं.
इजहार-ए-मोहब्बत के तरीकों में मील का पत्थर बना एक तरीका. फूल. वह भी खासकर गुलाब. चटक लाल रंग आशिक की बेचैनी या प्यार की तीव्रता का, तो गुलाब प्रेम का प्रतीक बन गया. जब बसंत ऋतु प्रेम का प्रतीक है, तो उसकी आत्मा फूल को तो बनना ही बनना था! शोख फूल राज-ए-उलफत का पर्दाफाश करने लगे. लाल गुलाब ने कई खाली दिलों में मोहब्बत का रंग भरा. आशिकों के बीच फूल देने और लेने का यह तरीका बहुत मकबूल हुआ. संभावित प्रेमियों में जब कभी किताबों का आदान-प्रदान हुआ, तो किताबों के बीच फूल रखकर हुआ. और जब कभी विछोह के क्षण आए, तो किताबों के बीच सूखे फूल ने ढांढस भी बंधाया. फूल ने वह काम कर दिया जो बड़े से बड़े कवि, लेखक न कर सके. अंग्रेजों में तो फूलों की इस विशेषता के कारण एक कहावत भी है- से इट विद फ्लावर्स. और हमारे यहां ‘हम उनके लिए ढूंढ़ते अल्फ़ाज़ रह गए, वो चार फूल देकर सारी बात कह गए.’ इजहार-ए-मोहब्बत के इस तरीके के विषय में क्या अब कुछ कहने की जरूरत है!
कोई शक नहीं कि खत ने बहुत साथ दिया आशिकों का. मगर पेंच यह था कि कहीं खत किसी ऐसे-वैसे के हाथ लग गया तो वह जमाने भर की जुल्मत का फरमान बन जाता था
आज की बात की जाए तो प्रेमियों को बहुत सुविधा है (प्रेम करने की नहीं, प्रेम को व्यक्त करने की). चॉकलेट! चॉकलेट ने आशिकों की जिंदगी और प्रेम कहानी में खूब मिठास घोली. यहां तक कि एक कंपनी ने अपनी पंचलाइन में इसे इजहार-ए-मोहब्बत का एकमात्र प्रतीक ही बना दिया.
इजहार-ए-मोहब्बत में चॉकलेट को किसी ने टक्कर दी, तो वह है ग्रीटिंग कार्ड. इस काम में ग्रीटिंग कार्ड ने चॉकलेट से खूब होड़ की. ग्रीटिंगकार्ड देने से एक फायदा यह भी होता कि भाषा संबंधी अशुद्धियां नहीं होतीं और भेजने वाले का बौद्धिक स्तर क्या है, यह पता करना मुश्किल होता, जो खत लिखने में पकड़े जाने की संभावना होती (इसलिए कुछ चालाक प्रेमी किसी आलिम से खत लिखवा लेते हैं), इन सब विशेषताओं के चलते ग्रींटिग कार्ड दो दिलों को मिलाने में एक मजबूत सेतु बना.
ग्रीटिंग कार्ड के अलावा मोबाइल आज के प्रेमियों की बड़ी सेवा कर रहा है. एसएमएस के जरिए फट कह दी अपने दिल की बात. न कोई देख रहा न कोई पकड़ रहा. पूर्ववर्ती समय की तुलना में आज इजहार-ए- मोहब्बत करना काफी सेफ हो गया. इंटरनेट के जरिए खट से ईमेल कर दिया. चैट करके दिल की बात कर ली. प्रेमियों के लिए मात्र चौदह फरवरी (वैलेनटाइन डे) का एक खास दिन ही नहीं, प्रेम की पींगें बढ़ाने के लिए फरवरी में पूरे एक हफ्ते का मौका मिलता है, जैसे रोज डे (7 फरवरी), प्रपोज डे (8 फरवरी), चॉकलेट डे (9 फरवरी ), टेडी डे (10 फरवरी ), प्रॉमिस डे (11 फरवरी ), किस डे (12 फरवरी ), हग डे, हग से यहां मतलब आलिंगन से है, (13 फरवरी ), तो फिर उन्हें किस बात की चिंता. इसीलिए तो चांस पर डांस कर रहे हैं आज के भाग्यशाली युवा प्रेमी.
आशिकों की समस्या ‘इजहार-ए-मोहब्बत कैसे करें!’ को किसी ने समझा न समझा हो, बाजार ने इसे अच्छे तरीके से समझा है. आज उसने ग्रीटिंगकार्ड, टेडीबीयर, चॉकलेट, बैलून (ये सभी आइटम दिल शेप में भी हो सकते हैं) के अतिरिक्त तरह-तरह के आकर्षक गिफ्ट को उतार दिया है. कुछ पुराने तरीकों के साथ बहुतेरे नये तरीके आ गए हों आज, लेकिन सौ बात की एक बात–अगर आपके दिल में किसी के प्रति प्यार है, तड़प है, तो आपको इजहार-ए-मोहब्बत का कोई तरीका सूझे न सूझे, आपका प्यार अपने को व्यक्त करने का कोई न कोई तरीका जरूर ढूंढ़ लेगा, क्योंकि वह सच्चा है.