यह 27 फरवरी, 2020 की ही बात है, जब नीति आयोग ने स्कूलों में आॢटफिसियल इंटेलिजेंस (एआई) कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉड्यूल तैयार करने के लिए नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कम्पनीज (नैसकॉम) के साथ हाथ मिलाया। वैसे साल 2019-2020 का शैक्षणिक सत्र अब समाप्त हो गया है, जब नीति आयोग और नैसकॉम ने स्कूलों में आईए को पूरा करने के लिए हाथ मिलाया है। इस आयोजन के बाद जारी एक बयान में कहा गया है कि देश के युवाओं के दिमाग को सशक्त बनाने के लिए 27 फरवरी को नैसकॉम के सहयोग से नवीनतम तकनीकों के साथ भारतीय विद्यालयों में छात्रों के लिए एक एआई आधारित मॉड्यूल शुरू किया गया है।
एआई-आधारित मॉड्यूल को छात्रों के लिए एआईएम की अटल टिंकरिंग लैब (एटीएल) की पूरी क्षमता का लाभ उठाने के उद्देश्य से पेश किया गया है और यह उन्हें बड़े पैमाने पर समाज को लाभ पहुँचाने वाले मूल्यवान समाधानों को नया करने और बनाने का अधिकार देता है। मॉड्यूल में गतिविधियाँ, वीडियो और प्रयोग शामिल हैं, जो छात्रों को एआई की विभिन्न अवधारणाओं के माध्यम से काम करने और सीखने में सक्षम बनाते हैं। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कान्त ने इस मामले में अपने विचार साझा किये। उन्होंने कहा कि भारत मशीन लॄनग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग के माध्यम से वार्षिक आधार पर अपने सकल घरेलू उत्पाद में 1.3 फीसदी वृद्धि कर सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय एक साझा कनेक्टेड शून्य-उत्सर्जन दुनिया, तपेदिक, कैंसर जैसी बीमारी और सीखने के परिणामों की चुनौतियों का हल खोज सकते हैं। अगर हम भारत के 1.3 अरब लोगों के लिए इन चुनौतियों का समाधान खोजने में सक्षम होते हैं, तो हम दुनिया के 7.5 अरब लोगों के लिए भी समाधान खोज सकते हैं।
उन्होंने कहा कि एआई मॉड्यूल इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण है कि यह बहुत कम उम्र से छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर देगा। फिर भारतीय एआई में प्रमुख खिलाड़ी बन जाएँगे, जैसा कि अतीत में रोबोट, 3डी प्रिंटिंग, आईओटी के क्षेत्र में किया गया है। यह नयी खोज है, जो खेल और शिक्षाविदों को जोड़ती है और हमारा काम चीज़ों को बहुत रोचक बनाना है। हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बहुत मज़ेदार बनाना चाहते हैं, ताकि बच्चे इसका आनन्द ले सकें, वे विकसित हो सकें और कुछ नया सीखकर भारत को आगे ले जा सकें।
सीबीएसई की तैयारी
गौरतलब है कि सीबीएसई ने 14/2019 नम्बर का एक सर्कुलर 09 मार्च, 2019 को जारी किया था। इस सर्कुलर में स्पष्ट रूप से सूचित किया था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को व्यापक रूप से ऐसी शक्ति के रूप में पहचाना जा रहा है, जो भविष्य की वैश्विक डिजिटल अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देगी। पिछले कुछ वर्षों में एआई ने भू-रणनीतिक महत्त्व प्राप्त किया है और बड़ी संख्या में खुद को तैयार करने और देश को नीतिगत पहल के साथ आगे रखने के लिए हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं। भारत की अपनी एआई रणनीति समावेशी आर्थिक विकास और सामाजिक विकास के लिए एआई को एक अवसर और समाधान प्रदाता के रूप में पहचानती है।
यह रिपोर्ट कौशल-आधारित शिक्षा, जो गहन ज्ञान पर आधारित शिक्षा नहीं है; को एआई परियोजना से सम्बन्धित कार्यों का प्रभावी तरीके से दोहन करते हुए भारत की अगली पीढ़ी को एआई के हिसाब से तैयार करने के महत्त्व को रेखांकित करती है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त का कहना है कि यह एआई मॉड्यूल बहुत महत्त्वपूर्ण है; खासकर इस अर्थ में कि यह बहुत कम उम्र से छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू करेगा। उन्होंने कहा कि हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता को ज़्यादा मज़ेदार बनाना चाहते हैं, ताकि बच्चे इसका आनन्द लेते हुए सीखने के साथ-साथ विकसित हो सकें और भारत को आगे ले जा सकें।
