दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को नये तरीके से सँभालने और जनाधार बढ़ाने के लिए भाजपा आलाकमान ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम में महापौर रहे आदेश गुप्ता को दिल्ली की बागडोर सौंपी है। लेकिन उनके लिए यह डगर आसान नहीं है। क्योंकि दिल्ली भाजपा में गुटबाज़ी चरम पर है। इसी गुटबाज़ी के चलते दिल्ली भाजपा अध्यक्ष पर चुने जाने से उन वरिष्ठ नेताओं को नज़रअंदाज़ किया गया है, जो सालों-साल से इसी उम्मीद में पार्टी की सेवा कर रहे थे कि उनको एक दिन पार्टी में दिल्ली प्रदेश की ज़िम्मेदारी मिल सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने आपको उपेक्षित मान रहे हैं। ऐसे हालात में आदेश गुप्ता को पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के साथ तालमेल करना काफी मुश्किल भरा होगा। दूसरी बात आदेश गुप्ता दिल्ली की सियासत में कोई चॢचत चेहरा नहीं रहे हैं। मगर कहा जाता है कि सियासत में नफा-नुकसान देखकर ही फैसले लिये जाते हैं। आदेश गुप्ता मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रहने वाले हैं। वह छात्र राजनीति और संगठन से जुड़े रहे हैं। इसका लाभ उनको मिला है। बताते चलें कि सम्भावित 2022 के मार्च-अप्रैल में दिल्ली नगर निगम में चुनाव हैं। दिल्ली में उत्तर प्रदेश के लाखों की संख्या में वैश्य समाज के लोग रहते हैं। ऐसे में सीधे तौर पर वोटरों के तौर पर वैश्यों को भाजपा के पक्ष में साधने का प्रयास किया गया है। दिल्ली की राजनीति में विरोधी दलों के बीच यह भी मैसेज दिया गया है कि भाजपा व्यापारी वर्ग को अपने साथ खुश रख सकती है। नवनियुक्त आदेश गुप्ता के व्यापारी वर्ग में अच्छा-खासा तालमेल है।
माना जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा से वैश्य समुदाय नाराज़ चल रहा है और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का राजनीति में उदय होने से भाजपा का पारम्परिक मतदाता और दानदाता केजरीवाल के साथ खड़ा हो गया है। ऐसे में भाजपा के लिए वैश्य समुदाय को हर हाल में साधना चुनौती बन गया है। बताते चलें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को वैश्य समुदाय से बड़ी उम्मीदें थीं कि वह भाजपा के साथ होगा। पर चुनाव परिणामों से भाजपा हार के कारण सकते में आ गयी। आदेश गुप्ता के सामने अगर सही मायने में कोई चुनौती है, तो वे हैं 2022 के दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल। क्योंकि आम आदमी पार्टी का जनता में लोकप्रियता का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में भाजपा का सीधा मुकाबला आप से होगा। मौज़ूदा दौर में दिल्ली की सियासत में आप का एक तरफा दबदबा है। दरअसल भाजपा में सही मायने में आप का कोई काट नहीं दिख रहा है। भले ही आप मुफ्त की ही राजनीति करके जनता को खुश करने का प्रयास कर रही है। जनता को तो सुविधाएँ चाहिए, उसे और क्या चाहिए? भाजपा का आलाकमान से लेकर पदाधिकारी और कार्यकर्ता भली-भाँति जनता से परिचित हैं कि अगर आप की मुफ्त वाली सियासत यूँ ही चलती रही, तो आगामी चुनावों में काफी दिक्कत हो सकती है। क्योंकि दिल्ली में बसों में जो यात्रा महिलाएँ कर रही हैं और बिजली-पानी को जो सुविधाएँ लोगों को मिल रही हैं, उससे दिल्ली वाले काफी खुश हैं। दिल्ली वालों का अपना मिजाज़ है कि जब सुविधाएँ और विकास आसानी से मिल रहा हो, तो क्यों दूसरा नेता चुनें? यह बात दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता ने आप को जिताकर जता दी है। ऐसे में अब भाजपा के सामने सही मायने में आप ही चुनौती है।
आदेश गुप्ता को भले ही ज़मीनी नेता न माना जाता हो, पर उनकी संगठन और पार्टी आलाकमान में अच्छी पकड़ मानी जाती है और वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के करीबी माने जाते हैं। तहलका के विशेष संवाददाता ने आदेश गुप्ता से पूछा कि वह पार्टी में गुटबाज़ी कैसे निपटेंगे और वरिष्ठ नेताओं के साथ कैसे तालमेल बिठाएँगे? तो उन्होंने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ काम किया है। उनके अनुभवों का लाभ लिया जाएगा और कार्यकर्ता तो पार्टी की रीढ़ हैं। उनको मज़बूत करेेंगे और पार्टी को भी। रहा सवाल पार्टी में गुटबाज़ी का, तो पार्टी में कोई गुटबाज़ी नहीं है। क्योंकि जिस पार्टी में निचले स्तर का कार्यकर्ता भी ऊँचे स्तर पर जा सकता है, तो वहाँ पर गुटबाज़ी नहीं हो सकती है। उन्होंने बताया कि इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसी महामारी से जूझ रही है। उस पर भी काम करना है।
बताते चलें कि दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी का कार्यकाल नवंबर, 2019 में पूरा हो गया था; तबसे दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कई नामों पर चर्चा थी। लेकिन आलाकमान 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव तक किसी नये चेहरे पर दाँव लगाना नहीं चाहती थी। दिल्ली विधानसभा का चुनाव मनोज तिवारी के नेम और फेम पर ही लड़ा गया था।
चुवाव में भाजपा को सम्भावित जीत तो नहीं मिल सकी, फिर कोरोना की दस्तक के कारण भापजा दिल्ली में किसी नये नाम पर मुहर नहीं लगा पा रही थी। पार्टी सूत्रों का कहना है जैसे-जैसे पार्टी में अध्यक्ष के नाम को लेकर नये-नये नामों पर चर्चाओं और अटकलों का दौर चल रहा था, वैसे-वैसे पार्टी में गुटबाज़ी भी बढ़ती जा रही थी। इन्हीं तमाम अटकलों को विराम देते हुए अन्त में आदेश गुप्ता के नाम पर ही मुहर लगा दी गयी।