नई दिल्ली : इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई है। करीब एक वर्ष तक चले संघर्ष के बाद यह समझौता लागू हुआ है। दुनिया की निगाह इस समझौते पर टिकी हैं। आखिर वह शर्ते कौन सी हैं जिन पर दोनों पक्ष राजी हुए। एक सवाल यह है कि क्या अब क्षेत्र में शांति लौटने की उम्मीद की जा सकती है?
इजरायली मीडिया के मुताबिक समझौता कथित तौर पर इजरायल को 60 दिनों की संक्रमण अवधि प्रदान करेगा, जिसके दौरान आईडीएफ दक्षिणी लेबनान से अपनी सेना वापस ले लेगा, जबकि लेबनानी सेना लिटानी नदी के दक्षिण में लगभग 5,000 सैनिकों को तैनात करेगी, जिसमें इजरायल की सीमा पर 33 चौकियां भी शामिल हैं। यूएस प्रेसिडेंट जो बाइडेन ने मंगलवार को कहा कि इजरायल और लेबनान के बीच हुए युद्ध विराम समझौते के बाद लेबनानी सेना एक बार फिर अपने क्षेत्र पर कब्जा कर लेगी। उन्होंने कहा, “अगले 60 दिनों में, इजरायल धीरे-धीरे अपनी बाकी सेना को वापस बुला लेगा – दोनों पक्षों के नागरिक जल्द ही सुरक्षित रूप से अपने समुदायों में वापस लौट सकेंगे और अपने घरों का पुनर्निर्माण शुरू कर सकेंगे।”
युद्धविराम समझौते को इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रिमंडल ने मंगलवार रात को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्यूह ने समझौते को स्वीकारने के पीछे तीन वजह बताई पहली- ईरानी खतरे पर ध्यान केंद्रित करना, दूसरी सुरक्षा बलों को राहत देना, हथियारों के स्टॉक को फिर से भरना और तीसरी- मोर्चों को अलग कर हमास को अलग-थलग करना है। इजरायली पीएम ने कहा कि युद्ध विराम की अवधि ‘लेबनान में क्या होता है इस पर निर्भर करेगी।’ उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर हिजबुल्लाह ने दोबारा हथियारबंद होकर, सुरंग खोदकर, रॉकेट दागकर या इजरायली सीमा के निकट अपने बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण करके समझौते का उल्लंघन किया तो इजरायल फिर से हमले शुरू कर देगा।
हालांकि राष्ट्रपति बाइडेन ने युद्ध विराम को बेहद महत्वपूर्ण बताया लेकिन इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार भी समर्थन किया। उन्होंने कहा, “मैं स्पष्ट कर दूं कि अगर हिजबुल्लाह या कोई और इस समझौते को तोड़ता है और इजरायल के लिए सीधा खतरा पैदा करता है, तो इजरायल का अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आत्मरक्षा का अधिकार बरकरार रहेगा।” उन्होंने कहा, “हिजबुल्लाह और अन्य आतंकवादी संगठनों के बचे हुए लोगों को फिर से इजरायल की सुरक्षा के लिए खतरा बनने की इजाजत नहीं दी जाएगी।” लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती ने मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ बातचीत के दौरान इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष विराम समझौते का स्वागत किया। पीएम मिकाती ने इस संबंध में एक्स पर कई पोस्ट किए। इनमें प्रस्ताव को लेबनान में शांति और स्थिरता बहाल करने, विस्थापित लोगों को उनके कस्बों, शहरों में लौटने में सक्षम बनाने की दिशा में एक मौलिक कदम बताया गया।
दूसरी तरफ नवीनतम जानकारी के मुताबिक हिजबुल्लाह की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। हिजबुल्लाह के सबसे बड़े समर्थक ईरान ने समझौते का समर्थन किया। अलजजीरा के मुताबिक ईरानी विदेश मंत्रालय ने ‘लेबनान के खिलाफ इजरायल की आक्रामकता’ के अंत की ‘खबर का स्वागत किया है।’ इस बीच संयुक्त राष्ट्र ने समझौते के महत्व को स्वीकार किया लेकिन इसके जल्द लागू होने की बात पर जोर दिया। यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सभी पक्षों से इस समझौते के तहत की गई अपनी प्रतिबद्धताओं का पूरी तरह से सम्मान करने और उन्हें तेजी से लागू करने की अपील की। यूएन प्रमुख ने अपने प्रवक्ता के जरिए जारी एक वक्तव्य में उम्मीद जताई कि यह समझौता “उस हिंसा, विनाश और पीड़ा को समाप्त कर सकता है, जिसका सामना दोनों देशों के लोगों को करना पड़ रहा है।”
अगर आने वाले दिनों में हालात वैसे बनते हैं जैसी उम्मीद जतायी जा रही है तो इस युद्धविराम के बाद सबसे बड़ा फायदा नागरिकों को मिलेगा। दोनों तरफ की जनता युद्ध के कारण काफी कुछ खो चुकी है। युद्धविराम के कारण उन क्षेत्रों में सुरक्षा की स्थिति बेहतर हो सकती है, जो पहले संघर्षों के कारण प्रभावित हुए थे। इजरायली सेना ने 23 सितंबर से लेबनान पर हवाई हमले शुरू किए। कुछ दिनों के बाद उसने सीमा पार एक ‘सीमित’ जमीनी अभियान भी चलाया, जिसका उद्देश्य कथित तौर पर हिजबुल्लाह को कमजोर करना था। इजरायली हमलों में हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह समेत कई कमांडरों की मौत हो गई और उसके कई ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा है। हालांकि लेबनानी ग्रुप भी इजरायल पर मिसाइलें दाग कर पलटवार किया। 8 अक्टूबर, 2023 को हिजबुल्लाह ने गाजा में हमास के प्रति एकजुटता जाहिर करते हुए इजरायल पर रॉकेट दागने शुरू किए थे। तब से फिलिस्तीनी ग्रुप और यूहदी राष्ट्र में संघर्ष में उलझ गए।