पिछले दशक में प्रौद्योगिकी नवाचार में तेज़ी थी; क्योंकि उद्योगों ने उभरती प्रौद्योगिकियों के साथ हस्तक्षेप किया, जो पहले कभी नहीं हुआ था। यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक एआई में वैश्विक बाज़ार के 15 से 15.5 ट्रिलियन डॉलर की सीमा तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें से भारत का हिस्सा करीब एक ट्रिलियन डॉलर होगा। नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन के निदेशक आर. रमानन का कहना है कि एआई 21वीं सदी के नवाचारों का एक अभिन्न हिस्सा बनने जा रही है। हमें अपने 5000 अटल टिंकरिंग लैब्स में ‘लर्न इट योरसेल्फ’ मॉड्यूल शुरू करने पर गर्व है, जिनमें 25 लाख से अधिक छात्रों की पहुँच है। उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों को नवीनतम तकनीकों के अनुरूप रखने के लिए इस तरह के पैमाने पर सरकार की यह पहली अकादमिक पहल है।
भारत इस नये तकनीक-संचालित दशक में नेतृत्व करने और प्रासंगिक बने रहने के लिए, विशेषकर एआई जैसी उभरती हुई तकनीकों और समाज में एआई की सर्वव्यापकता के लिए अग्रसर है। सरकार और शिक्षाविदों के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वे स्कूलों में एआई सीखने में सहयोग करें और डिजिटल भविष्य के लिए युवा दिमाग तैयार करें। सहयोग के बारे में नैसकॉम के अध्यक्ष देबजानी घोष कहते हैं कि एआई पूरे राष्ट्र में आर्थिक विकास के लिए एक रणनीतिक औज़ार बन गया है और भविष्य की सबसे महत्त्वपूर्ण तकनीकों में से एक रहेगा। इसके प्रभाव को देखते हुए छात्रों को एआई सीखने के लिए संसाधनों को पेश करने का नीति आयोग द्वारा उठाया गया यह एक अहम कदम है। यह छात्रों, विशेष रूप से केजी से लेकर 12वीं तक की कक्षाओं के लिए भविष्य की तकनीकों को ऑनबोर्ड करने और डिजिटल तथा एआई युग के लिए उन्हें पूरी तरह से तैयार करने के लिए सही नींव तैयार करेगा। इसकी साझेदारी देश नागरिकों के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण कदम है और एक कार्यबल, जिसे एआई के बारे में पता है तथा जो एआई के साथ काम कर सकता है; इसके लिए काम करेगा।
हैंड्स-ऑन एआई मॉड्यूल को स्कूल में अकादमिक, सह-विद्वान और अन्य एटीएल कार्यक्रमों का ध्यान रखते हुए डिजाइन किया गया है। युवा छात्रों को राष्ट्र निर्माण की यात्रा में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए भी इसे तैयार किया गया है। मॉड्यूल युवाओं के लिए नवीनतम तकनीकों का पता लगाने, उन्हें तैयार करने और सीखने के लिए एक उत्प्रेरक होगा और ज़मीनी स्तर पर नवाचारियों की एक पीढ़ी का निर्माण करेगा।
नीति आयोग द्वारा शुरू किया गया अटल इनोवेशन मिशन उद्यमिता और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की प्रमुख पहल है। एआईएम पूरे भारत के सभी ज़िलों में स्कूल स्तर पर एटीएल की स्थापना कर रही है। एआईएम ने अब तक एटीएल की स्थापना के लिए 33 प्रदेशों व केंद्र शासित प्रदेशों में फैले देश भर के कुल 14,916 स्कूलों का चयन किया है।
नैसकॉम, एआई और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका को स्वीकार करता है; जो कि डिजिटल रूप से संचालित भविष्य के लिए आवश्यक है। स्कूलों में एआई और सीखने की संस्कृति को विकसित करके वैश्विक स्तर पर समग्र उद्योगों के लिए बड़े अवसर पैदा होते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए नैसकॉम और एआईएम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लॄनग पर विशेष मॉड्यूल विकसित करने के लिए उद्योग के सदस्यों और विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर काम किया है।
