आस्था या धर्म के चलते मनुष्य भगवान या किसी के साथ जुड़ता है। विश्वास इनसे मनुष्य का सम्बन्ध निर्धारित करता है। धर्म या आस्था और विश्वास में चोली-दामन का सम्बन्ध है। यही वजह है कि हर धर्म के विश्वास का प्रतीक उनके धर्म स्थल या तीर्थ स्थल हैं।
इन तीर्थ स्थलों में अगर मिलावट की परत चढ़ जाए, तो निश्चित रूप से श्रद्धालुओं का मन खट्टा होता है। ऐसा ही कुछ सावन में झारखण्ड के देशव्यापी धर्म स्थली देवघर यानी बैद्यनाथ धाम (बाबा धाम) में हो रहा है। खाने-पीने का सामान की कौन कहे, लोगों की आस्था और विश्वास रूपी प्रसाद भी मिलावट से अछूता नहीं रहा है। दरअसल एक पूरा तंत्र इसके पीछे सक्रिय है, जो धर्म-आस्था में मिलावट का चक्रव्यूह कुटिलता से रचता है। पुलिस-प्रशासन मुस्तैद है। कार्रवाई भी हो रही है। लेकिन यह केवल अभिमन्यु तरह चक्रव्यूह को भेदने का रास्ता है, जबकि ज़रूरत चक्रव्यूह को भेदकर उससे निकलने का रास्ता भी तलाश करने की भी है। न कि चक्रव्यूह में फँस कर दम तोडऩे का।
देश में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग झारखण्ड स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम या बाबा धाम (देवघर) को माना जाता है। इसलिए हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है। यूँ तो साल भर यहाँ श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है; लेकिन सावन महीना ख़ास होता है। पूरा सावन महीना मेला लगता है। बिहार के सुल्तानगंज से पवित्र गंगा से जल लेकर श्रद्धालु (कांवड़ यात्रा) 100 किलोमीटर से अधिक पैदल यात्रा कर झारखण्ड के बाबा धाम पहुँचते और महादेव को जल चढ़ाते हैं। सावन में हर दिन एक लाख से अधिक श्रद्धालु बाबा धाम पहुँचते हैं। जो श्रद्धालु बैद्यनाथ धाम आते हैं, वे बाबा मंदिर में दर्शन के बाद बासुकीनाथ मंदिर महादेव के दर्शन के लिए ज़रूर जाते हैं। बासुकीनाथ मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमंडी गाँव के पास है। मान्यता है कि बाबा धाम की यात्रा तब तक अधूरी रहती है, जब तक बासुकीनाथ का दर्शन नहीं किया जाए।
प्रसाद में गड़बड़ी के आरोप
देवघर और बासुकीनाथ में प्रसाद के रूप में पेड़ा, चूड़ा और इलायची दाना प्रसाद के रूप में विख्यात है। यह प्रसाद श्रद्धालु अमूमन बाबा को चढ़ा नहीं पाते हैं। अधिकतर श्रद्धालुओं के बीच मान्यता यह भी है कि बाबा महादेव को चढ़ा हुआ प्रसाद खाते नहीं हैं। इसलिए ऐसे लोग बाबा धाम और बासुकीनाथ समेत अन्य शिवालयों में बाबा को प्रसाद चढ़ाकर वहीं छोड़ देते हैं। इन दोनों शहरों की दुकानों में बिकने वाला पेड़ा, चूड़ा और इलायची दाना ही बाबा का प्रसाद है। मान्यता के अनुसार, इसे बाबा को चढ़ा हुआ प्रसाद माना जाता है। लेकिन श्रद्धालु इन धर्म स्थलों की दुकानों से बाबा के प्रसाद के रूप में पेड़ा, चूड़ा और इलायची दाना ख़रीदकर लेकर जाते हैं। परिवार, रिश्तेदार, दोस्त और अन्य लोगों के बीच इस प्रसाद बाँटते हैं।
करोड़ों रुपये का कारोबार
