नेफ्टाली बने प्रधानमंत्री, क्या नये गठबन्धन के आने से रुकेगा फिलिस्तीन से संघर्ष या बढ़ जाएगी दरार?
इजरायल की राजनीति अचानक बदल गयी है। इतनी कि पहले कभी ऐसी न थी। धुर विरोधी साथ हो गये हैं। नेफ्टाली ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। एक इस्लामिक पार्टी और दूसरी दक्षिणपंथी पार्टी। प्रधानमंत्री (अब पूर्व) बेंजामिन नेतन्याहू की सत्ता से बेदख़ली ने देश में धुर विरोधी विचारधाराओं वाली दो पार्टियों को साथ खड़ा कर दिया है। इजरायल की अरब आबादी की प्रतिनिधि पार्टी यूनाइटेड अरब लिस्ट, जिसे ‘राम’ कहा जाता है, के नेता मंसूर अब्बास ने धुर दक्षिणपंथी नेता नेफ्टाली बेनेट को अपना समर्थन देने का ऐलान करके इजरायल और फिलिस्तीन के बीच गहरी खाई पाट दी। लेकिन बेनेट जैसे कट्टरपंथी नेता हैं और जिस तरह इजरायल को यहूदी राष्ट्र बताते हैं, उससे इसकी सम्भावना क्षीण ही दिखती है।
देश के इतिहास में आज तक किसी चुनाव में एक पार्टी को अपने बूते बहुमत नहीं मिला है। इस बार भी नहीं मिला, लिहाज़ा बेंजामिन नेतन्याहू को सत्ता से बाहर करने के लिए कुछ दल इक्कट्ठे हो गये, जिससे लम्बे समय से सत्ता में बैठे नेतन्याहू का जाना तय हो गया था। मार्च में हुए चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद इजरायली राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन ने नेतन्याहू को सरकार बनाने और 2 जून तक बहुमत साबित करने का आदेश दिया था, जिसके सिद्ध न करने पर विपक्षी पार्टियों के गठबन्धन ने नयी सरकार बनाने को लेकर सहमति जता दी, जिसके बाद नेफ्टाली बेनेट ने 13 जून, 2021 को इजरायल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। दिलचस्प यह है कि बेनेट की यामिना पार्टी की सिर्फ़ छ: सीटें हैं।
नेतन्याहू ने जोड़तोड़ की कोशिश उन्हें सफलता नहीं मिली। उनकी लिकुड पार्टी सहयोगियों को सँभालने में नाकाम रही। इसके बाद उनके विरोधी नेता येर लेपिड ने ऐलान कर दिया कि इजरायल की विपक्षी पार्टियों में नयी सरकार बनाने पर सहमति बन गयी थी। नयी सरकार वाले नये गठबन्धन में इजरायल की आठ पार्टियाँ शामिल हैं। विपक्ष में सत्ता के लिए हुए समझौते के मुताबिक, सबसे पहले यामिना पार्टी के प्रमुख नेता नेफ्टाली बेनेट इजरायल के प्रधानमंत्री बने। दो साल बाद उनकी जगह येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड प्रधानमंत्री का ज़िम्मा सँभालेंगे। सेंटर-लेफ्ट ब्लू ऐंड व्हाइट, जिसके प्रमुख रक्षा मंत्री बेनी गेंट्ज लेफ्ट विंग मेरेट्ज ऐंड लेबर पार्टी, पूर्व रक्षा मंत्री एविग्डोर लिबरमेन, राष्ट्रवादी ये इजरायल बेटन्यू पार्टी, राइट विंग पार्टी, जिसके प्रमुख पूर्व शिक्षा मंत्री गिडोन भी गठबन्धन में शामिल हैं।
क्या होगा असर
इजरायल में सत्ता परिवर्तन का गाजा पट्टी और भारत सहित दुनिया के अन्य देशों पर भी असर पड़ सकता है। बेंजामिन नेतन्याहू की राजनीति और नीति गठबन्धन सरकार निश्चित ही जारी नहीं रखेगी। विशेषज्ञ नये प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट के आने से देश की विदेश नीति के प्रभावित होने को तय मान रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण इस गठबन्धन में शामिल दलों की बहुत अलग-अलग विचारधारा है। ज़ाहिर है गाजा पट्टी, फिलिस्तीन, हमास, ईरान, लेबनान, हिजबुल्लाह, अमेरिका जैसे ज्वलंत मुद्दों को लेकर भी इन पार्टियों के विचार आपस में मेल नहीं खाते मेल नहीं खाते। वैसे मंसूर अब्बास के फ़ैसले की वेस्ट बैंक और गाजा में आलोचना भी हो रही है। गाजा के लोगों का कहना है जब अब्बास से फिलिस्तीनियों से संघर्ष के लिए वोट करने को कहा जाएगा, तो वे क्या करेंगे? क्या वह यह स्वीकार करेंगे कि वह फिलिस्तीनियों की हत्या में हिस्सेदार बने?