राष्ट्र निर्माण के लिए डिजिटल प्रतिभा को बढ़ावा देना आईटी-आईटीईएस सेक्टर कौशल परिषद्, नैसकॉम के किये गये लगातार प्रयासों में से एक है। इस महत्त्वपूर्ण पहल और इस तरह के कई कार्यक्रमों के आयोजन के लिए आईटी-आईटीईएस सेक्टर कौशल परिषद् नैसकॉम ने प्रयास शुरू किये हैं। यह देश में कौशल विकास पारिस्थितिकी तंत्र को उत्प्रेरित करने और भारत में आईटी व उद्योगों के लिए योग्य प्रतिभाओं का निर्माण करने के लिए एक प्रमुख स्तम्भ रहा है। एआई बेस मॉड्यूल एटीएल छात्रों को प्रस्तुत करने के लिए तैयार है। इसके अतिरिक्त एआई स्टेप-अप मॉड्यूल, जो बेस मॉड्यूल तैयार करता है; अगले कदम की तैयारी कर रहा है।
सीबीएसई की पहल
कृत्रिम शिक्षा के लिए स्कूली छात्रों को एआई अवेयर बनाना या छात्रों के बीच एआई रेडिनेस बनाना सीबीएसई का प्राथमिक कार्य और नयी पहल है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मार्गदर्शन में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने इस सम्बन्ध में दोहरी पहल की है। पहली, एआई को 8वीं, 9वीं और 10वीं कक्षा में इसे ऐच्छिक विषय के रूप में पेश करना है। शुरुआत के रूप में स्कूलों को सीबीएसई को आवेदन करना होगा और इस पाठ्यक्रम को चलाने के लिए अनुमोदित किया जाएगा। कक्षा 8 और 9 के लिए एआई पाठ्यक्रम को तैयार कर दिया गया है और एक फैसिलिटेटर्स हैंडबुक बनायी गयी है। सीबीएसई स्कूलों में एआई के शिक्षण के लिए व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण का भी समर्थन कर रहा है।
दूसरी पहल इस आधार से सम्बन्धित है कि एआई एक संज्ञानात्मक विज्ञान है, जिसे विभिन्न विषयों से जोड़ा जा सकता है; जो स्वयं अनुभूति और तर्क के साथ स्वचिंतन करते हैं। लगभग हरेक स्कूल में ये विषय डोमेन में आते हैं, जिनमें गणित, कम्प्यूटिंग, न्यूरो-विज्ञान, मनोविज्ञान, भौतिकी, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शन, भाषा और कुछ अन्य विषय शामिल हैं। इसलिए, सीबीएसई ने यह अनिवार्य किया है कि उसके सभी स्कूल पहली कक्षा से 12वीं तक अन्य विषयों के साथ एआई को एकीकृत करना शुरू करेंगे। एआई एकीकृत लॄनग से आजीवन सीखने के लिए मुख्य दक्षताओं को विकसित करने में मदद मिलेगी, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- एआई को एक उपकरण के रूप में विषय ज्ञान प्राप्त करना, सीखने की समस्या का समाधान, नवाचार और पहल करना, प्रमुख विषयों में आवेदन, बातचीत करने की कला विकसित करना, सामाजिक ज़िम्मेदारियों तथा अनुप्रयोगों का पालन करना, व्यावसायिक नैतिकता सीख और संचार कौशल को लागू करना। उच्च शिक्षा का भविष्य आंतरिक रूप से नयी प्रौद्योगिकी और नयी आधुनिक मशीनों की कम्प्यूटिंग क्षमताओं के विकास से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा में शिक्षण-प्रशिक्षण की नयी सम्भावनाओं और चुनौतियों के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता में प्रगति, मौलिक रूप से शासन में परिवर्तन और उच्च शिक्षा संस्थानों की आंतरिक क्षमता बढ़ाना शामिल हैं।
नेतृत्व करेगा भारत
दुनिया की कुल आबादी का छठा हिस्सा यानी भारत सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की वैश्विक सफलता का निर्धारण करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाला है। साल 2030 तक भारत में दुनिया के सबसे अधिक युवा होंगे। यदि ये युवा कार्यबल में शामिल होने के लिए पर्याप्त कुशल हो जाएँ, तब यह हमारे देश के लिए एक वरदान साबित होगा।
हाल ही में नीति अयोग ने ‘भारतीय शिक्षा क्षेत्र के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा व्यवधान के लिए परिपक्व है’ शीर्षक से अभिजय अरोड़ा का लिखा एक पत्र प्रकाशित किया है। इस पत्र में कहा गया है कि हाल ही में लॉन्च किये गये एसडीजी इंडेक्स 2019-2020 में नीति आयोग ने क्वालिटी पर एसडीजी के तहत 58 का समग्र स्कोर भारत को सौंपा है, जिसके अनुसार केवल देश के 12 प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों में 64 से अधिक का स्कोर है।
