देश में यह अच्छी बात है कि समझदार लोग आज सही मतदान का मुद्दा उठा रहे हैं। गांव-गांव और शहरों में लोगों की चिंता है कि देश में आम चुनाव में मतदान तटस्थता से होगा या नहीं। अभी हाल ब्रिटेन में भारतीय ईवीएम को हैक करने का प्रदर्शन हुआ। देश में बसपा की नेता मायावती ने ईवीएम की जगह मतपत्रों को ही आम चुनाव में उपयोग की राय दी। कांगे्रस की और से भी तटस्थ मतदान पर जोर दिया गया। लेकिन चुनाव आयोग टस से मस नहीं हो रहा है। वह देश के चुनावों में ईवीएम प्रयोग की बीस साल की परंपरा की दुहाई दे रहा है। लेकिन ईवीएम पर विचार ज़रूरी है।
मुद्दा ईवीएम से हुए मतदान से तीन राज्यों में विपक्ष की जीत का नहीं है। ईवीएम में तकनीकी छेड़छाड़ की बात दुनिया भर में जानी और मानी जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि 20 साल से देश में ईवीएम का उपयोग होता रहा है। इस दौरान न जाने कितनी सरकारें बनीं और गिरीं। न जाने कितने चुनाव हुए। लेकिन इसे ईवीएम की तटस्थता का मानक नहीं माना जा सकता।
अदालत भी कहती है कि ईवीएम जहां भी प्रयोग में लाए जाए वहां वीवीपीएटी मशाीनों की भी व्यवस्था हो जिससे यह प्रमाणित हो कि उसने मत किसे दिया था। लेकिन जो भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में होती है वह ईवीएम को उचित मानती है। मुख्य चुनाव आयुक्त भी ईवीएम की तटस्थता और आयोग के पास ईवीएम की शिकायत पर उपलब्ध तकनीशियन का विकल्प देते हैं। पर वे खामोश हो जाते हैं जब उनसे कहा जाता है कि क्या हुआ। अदालत के निर्देश का जिममें हर ईवीएम के साथ वीवीपीएटी भी लगाए जाने का निर्देश दिया गया था। जबकि इस पर बात की जानी चाहिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्र सरकार में कई मंत्रालयों में मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने अपने स्तंभ ‘एक्रॉस द आइल’ में लिखा है कि वे ईवीएम के विरोधी नहीं है क्योंकि इससे मतदान में वैध मतों में जो खासा समय लगता था वह बचा। लेकिन बड़े पैमाने पर ईवीएम में जिस तरह की गड़बडिय़ों की शिकायतें मिल रही हैं, उसे देख कर मैं भी हर ईवीएम के साथ वीवीपीटी मशीन का समर्थक हो गया हूं। यह हर विधानसभा के हर निर्वाचन क्षेत्र में होनी ही चाहिए। एक निर्वाचन क्षेत्र में औसतन ढाई-तीन सौ चुनावी क्षेत्र होते ही हैं। इस मशीन की खासियत बताई जाती है कि एक फीसद भी गड़बड़ी नहीं हो पाती। मैंने इसलिए अदालत में यह कहा भी कि हर ईवीएम के साथ वीवीपीटी स्लिप का मिलान होना चाहिए। जो तर्क दिया जा रहा है कि इससे गणना में और देर होगी क्योंकि वीवीपीटी स्लिप की भी गणना करनी होगी। यह बहुत ही कमजोर तर्क है। मध्यप्रदेश की चुनावी गणना में हुई देर देख लीजिए। वहां तो वीवीपीटी का व्यापक इस्तेमाल भी नहीं हुआ।
मैंने जब से जी संपत की बहुत अच्छी टिप्पणी पढ़ी है। उससे मैं थोड़ा सहमत भी हो रहा हूं कि अकेले मतदाता पत्रों से ही वोट की तीन स्तरीय गणना हो पाती है। ईवीएम – वीवीपीटी प्रणाली की गणना भी सौ फीसद सही नहीं कही जा सकती। जर्मन संवैधानिक अदालत के एक फैसले से भी यह बात साफ होती है । लेखक और जर्मन अदालत के निष्कर्षों से हमारी असहमति बेमानी है।