देवघर और बासुकीनाथ में पेड़ा, चूड़ा और इलायची दाने यानी प्रसाद का करोबार साल भर में करोड़ों रुपये का है। सावन महीना ख़ास होता है। देवघर ज़िला पेड़ा व्यवसाय का हब बन जाता है। देवघर और बासुकीनाथ धाम मुख्य मार्ग पर स्थित घोड़मारा के पेड़ा काफ़ी विख्यात है। यहाँ आम दिनों में तक़रीबन 150 से पेड़े की दुकानें सजी रहती हैं, जबकि सावन माह में इसकी संख्या 1,000 से अधिक तक पहुँच जाती है।
देवघर, बासुकीनाथ और घोड़मारा में सावन में लगभग 60 करोड़ रुपये से अधिक का पेड़ा बिकता है, जबकि साल भर में यहाँ 120 करोड़ रुपये से अधिक का पेड़ा कारोबार हो जाता है। इस वर्ष 2023 में मलमास लगने के कारण सावन लगभग दो महीने (58 दिन) का हो गया है। इसलिए 4 जुलाई से शुरू हुआ सावन मेला 30 अगस्त को समाप्त होगा। लिहाज़ा इस वर्ष कारोबार अधिक होने की उम्मीद है। स्थानीय व्यवसायियों की मानें, तो इस वर्ष सावन के दौरान 80 से 100 करोड़ रुपये के कारोबार की उम्मीद है।
खोवा की आवक और ज़ब्ती
स्थानीय व्यवसायी का कहना है कि सावन में हर दिन एक लाख से अधिक श्रद्धालु बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ पहुँचते हैं। अगर एक श्रद्धालु औसत एक किलो पेड़ा भी ख़रीदता है, तो हर दिन 1,00,000 किलो पेड़ा की बिक्री होती है। हालाँकि यह एक अनुमान मात्र है। इससे अधिक ही पेड़ा की बिक्री होती होगी। पेड़ा के लिए खोवा (मावा) की ज़रूरत होती है। एक लीटर शुद्ध दूध से लगभग 100 से 150 ग्राम खोवा निकलता है। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि 1,00,000 किलो पेड़ा के लिए कितने लीटर दूध की ज़रूरत होती है? देवघर और बासुकीनाथ में स्थानीय स्तर पर दूध उत्पादन से माँग के अनुसार खोवा की आपूर्ति नहीं हो पाती है। लिहाज़ा बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से खोवा मँगाया जाता है।
सावन में देवघर, बासुकीनाथ, घोड़माड़ा आदि इला$कों में प्रशासन द्वारा मिलावटी पेड़ा की जाँच को लेकर विशेष अभियान चलाया जा रहा है। खाद्य-आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने औचक निरीक्षण में बासुकीनाथ में मंदिर के पास स्थित दुकानों से 8 जुलाई को 200 किलो मिलावटी पेड़ा बरामद किया गया। यह सिंथेटिक खोवा से बना था। इसे ज़ब्त कर नष्ट किया गया और दुकानदारों पर कार्रवाई की गयी। केवल बासुकीनाथ से ही अब तक 5,500 किलो से अधिक का मिलावटी पेड़ा पकड़ा जा चुका है।
इसी तरह 23 जुलाई को 250 किलो मिलावटी पेड़ा देवघर, बासुकीनाथ और घोड़ामाड़ा इलाक़े से बरामद किया गया। पूरे सावन हर दिन पर जाँच के दौरान मिलावटी पेड़ा की सूचना देवघर, बासुकीनाथ और घोड़माड़ा के किसी-न-किसी इलाक़े से मिलती रहती है।
दूध की कमी और मिलावट
खोवा दूध से ही बनता है। देश में दूध और डेयरी उत्पादों के उत्पादन उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में 24 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत का दूध उत्पादन 2013-14 में 137.7 मिलियन टन से बढक़र 2021-22 में 221.1 मिलियन टन हो गया है। वहीं उपलब्धता भी 303 ग्राम प्रति दिन से बढक़र 444 ग्राम प्रति दिन हो गयी है। इसके बाद भी माँग के अनुसार दूध के उत्पादन की कमी महसूस की जा रही है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, झारखण्ड में लगभग 1.25 करोड़ गायें और 14.50 लाख भैंसें हैं। कुछ वर्ष पहले जहाँ प्रतिदिन 97 हज़ार लीटर दूध का उत्पादन था। वहीं यह मौज़ूदा में बढक़र 1.45 लाख लीटर प्रतिदिन हो गया है।