शिक्षा पर वर्तमान सरकारी व्यय जीडीपी के 3 फीसदी से कम है और प्राथमिक विद्यालय के लिए विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात 24:1 है, जो ब्राजील और चीन जैसे देशों से भी कम है। इसके अलावा तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और घटते संसाधनों के साथ शिक्षकों की माँग की पूर्ति करना सम्भव नहीं होगा।
उच्च स्तर का दृष्टिकोण ज़रूरी
एसडीजी को ज़मीनी स्तर पर मज़बूत बनाना होगा। अगर हम संयुक्त राष्ट्र के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पिछले दशक में देखें, तो महसूस होता है कि इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इसे प्राप्त करने के लिए समयसीमा के अन्दर एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए अपने संकेतकों की निगरानी करने की ज़रूरत होगी। ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स कार्यक्रम के तहत लक्ष्यों की निगरानी और ट्रैकिंग किस तरह से विभिन्न ज़िलों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे सकती है, जिसमें कि प्रत्येक ज़िले को निर्धारित जनादेश प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
इन लक्ष्यों की दिशा में गति देने के लिए आवश्यक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) द्वारा गति प्रदान की जाएगी, जो इन आकांक्षाओं को उपलब्धियों में बदलने के लिए गेमचेंजर साबित होगी। काफी संवाद शक्ति के उपयोग के साथ दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में डाटा बिन्दुओं की अभूतपूर्व उपलब्धता सम्भावित रूप से भारत को एआई के ज़माने के सबसे मज़बूत लाभार्थियों में से एक बना सकती है। इसे शुरू तो कर दिया गया था, लेकिन अब एआई-संचालित सिस्टम को बेहतर किया जा रहा है। क्योंकि वे अधिक-से-अधिक सीखते हैं और उनके पास अधिक डाटा उपलब्ध है।
गुणवत्ता वाली शिक्षा के एजेंडे के तहत एक लक्ष्य है कि 2030 तक हमारे राष्ट्र को योग्य शिक्षकों की आपूर्ति में पर्याप्त वृद्धि करनी चाहिए। हालाँकि, वर्तमान माँग-आपूर्ति के अन्तर को भरना सम्भव नहीं है, लेकिन यह सम्भव है कि शिक्षकों को अधिक कुशल बनाया जाए।
क्या कर सकता है एआई?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट (प्रारूप) के अनुरूप, जिसने मातृभाषा के सीखने को प्रोत्साहित किया है, उसमें इस बात पर ध्यान दिया जाएगा कि वीडियो-ऑडियो और लिखे हुए की अनुवाद प्रणालियों द्वारा निर्धारित समय में क्षेत्रीय भाषा में सूचनाओं को मूल रूप से प्रसारित करने के लिए किया जा सकता है? भाषा अनुवाद की इन प्रणालियों को एमएचआरडी की स्थापित डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर दीक्षा (डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग) या ई-पाठशाला (सर्व शिक्षा अभियान के तहत पहल) के साथ मिलाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि ई-पाठशाला पर एक पाठ्यपुस्तक केवल हिन्दी में उपलब्ध है, तो अनुवाद प्रणालियाँ इसे अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के साथ-साथ इसे और अधिक आसान बना सकती हैं। इन अनुवाद प्रणालियों के ज़रिये भाषा की बाध्यता को हटाया जा सकता है और राज्यों में शिक्षकों की क्षमता बढ़ायी जा सकती है, जो पहले की तुलना में माँग को पूरा करने में मदद करती है।
बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण
शिक्षक के उपस्थिति और अन्य प्रशासनिक कार्यों को एआई अपना सकता है। उदाहरण के लिए, छात्रों के लिए बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण को यूडीआईएई प्लस (एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली शिक्षा के लिए) एक एप्लिकेशन, जो स्कूल शिक्षा पर सबसे बड़े प्रबन्धन सूचना प्रणाली में से एक है; के साथ एकीकृत किया जा सकता है। बायोमेट्रिक उपस्थिति रिकॉर्ड का उपयोग ज़िले, राज्य और ब्लॉक में शिक्षा की विशिष्टता के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में किया जा सकता है और इसे आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। लिहाज़ा इससे युवाओं और वयस्कों की भागीदारी दर के अनुपात में पुरुषों-महिलाओं की उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के अनुपात में दािखला लेने जैसे राष्ट्रीय संकेतकों में मदद मिलेगी। यह स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी में मदद कर सकता है।