ऐसी हालत में हाल-फिलहाल मैं यह तो नहीं कहंूगा कि ईवीएम का इस्तेमाल न हो लेकिन यह ज़रूर मांग करूंगा कि सभी मतदान केंद्रों पर ईवीएम और वीवीपीटी की गणना का मिलान किया जाए।
आम चुनाव में बैलेट पत्रों का इस्तेमाल किया जाए, न कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का। यह मांग की है बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने। अमेरिका में रहने वाले एक भारतीय साइबर विशेषज्ञ ने 21 जनवरी को यह दावा किया था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम के जरिए धंाधली हुई थी। ईवीएम की भारतीय मशीनों को हैक किया जा सकता है।
चुनाव आयोग से बसपा नेता मायावती ने इस मुद्दे पर ध्यान देने को कहा है क्योंकि इधर इन मशीनों के बारे में जो बातें उजागर हो रही है वह न केवल सनसनीखेज हैं बल्कि भाजपा की कांस्पिरेंसी भी जताती हंै। इन तमाम बातों के केंद्र में भाजपा है लेकिन केंद्र सरकार इस मुद्दे के समाधान के लिए कोई सकारात्मक पहल नहीं करेगी क्योंकि इसका दंभी रवैया रहा है। उन्होंने कहा कि ईवीएम की सत्यता परखने के लिए बसपा ने ही सबसे पहले आवाज़ उठाई थी। अब तो मतदाता भी समझने लगे हैं कि बेहद संगठित तरीके से उसके वोट लूट लिए जाते है।ं
लंदन में स्काइप के जरिए प्रेस कांफे्रंस करके साइबर विशेषज्ञ जिसकी पहचान सैयद शूजा के रूप में हुई है। उसने 21 जनवरी को बताया कि वह भारत से 2014 में ही इसलिए भाग निकला क्योंकि उसकी टीम के कुछ सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। वह 2014 में इतना ज़्यादा डर गया था कि उसको लगा अब उसका नंबर है।
स्काइप पर भी उसके चेहरे पर नकाब था। उसने बताया कि वह अमेरिका में राजनीतिक शरण चाह रहा है। रिलायंस जियो ने कम फ्रीक्वेंसी के सिग्नल पाने में सहयोग दिया जिससे लो फ्रीक्वेंसी सिग्नल के जरिए ईवीएम को ‘हैक’ किया जा सके। अपने दावे को साबित करने का उसने कोई प्रमाण नहीं दिया। हालांकि 2014 में जियो का कामकाज शुरू नहीं हुआ था। इसने सितंबर 2016 में सेवाएं देनी शुरू की थी।
इन आरोपों का खंडन करते हुए केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह प्रेस कांफ्रेंस कांग्रेस ने ही लंदन में कराई थी। उधर मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा, इस ईवीएम की कार्यप्रणाली पर तकनीकी समिति नज़र रख रही हैं। ईवीएम तकनालॉजी के जानकार ‘गिरीश मालवीय’ के अनुसार अमेरिकी टेक एक्सर्ट शुजा ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की इलेक्ट्रानिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल)की टीम में वे भी थे जिन्होंने 2014 चुनाव में इस्तेमाल की गई मशीनों की डिजाइन तैयार की थी। उन्हें यह पता लगाने को भी कहा गया था कि क्या ‘हैक’ संभव है।