सबसे दिलचस्प कारण यह है कि गठबन्धन में शामिल राम पार्टी इजरायली अरब मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है। यह पार्टी फिलिस्तीनियों को उनका हक़ देने की प्रबल पक्षधर है। साथ ही नयी कॉलोनियाँ बनाने की इजरायल की नीति का भी विरोध करती रही है। उसकी माँग रही है कि नयी कॉलोनियाँ बनाने की जगह इजरायल को येरुशलम पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए। लेकिन यहाँ बड़ा पेच यह है कि भावी प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट धुर दक्षिणपंथी नेता हैं। उन्हें यहूदी राष्ट्र का कट्टर समर्थक माना जाता है। हालाँकि समझौते के मुताबिक, उनके दो साल बाद सत्ता सँभालने वाले गठबन्धन नेता (घोषित) येश एटिड मध्यमार्गी विचारधारा के नेता हैं।
नेतन्याहू को सत्ता से बाहर करने के लिए जब विपक्षी दलों का गठबन्धन बना, तो उसकी तस्वीरें इजरायल ही नहीं, दुनिया के बड़े देशों के मीडिया में भी सुर्ख़ियाँ बनीं। समझौते पर दस्तख़त करते विपक्षी नेताओं की तस्वीर ख़ूब वायरल हुई। इस तस्वीर में मध्यमार्गी येश एटिड, कट्टरपंथी नेफ्टाली बेनेट और मुस्लिमों की प्रतिनिधि राम पार्टी के मंसूर अब्बास हैं। समझौते के बाद इजरायली राष्ट्रपति को विपक्षी दलों ने पहले ही सूचित कर दिया कि वह अगली सरकार बनाने जा रहे हैं। इसके लिए संसद का सत्र बुलाकर विपक्ष को अपना बहुमत साबित करना होगा। ऐसा हो गया तो नेफ्टाली बेनेट इजरायल के नये प्रधानमंत्री की शपथ लेंगे। इस तरह नेतन्याहू के 12 साल के शासन का अन्त हो गया।
राम पार्टी के मंसूर अब्बास (47) इजरायल के सम्भावित प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट के साथ गठबन्धन में शामिल हुए हैं। यामिना पार्टी के नेफ्टाली बेनेट को नेतन्याहू से भी ज़्यादा दक्षिणपंथी माना जाता है और वह पूरे वेस्ट बैंक को इजरायल में मिलाने के हिमायती रहे हैं। इसके विपरीत अब्बास की राम पार्टी की बुनियाद रूढि़वादी इस्लामिक विचारधारा वाली है। राम पार्टी के सांसद फिलिस्तीन के समर्थक हैं और पार्टी के चार्टर में फिलिस्तीनियों को उनके अधिकार लौटाने की बात कही गयी है। यही नहीं, अब्बास की पार्टी यहूदीवाद को नस्लवादी और आक्रांताओं की विचारधारा के तौर पर देखती है।
कौन हैं नेफ्टाली
इजरायल के राष्ट्रीय चुनावों में कभी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है। पिछले दो साल में ही वहाँ चार बार आम चुनाव हो चुके हैं। हर बार की तरह इन चुनावों में भी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका। इजरायल की संसद नेसेट में कुल 120 सीटें हैं। इनमें नेफ्टाली बेनेट की यामिना पार्टी के पास छ: सीटें हैं। विपक्ष की जोड़-तोड़ की राजनीति में यामिना पार्टी के चीफ नेफ्टाली बेनेट किंगमेकर बनकर उभरे हैं। हालाँकि उन्हें दो साल बाद समझौते के मुताबिक, अपने विपक्षी गठबन्धन को प्रधानमंत्री पद देना होगा। बेनेट इजरायल डिफेंस फोर्सेज की एलीट कमांडो यूनिट सायरेत मटकल और मगलन के कमांडो रह चुके हैं। सन् 2006 में उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व में राजनीति में प्रवेश किया। इसके बाद वे नेतन्याहू के ‘चीफ ऑफ स्टाफ़’ बनाये गये। सन् 2012 में नेफ्टाली द जुइश होम नाम की पार्टी पर संसद के लिए चुने गये। बाद में वे न्यू राइट और यामिना पार्टी से भी नेसेट के सदस्य बने। सन् 2012 से सन् 2020 के बीच नेफ्टाली पाँच बार इजरायली संसद के सदस्य बन चुके हैं। सन् 2019 से 2020 के बीच वह इजरायल के रक्षा मंत्री भी रहे हैं।