चैटबोट और ग्रेडिंग
भारत जैसे विविध भाषा और संस्कृति वाले देश में डिजिटल बुनियादी ढाँचे में चैटबोट का एकीकरण या आईवीआरएस प्रणाली शिक्षा डोमेन के माध्यम से उपलब्धता परिवर्तनकारी हो सकती है। उन्हें विषयवस्तु के आधार पर प्रशिक्षित किया जा सकता है और विद्याॢथयों की शंकाओं का बेहतर तरीके से तुरन्त उत्तर दिया जा सकता है, जिससे शिक्षकों का वर्तमान कार्यभार कम हो जाएगा। ऐसे में वे रचनात्मक कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। मोबाइल का प्रवेश यहाँ बाधा नहीं होगा, क्योंकि इसे ग्रामीण भारत द्वारा संचालित किया जा रहा है। साल 2019 के अन्त तक ग्रामीण भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 29 करोड़ तक पहुँच चुकी थी।
चूँकि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने ऑनलाइन सीखने की प्राथमिकता को अपना एजेंडा बनाया है। ऐसे में प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, जैसे मशीन से पठन-पाठन के तरीकों का इस्तेमाल, दीक्षा, ई-पाठशाला और स्वयं (स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव लॄनग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स) के वस्तुनिष्ठ प्रश्न ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर व्यक्तिपरक स्वचालित ग्रेडिंग के आकलन के लिए भी किया जा सकता है। सामग्री का स्वचालित निर्माण एक अन्य क्षेत्र है, जहाँ एआई हस्तक्षेप कर सकता है। इंटरनेट पर जानकारी के बड़े स्रोतों को देखते हुए, एनएलपी तकनीक दिलचस्प सामग्री बनाने और उन्हें इन ई-लॄनग वेबसाइटों पर प्रकाशित करने के लिए स्वचालित पाठ संक्षेप का उपयोग करने में सक्षम होगी। एमएल-आधारित विधियों का बनाया गया मानक एकीकृत पाठ्यक्रम राष्ट्रीय रूप से परिभाषित करने, चीज़ों को सीखने के अनुरूप होगा। हाल ही में एमएचआरडी ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को ग्रेड देने के लिए प्रदर्शन ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) नामक एक 70 संकेतक-आधारित मैट्रिक्स को डिजाइन किया है। यह कम-से-कम न्यूनतम दक्षता स्तर प्राप्त करने वाले छात्रों की प्रतिशतता पर संकेतक का मूल्यांकन करेगा।
व्यक्तिगत ई-लॄनग
जब इस तरह की सामग्री इन ई-लॄनग प्लेटफॉर्मों पर होती है, तो बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत प्रतिक्रिया और सिफारिशें सम्भव हो सकती हैं। वर्तमान में हर छात्र को व्यक्तिगत ध्यान देना सम्भव नहीं है। हालाँकि, जब सामग्री एआई से बनायी और वर्गीकृत की जाती है, तो यह छात्रों के लिए मुख्य बिन्दुओं की पहचान करके और उसके अनुरूप सिफारिशें प्रदान करके उनके सीखने के लिए व्यक्तिगत मार्ग सुनिश्चित करेगा। एआई का संचालित शैक्षिक बुनियादी ढाँचा भारत के प्रत्येक छात्र को अनिवार्य रूप से एक व्यक्तिगत ट्यूटर प्रदान करेगा।
एक ऐसे युग में, जहाँ तकनीक दुनिया को सिकोड़ रही है, यह स्मार्ट सामग्री के रूप में बड़ी आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अधिक सुलभ बना रही है। एआई के उन्नत अनुप्रयोगों के साथ शिक्षक देश के विभिन्न हिस्सों में विद्याॄथयों की स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार सामग्री प्रदान कर रहे हैं। वे अक्सर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, व्याख्यान आदि जैसी आभासी सामग्री के माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं। अब पाठ्यपुस्तकों को भी बदल दिया जाएगा, क्योंकि एआई सिस्टम अब विशिष्ट विषयों और विषयों के लिए डिजिटल पाठ्यपुस्तक बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह सभी शैक्षणिक ग्रेड और उम्र के छात्रों को संलग्न करने में मदद कर रहा है।