एक चुनाव क्षेत्र में हजारों ईवीएम प्रयोग में आती हैं। लेकिन चुनाव नतीजों में मनचाहे बदलाव के लिए सारी ईवीएम को हैक करना ज़रूरी नहीं सिर्फ पांच फीसद को ‘हैक’ कर मनचाहे नतीजे हासिल हो सकते हैं। उन बूथों पर जहां हैकिंग कराने वाला दल कमज़ोर है सिर्फ वहां के मतों को उलट दिया जाए तो मनचाहा नतीजा हासिल हो जाता है।
सैयद शुजा ने ट्रांसमीटर के जरिए ईवीएम हैकिंग की बात कही। यह मामला मध्यप्रदेश के सुरखी विधानसभा का है। हारने वाले प्रत्याशी के चुनावी एजेंट बधेल ने बताया कि एक व्यक्ति ने उससे संपर्क करके कहा कि वह किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान प्रभावित कर सकता है। उसके पास रेडियों जैसा उपकरण था। इसमें ईवीएम कीे फ्रीक्वेंसी सेट करते हुए उसने वोट यहां-वहां करने का दावा किया। हमने उसकी बात को मजाक माना। लेकिन राहतगढ़ में एक पोलिंग बूथ पर उस आदमी का उपकरण एक ईवीएम से जुड़ा मिला तो मुझे संदेह हुआ कि शायद किसी प्रत्याशी के कहने से यह इंस्टाल किया गया हो। लेकिन इस डिवाइस से उस प्रत्याशी के चुनाव में काफी प्रभाव पड़ा। वर्ष 2003 के चुनाव में इस बूथ पर 903 में से 864 कांग्रेस को और भाजपा को 24 मत मिले थे। वर्ष 2008 के चुनाव में 736 वोट में से कांग्रेस को 566 और भाजपा को 103 वोट मिले। लेकिन डिवाइस से हुए लिंक के बाद 2013 के चुनाव में 653 वोट में से कांग्रेस को 341 और भाजपा को 278 वोट मिले। वोटों में आए इस अंतर के आधर पर देश के तत्कालीन चीफ इलेक्टोरेल कमिश्नर से शिकायत की गई। सारे सबूतों के बावजूद कहीं कुछ नहीं हुआ। डिवाइस की जांच भी फिसड्डी रही।
अब सवाल यह है कि जब अदालत का निर्देश हो गया तब भी चुनाव आयोग वीवीपीएटी मशीनें हर ईवीएम के साथ क्यों नहीं लगाता। जबकि वीवीपीएटी की पर्चियों को गिन कर भी वस्तुस्थिति का अनुमान लग सकता है। जब मतदान के दौरान हजारों की संख्या में ईवीएम मशीनें खराब होती हैं तो उन्हें सुधारने का ठेका किसे दिया जाता है? आमतौर पर ये खराबियां कभी मतदान के दौरान जानबूझ कर और फिर जिला मुख्यालयों में होती हैं। अब तो राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि वहां मौजूद होते हैं। लेकिन कई बार ऐसी भी घटनाएं सामने आई जब वहां लैपटॉप के साथ लोगों को अनाधिकृत तौर पर पकड़ा गया। अब कुछ ही घंटों में मतगणना के नतीजों की घोषणा में भी कई खामियों का पता लगता है।
चुनाव आयोग ईवीएम मशीन पर हठधर्मी रुख अपनाए हुए हैं जिससे संदेह होता है । जैसे ईवीएम सप्लाई करे वाली दो कंपनियों और चुनाव आयोग के आंकडों में असमानता क्यों है? आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार कंपनियों ने जितनी मशीनों की आपूर्ति की और चुनाव आयोग को जितनी मशीनें मिली उनमें करीब 19 लाख का अंतर है। ये मशीनें कहां गई? इसका जवाब नहीं है। जवाब इस बात का भी नहीं है कि चुनाव आयोग की ईवीएम की डिजाइन वाली ईवीएम किसी और को क्यों न बेची जाए और राज्य चुनाव आयोगों को भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन बेचने की डिजाइन अलग तैयार करने दी जाए।
गिरीश मालवीय
साभार- मीडिया विजिल