ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ आदमी को आईना दिखा रही हैं। इस बार गर्मी में देश के कई राज्यों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस, तो कई का 52 डिग्री से भी ऊपर चला गया था। गर्मियों के बाद कई राज्यों में बारिश का कहर जारी है। पिछले दिनों उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग, जोशीमठ और केदारनाथ मार्ग पर हुए भूस्खलन (लैंडस्लाइड) इंसानी ग़लतियों का ही परिणाम है। हालाँकि पर्वतीय क्षेत्र में भूस्खलन प्राकृतिक घटनाएँ हैं, जो अक्सर होती रहती हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों से जिस तीव्रता से ये आपदाएँ बढ़ी हैं, वह पहाड़ों और वहाँ रहने वालों के लिए ख़तरनाक संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के अलावा बिना सूझबूझ के असीमित निर्माण कार्य और अंधे शहरीकरण से हिमाचल से लेकर उत्तराखण्ड तक के पहाड़ दरका रहे हैं। पहाड़ों के जानकार और वैज्ञानिक इस बात से चिन्तित हैं कि उनकी राय और सुझावों को लगातार दरकिनार किया जा रहा है। उनका कहना है कि यदि लोग अब भी नहीं चेते, तो विनाशकारी आपदाएँ बढ़ती रहेंगी और भविष्य में जान-माल का अधिक नुक़सान होगा। हालाँकि इसके लिए सरकार को कड़े क़दम उठाने होंगे। आईआईटी रुड़की की एक रिपोर्ट में जोशीमठ के धँसने से पहले ही चेतावनी दी थी कि जोशीमठ का 50 फ़ीसदी से अधिक क्षेत्र अत्यधिक जोखिम वाला है।
वर्ष 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी के बाद भी लगातार पहाड़ों पर निर्माण जारी है और लोगों की संख्या बढ़ रही है। जोशीमठ इसी के चलते तबाह हो चुका है और उत्तराखण्ड के कई संवेदनशील ज़िलों में बार-बार लैंडस्लाइड की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। गौरीकुंड-केदारनाथ मार्ग पर चिड़वासा के पास, जोशीमठ से तीन किलोमीटर पहले नेशनल हाईवे पर हुए लैंडस्लाइड में काफ़ी नुक़सान हुआ है। नुक़सान के अलावा जो दूसरे पहलू हैं, जैसे- सड़कों का अवरुद्ध हो जाना, ट्रैफिक का बाधित होना, आने-जाने का संपर्क टूट जाना। केवल ऐसी आपदाओं का किसी एक स्तर पर ही असर नहीं होता, बल्कि पूरा प्रशासन तंत्र, सरकारी कामकाज और आपदा वाली जगह पर बसे लोगों को मुश्किलें आती हैं।
कुछ दशक पहले तक पहाड़ी क्षेत्रों में जाने का मतलब होता था- गर्मियों की छुट्टियों में घूमना-फिरना, पर्वतीय क्षेत्र के सौंदर्य का आनंद लेना। न ज़्यादा वाहन, न ज़्यादा गैजेट्स; और सादगी से लोग घूम-फिर कर आ जाते थे। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के असर के चलते लोगों ने अब पहाड़ी क्षेत्रों का रुख़ करना शुरू कर दिया है। दूसरा धार्मिक और अन्य पर्यटकों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है। ऐसे में ज़ाहिर है कि पहाड़ी क्षेत्र में आबादी का बोझ बढ़ रहा है। इसके चलते सड़कों का चौड़ीकरण, राजमार्गों का निर्माण, रिहायशी व व्यावसायिक बहुमंजिला इमारतों का अंधाधुंध निर्माण और असीमित शहरीकरण हो रहा है। पेड़ों और चट्टानों को काटा जा रहा है। पानी-बिजली के लिए बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण आदि ऐसे कारक और कारण हैं, जो हिमालय क्षेत्र को और कमज़ोर बना रहे हैं।