इसके बावजूद राज्य में माँग के अनुसार उत्पादन नहीं हो रहा है। हर दिन लगभग 30 से 40 हज़ार लीटर दूध बिहार और उत्तर प्रदेश के राज्यों से मँगाने की ज़रूरत होती है। ऐसी स्थिति में सावन में देवघर, बासुकीनाथ आदि क्षेत्र में दूध की माँग का अंदाज़ा सहज लगाया जा सकता है। लाखों लोगों के एक स्थान पर हर दिन जुटने से माँग बढऩा तय है।
खोवा की कौन कहे, मिलावटी तो दूध से ही शुरू हो जाती है। दूध में मिलावट के ख़िलाफ़ पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत सरकार को एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें संगठन ने साफ़तौर पर कहा है कि अगर देश में मिलावटी दूध और इससे बने उत्पादों पर प्रतिबंध नहीं लगा, तो अगले साल 2025 तक भारत की 87 फ़ीसदी आबादी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की चपेट में आ जाएगी। झारखण्ड हाई कोर्ट ने पिछले दिनों दूध समेत अन्य खानपान की चीज़ों में मिलावट पर स्वत: संज्ञान लिया था।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार बताये कि फूड सेफ्टी अफ़सर और इससे सम्बन्धित अन्य पदों पर बहाली क्यों नहीं हो रही? फूड सेफ्टी अफ़सर नहीं रहने से आम जनता को मिलावटी दूध और खाना परोसा जा रहा है। यह ख़तरनाक है। यानी देश से लेकर राज्य स्तर तक दूध में मिलावट की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। सावन में देवघर और बासुकीनाथ में पेड़ा के अलावा दूध की माँग बढ़ जाती है। पेड़ा ही नहीं चाय, रबड़ी, दही समेत अन्य दूध के बायप्रोडक्ट की खपत बढ़ जाती है। आपूर्ति माँग के अनुसार नहीं होने पर मिलावट की बात को इनकार नहीं किया जा सकता है।
सुधार की ज़रूरत
दूध और खोवा व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि शुद्ध दूध 50 रुपये प्रति लीटर से कम में नहीं मिलता है। एक लीटर दूध से क़रीब 100 ग्राम खोवा निकलता है। इसके बाद चीनी आदि मिलाकर पेड़ा तैयार होता। यानी एक किलो पेड़े की क़ीमत 600 से 700 रुपये होनी चाहिए। अगर इससे कम दर पर पेड़ा बेचा जाएगा, तो निश्चय ही घाटे का सौदा होगा। ऐसे में 200-300 रुपये किलो पेड़ा बेचा जा रहा है, तो शुद्धता की उम्मीद करना बेमानी ही होगा। दरअसल किसी भी सामान की माँग अधिक और आपूर्ति कम होगी, तो उसकी क़ीमत बढ़ेगी या फिर मिलावट कर उसकी भरपाई की जाएगी। जिस हिसाब में देवघर और बासुकीनाथ में पेड़े की माँग है, उस हिसाब में शुद्ध खोवा की आपूर्ति होगी, तो मिलावट की सम्भावना कम होगी। साथ ही क़ीमत को भी उचित रूप में तय करना होगा। तभी मिलावट पर कार्रवाई के साथ-साथ इस चक्रव्यूह से निकला जा सकेगा। नहीं तो ऐसे ही एक तरफ़ कार्रवाई होती रहेगी और दूसरी तरफ़ मिलावट का खेल जारी रहेगा।