नयी सरकार की शर्तों के अनुसार, बेनेट सितंबर, 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे। उसके बाद लेपिड प्रधानमंत्री बनेंगे और नवंबर, 2025 तक रहेंगे। यह समझौता राम पार्टी के नेता मंसूर अब्बास के साथ आने से हुआ। यह पहली बार होने जा रहा है, जब इजरायल में इस्लामिक पार्टी सत्ताधारी गठबन्धन का हिस्सा बनने जा रही है। वैसे इजरायली संसद में सबसे बड़ी पार्टी नेतन्याहू की लिकुड पार्टी है, जिसके 30 सांसद हैं और दूसरे स्थान पर येर लेपिड की येश एडिट पार्टी है; जिसके 17 सांसद हैं। इजरायल में सरकार बनाने के लिए 61 सांसदों का समर्थन चाहिए। लेकिन किसी भी पार्टी के पास इतने सांसद नहीं हैं। ऐसा तब है, जब पिछले साल स्पष्ट बहुमत के लिए तीन बार चुनाव हो चुके हैं। दरअसल बेनेट के समर्थन पर ही नेतन्याहू की सरकार टिकी थी। बेनेट किंगमेकर की भूमिका में रहे हैं; लेकिन अब किंग की कुर्सी के क़रीब पहुँच चुके हैं।
फिलिस्तीन से रिश्ता
बहुत-से जानकार मानते हैं कि बेनेट के प्रधानमंत्री बनने से फिलिस्तीन के साथ इजरायल की तनातनी बढ़ सकती है। हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच ख़ूब ख़ून-ख़राबा हुआ है। बेनेट वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम को इजरायल में मिलाने की बात करते हैं; लेकिन दोनों इलाक़े सन् 1967 में हुए मध्य-पूर्व के युद्ध के बाद से इजरायल के पास ही हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इसे इजरायल का अवैध नियंत्रण मानता है। समस्या यह है कि प्रधानमंत्री बेनेट खुले तौर पर इजरायल को एक यहूदी राष्ट्र कहते हैं, जिसका मतलब है- इजरायल में अरब मूल के लोग दोयम दर्जे के नागरिक हैं। बेनेट पू्र्वी येरुशलम और वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियाँ बसाने का समर्थन करते हैं और फिलिस्तीन अतिवादियों को जेल नहीं, बल्कि मौत की सज़ा देने के हिमायती हैं। बेनेट नेतन्याहू के वफ़ादार थे; लेकिन सन् 2009 में अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के कारण उनसे अलहदा हो गये थे।
बहुत-से जानकार मानते हैं कि बेनेट के प्रधानमंत्री बनने से मध्य-पूर्व के इस्लामिक देशों से इजरायल के रिश्ते और ख़राब हो सकते हैं। इसी साल मई में आधा महीने तक जब इजरायल और हमास के बीच हिंसक संघर्ष हुआ, तब इस्लामिक देश खुले रूप से हमास के साथ दिखे थे। तुर्की और पाकिस्तान, इजरायल के ख़िलाफ़ काफ़ी मुखर रहे थे। सऊदी अरब समेत कई इस्लामिक देश और दुनिया के बाक़ी देश भी चाहते हैं कि फिलिस्तीन एक स्वतंत्र मुल्क बने, जिसकी राजधानी पूर्वी येरुशलम हो; लेकिन बेनेट इजरायल से लगे फिलीस्तीन को अलग देश बनाने की माँग को ख़ारिज करते रहे हैं। ईरान के प्रति भी बेनेट नीति आक्रामक रही है। हाल में ईरानी कुद्स बलों के प्रमुख ने कहा था कि यहूदियों को यूरोप और अमेरिका लौट जाना चाहिए। ऐसे में बेनेट के प्रधानमंत्री बनने के बाद ईरान से तनाव बढ़ सकता है। देखना यही दिलचस्प होगा कि ऐसे में राम पार्टी के प्रमुख अब्बास का क्या रुख़ रहता है? सफल व्यापारी भी रह चुके बेनेट अपना टेक स्टार्ट-अप 14.5 करोड़ डॉलर में बेचकर सन् 2005 में राजनीति में कूद गये थे। कुछ जानकार इस सरकार भविष्य को लेकर भी आशंकित हैं। इजरायल में बेनेट एक स्थायी सरकार दे पाएँगे, अभी पक्का नहीं कहा जा सकता। यहाँ तक कि उनके एक सांसद पहले ही गठबन्धन के ख़िलाफ़ मतदान करने की बात कह चुके हैं।
मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि जब सरकार हमारे समर्थन पर बन रही है, तो हम अरब समाज के लिए कई उपलब्धियाँ हासिल करने और सरकार के महत्त्वपूर्ण फ़ैसले प्रभावित करने की स्थिति में भी होंगे। गठबन्धन को लेकर हुए समझौते में अरब क़स्बों में अपराध पर लग़ाम लगाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए 16 अरब डॉलर से ज़्यादा धनराशि आवंटित किये जाने का प्रावधान शामिल किया गया है। इसके अलावा अरब गाँवों में बिना अनुमति के घर गिराने पर रोक और बेदूंइन गाँवों को आधिकारिक मान्यता देने की भी बात शामिल है।
मंसूर अब्बास
मुस्लिम नेता और गठबन्धन सहयोगी