आखिरकार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और सरकार ने यह मान लिया है कि आपसी तनातनी से किसी का कोई भला होने वाला नहीं। आरबीआई बोर्ड की 21 नवंबर को हुई महत्वपूर्ण बैठक को हम सरकार और आरबीआई के बीच युद्धविराम या अस्थाई शांति ही कह सकते हैं। दोनों ही पक्ष किसी बीच के रास्ते पर सहमत हो गए लगते हैं। इससे उन्हें अडिय़लपन छोडऩे का समय मिल गया है।
यह कहना कठिन होगा कि इनमें से कौन जीता क्योंकि दोनों ही पक्ष अपने-अपने हितों के हिसाब से एक-एक कदम पीछे हटे हैं। यह बैठक शांतिपूर्ण तरीके से हो गई और नौ घंटे तक चली बैठक के बाद आरबीआई ने एक संक्षिप्त सा बयान जारी भी किया।
कुछ भी हो लेकिन यह आसानी से कहा जा सकता है कि भविष्य में आरबीआई बोर्ड काफी शक्तिशाली होकर उभरेगा। अब 13 बाहरी निदेशक जिनमें दो सरकारी मनोनीत सदस्य भी हैं, आरबीआई के काम पर ज़्यादा प्रभाव डाल सकेंगे। इस बैठक में बोर्ड ने जो फैसले लिए उनमें आरबीआई और सरकार दोनों की शिकायतें दूर हो गईं। बोर्ड इस बात पर भी सहमत हुआ कि एक समिति 11 सरकारी बैंकों के लिए बने ‘प्रॉम्पट करेक्शन एक्शन’ के दायरे में दी गई राहत की पूरी पड़ताल करे। केंद्र और आरबीआई मिल कर समिति के गठन और जांच का दायरा तय करेें। आरबीआई ने बैंकों के लिए बने बेसल कैपिटल फ्रेमवर्क और माईक्रो, छोटे और मझोले (एमएसएमई) उद्योगों को कजऱ् देने के मामले में भी सहजता का भरोसा दिया है।
एमएसएमई उद्योगों के लिए कजऱ् चाहने वालों को रुपए 25 करोड़ मात्र तक का कजऱ् देने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया। केंद्र की यह बड़ी मांग थी क्योंकि वह एनबीएफसी के दबाव से परेशान थी। निश्चित तौर पर सरकार के पास एक सही मुद्दा था। पर जब लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार का कार्यकाल खत्म होने वाला हो, तब उसे धैर्य रखते हुए फिर से सत्ता में आने का इंतजार करना चाहिए और उसके बाद ही कोई बड़ा फैसला लेना चाहिए। सही बात तो यह है कि सरकार को बिना आरबीआई एक्ट में बदलाव किए या सदन की मंजूरी के बिना जमा राशि पर हाथ नहीं डालना चाहिए। इसी आधार पर बैठक के बाद वित्तमंत्री ने स्पष्ट किया कि देश को अगले छह महीने तक आरबीआई से पैसा लेने की ज़रूरत नहीं है। यह विपक्ष के उस आरोप के जवाब में था कि सरकार 2019 के चुनावों से पूर्व कुछ योजनाओं को लागू करने के लिए आरबीआई के आरक्षित पैसे को इस्तेमाल करने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार बैठक में काफी मुद्दों पर आपसी समझौते से आदान-प्रदान हुआ लेकिन यह पहला अवसर था जब आरबीआई बोर्ड ने खुद को एक दिखावटी सलाहकार मंडल से आगे बढ़ कर अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाया। वास्तव में सरकार ने बहुत साफ तौर पर यह जता दिया कि आरबीआई मामले में विजेता कौन है और कौन हैं मालिक?