संक्रमण की तीसरी लहर फैलने की आशंका के मद्देनज़र कांवड़ यात्रा पर सर्वोच्च न्यायालय ने लगायी रोक
कोरोना संक्रमण के फैलने और भविष्य में तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच अब कांवड़ यात्रा पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। अनेक लोग कह रहे हैं कि कोरोना महामारी को लेकर जो काम केंद्र और राज्य सरकारें नहीं कर सकीं, वह सर्वोच्च न्यायालय ने किया है। आपत्ति काले मर्यादा न अस्ति। मौत मुँह पर खड़ी हो, तो ख़ुशी मनाना ठीक नहीं। कोई भी भीड़भाड़ वाला त्योहार हो, उस पर रोक लगनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय का यह फ़ैसला स्वागत योग्य है, जिसका कांवडिय़ों ने भी स्वागत किया है। विदित हो कि कांवड़ यात्रा 25 जुलाई से शुरू होनी थी। कांवड़ यात्रा से जुड़े लोगों ने ‘तहलका’ को बताया कि कोरोना की दूसरी लहर का कहर जारी है और तीसरी लहर की आंशका है, जिसे देखते हुए न्यायालय ने इस धार्मिक यात्रा पर रोक लगायी है। हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की सराहना करते हैं और उसका पालन करेंगे।
बताते चलें कि कांवड़ यात्रा हर साल सावन के महीने से शुरू होती है, जिसमें देश भर से लाखों कावडिय़ा महत्त्वपूर्ण सनातन (हिन्दू) तीर्थ स्थल हरिद्वार जाकर वहाँ से गंगा जल लेकर घर वापस लौटते हैं। इस साल कोरोना महामारी की तीसरी लहर के दौरान कांवड़ यात्रा होने से लाखों लोगों में कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा था। क्योंकि कांवडि़ यात्रा से रास्तों पर, कांवड़ स्वागत स्थलों पर और हरिद्वार में भीड़ जुटना स्वाभाविक है। इन्हीं सब बातों पर ग़ौर करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों से कहा कि इस साल हर हाल में कांवड़ यात्रा को रोकना ज़रूरी है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा रोक दी है; जबकि उत्तराखण्ड सहित अन्य राज्य सरकारों ने पहले ही चिकित्सकों, विशेषज्ञों की सलाह पर कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी थी।
कांवड़ यात्रा महासंघ से जुड़े विशाल शुक्ला का कहना है कि हर साल सावन के महीने में कांवड़ यात्रा को लेकर गुडग़ाँव और दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक वह महासंघ के सहयोग से निर्धारित स्थानों पर मेडिकल कैम्प और भण्डारे लगाते रहे हैं, ताकि किसी भी कांवड़ यात्री को कष्ट न हो। लेकिन पिछले साल से कोरोना महामारी के कहर ने लोगों को परेशान कर दिया है, जिसके चलते कांवड़ यात्रा के दौरान कोरोना के संक्रमण फैलने के ख़तरे को भाँपते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बार रोक लगायी है।
दरअसल कांवड़ यात्रा को लेकर सही मायने में पेच उत्तर प्रदेश को लेकर फँसा था। उत्तर प्रदेश सरकार कांवड़ यात्रा को सुचारू रूप से जारी रखने को अडिग थी। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना था कि कोरोना प्रोटोकाल के तहत कांवड़ यात्रा जारी रहेगी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में होने वाली कांवड़ यात्रा पर स्वत: संज्ञान लेते हुए रोक लगा दी।
कांवड़ महासंघ के सदस्य प्रदीप कुमार ने कहा कि महासंघ नोएडा में हर साल सावन के महीने में कांवडिय़ों का भव्य स्वागत करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी। इसलिए महासंघ ने फ़ैसला लिया है कि वह न्यायालय और सरकार के आदेश का पालन करेगा।
पंडित सुरेन्द्र पांडेय का कहना है कि कोई भी बीमारी ग़रीबी-अमीरी में भेद नहीं करती। जब यह कोरोना महामारी भीड़-भाड़ वाली जगहों से जल्दी फैलती है, तो भीड़ से बचाने के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश दिया है, हम उसका पालन करेंगे और लोगों से अपील भी करते हैं कि वे भी कोरोना की लड़ाई में सरकार का साथ दें। पूजा-अर्जना अपने घरों में श्रद्धा के साथ करें। भीड़-भाड़ से बचें।
कांवड़ यात्रा पर रोक लगने के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने भले ही इसे सियासी अखाड़ा बनाने की कोशिश की; लेकिन न्यायालय के फ़ैसले के कारण सियासी दाँव नहीं चल सका। भले ही कोरोना सियासतदानों के काम का है; लेकिन इस साल कोरोना महामारी से लाखों लोग मर गये और कई परिवार के परिवार तबाह हो गये। ऐसे में सियासी तीर चलाने वालों के लिए कांवड़ यात्रा काफ़ी राजनीतिक नुक़सान का कारण बन सकती थी। लेकिन कांवड़ यात्रा पर ज़्यादा राजनीति नहीं हो सकी। कुछ लोगों ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय की दख़ल के पहले हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों से कांवड़ यात्री हरिद्वार पहुँच गये। सवाल यह है कि क्या पहले ही हरिद्वार जा चुके कांवडिय़ों को वापसी में सरकार रोकेगी?
इस बारे में कांवडिय़ा राजकुमार का कहना है कि हर साल कांवड़ यात्रा के 15 से 20 दिन पहले बहुत-से कांवडिय़ा हरिद्वार पहुँच जाते हैं। इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है। रोक तो अभी लगी है। इसलिए हरिद्वार पहुँच चुके कांवडिय़ा अपनी और दूसरों की सुरक्षा करते हुए कोरोना वायरस की जाँच के बाद ही अपने घर आएँ।