कम हुआ ड्रॉप-आउट
जब एआई सिस्टम व्यक्तिगत प्रतिक्रिया प्रदान करता है, तो हम अखिल भारतीय ड्रॉप-आउट दरों पर अंकुश लगा सकते हैं, जो प्राथमिक स्तर पर 4 फीसदी है। लेकिन उच्च शिक्षा में 20 फीसदी तक बढ़ जाती हैं। चूँकि, ये व्यक्तिगत ट्यूटर्स बच्चों की शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक बिन्दु पर डाटा बिन्दु एकत्र करना जारी रखते हैं, इसलिए वर्गीकरण एमएल मॉडल का उपयोग बच्चों के स्कूल छोडऩे के जोखिम के बारे में भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है और इसे रोकने के लिए उचित निवारण तंत्र तैयार किया जा सकता है। इन गतिविधियों की परिणति एक उच्च शिक्षा नामांकन अनुपात में मदद करेगी और सुनिश्चित करेगी कि एसडीजी के तहत लक्ष्यों के अनुरूप वयस्कों का पर्याप्त अनुपात साक्षरता हासिल करे।
समग्रता के लिए एआई
शिक्षा में लैंगिक असमानता को दूर करने और विकलांग व्यक्तियों को शामिल किये जाने के लक्ष्य को एआई के उपयोग के साथ सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है। एपल के सिरी और अमेजॅन के एलेक्सा समाज के शहरी वर्गों और दृष्टिहीन उपयोगकर्ताओं को ही अधिक सहभागी नहीं बना रहे हैं, बल्कि इनका रीयल टाइम टेक्स्ट टू स्पीच मूक लोगों को भी सक्रिय जानकारी के आदान-प्रदान की इजाज़त दे रहा है।
खास ज़रूरत वाले विद्याॄथयों को समावेशी शिक्षा के लिए एमएचआरडी के समग्र शिक्षा कार्यक्रम के तहत वाणी विकार, कम्पन रोग या अन्य किसी रोग, जिसके परिणामस्वरूप वाणी विकार हो सकता है; से प्रभावित बच्चे ई-लॄनग वेबसाइटों की मदद ले सकेंगे। ये वेबसाइट्स भाषण पैटर्न का पता लगाती हैं। गलत भाषणों या टूटे हुए शब्दों को सही करके भाषण को बढ़ाती हैं और फिर ऑडियो या टेक्स्ट फॉर्मेट में इसे आउटपुट करती हैं। इसके एकीकरण से ऐसे विद्यार्थी लाभ उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, आज की प्रणाली में कुछ शैक्षिक संस्थानों में एक से अधिक छात्रों का चयन करने में मदद मिलेगी। या कुछ स्वदेशी समूहों के लिए समान अवसरों को बाधित करने वाली नीतियों, जैसे- जानबूझकर किये या अन्यथा निहितार्थ किये गये कार्यों का पता लगाना सम्भव हो सकता है।
डिजिटल और एआई लॄनग अल्गोरिदम्स (गणितीय समस्याएँ हल करने के लिए कुछ निर्धारित नियम या प्रतीकगणित) को सहायता और नामांकन की निगरानी के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस तरह के पूर्वाग्रह से छुटकारा पाने के लिए स्पष्ट रूप से प्रोग्राम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, नौकरियों के लिए चयन मानदंड आदि की एआई प्रणालियों द्वारा एक स्क्रीनिंग को शामिल कर सकते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह प्रक्रिया एक ऐसी प्रणाली है, जो समावेशी शिक्षा की अग्रदूत बन जाएगी। मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को बौद्धिक और भावनात्मक बुद्धिमत्ता में वायर्ड या प्रशिक्षित किया जा सकता है। सीखने के विज्ञान के आधार पर कहा जा सकता है कि यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का दृष्टिकोण और नवीन प्रौद्योगिकी को सक्षम बनाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों की शक्ति का उपयोग करता है। यूनेस्को के महात्मा गाँधी शिक्षा, शान्ति और सतत विकास शिक्षा संस्थान (एमजीआईईपी) के निदेशक डॉ. अनंता दुरैयप्पा कहते हैं कि शिक्षा प्रणाली के लिए यह अनिवार्य है कि मौज़ूदा व्यवस्था पद्धतियों को सुदृढ़ करने के लिए एआई को लागू करने से आगे जाना चाहिए। हमें परिवर्तनकारी शैक्षणिक दृष्टिकोणों का पता लगाना चाहिए, जो शिक्षार्थियों के संज्ञानात्मक और भावनात्मक बुद्धिमत्ता के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी को लागू करते हैं।
क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस?
वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक सॉफ्टवेयर इंजन है, जो चौथी औद्योगिक क्रान्ति को संचालित करता है। इसका असर पहले से ही घरों, व्यवसायों और राजनीतिक प्रक्रियाओं में देखा जा सकता है। रोबोट के अपने मूर्त रूप में यह जल्द ही कारों को चलायेगा। गोदामों को स्टॉक करेगा और युवा और बुजुर्गों की देखभाल करेगा। यह समाज के सामने आने वाले कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल करने का भरोसा दिलाता है। लेकिन यह ब्लैक बॉक्स एल्गोरिदम, डाटा के अनैतिक उपयोग और सम्भावित नौकरी विस्थापन जैसी चुनौतियों को भी प्रस्तुत करता है।
मशीन लॄनग (एमएल) में तेज़ी से आगे बढऩे से दैनिक जीवन के सभी पहलुओं में एआई का बढ़ता दायरा और जैसा कि तकनीक खुद सीख सकती है और अपने आप बदल सकती है। इसमें जवाबदेही, पारदर्शिता, विश्वास पैदा करने के लिए निष्पक्षता और गोपनीयता का अनुकूलन करने के लिए बहु-हितधारक सहयोग की आवश्यकता होती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक संज्ञानात्मक विज्ञान है और इसके विकास का इतिहास बताता है कि यह विज्ञान, गणित, दर्शन, समाजशास्त्र, कम्प्यूटिंग और अन्य जैसे विषयों से प्राप्त ज्ञान से विकसित हुआ है। इसलिए, किसी भी शिक्षा प्रणाली के लिए यह उचित है कि वह एआई रेडीनेस को एकीकृत करने के महत्त्व को पहचानें, ताकि अन्य विषयों में सीखने को अधिकतम किया जा सके। एआई को व्यापक रूप से ऐसी शक्ति के रूप में पहचाना जा रहा है, जो भविष्य की वैश्विक डिजिटल अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देगा और इसने भू-रणनीतिक महत्त्व प्राप्त किया है। बड़ी संख्या में देश एआई और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों के संचालित पर्यावरण में अपने युवाओं को कार्य करने को तैयार करने के लिए अपनी नीतिगत पहल के साथ आगे रहने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। भारत की अपनी एआई रणनीति समावेशी आर्थिक विकास और सामाजिक विकास के लिए एआई को एक अवसर और समाधान प्रदाता के रूप में पहचानती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मशीनों को सोचने, विचार करने, सीखने, समस्या को हल करने और निर्णय लेने जैसे संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता को सन्दर्भित करता है। यह उन तरीकों से प्रेरित है जो लोग अपने दिमाग का उपयोग करने, सीखने, तर्क करने और कार्रवाई का निर्णय लेने के लिए करते हैं। प्रारम्भ में एक ऐसी तकनीक के रूप में कल्पना की गयी थी, जो मानव बुद्धि की नकल कर सकती थी। एआई उन तरीकों से विकसित हुई है जो अब तक अपनी मूल अवधारणा से अधिक हैं। डाटा संग्रह, प्रसंस्करण और गणना शक्ति में किये गये अविश्वसनीय अग्रिमों के साथ, बुद्धिमान सिस्टम अब विभिन्न कार्यों को सँभालने, कनेक्टिविटी को सक्षम करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए तैनात किया जा सकता है।