दिल्ली के दंगल में इस बार एकतरफा आम आदमी पार्टी ने बाजी मार ली है। इस तरीके से उसने इस बार जीत की हैट्रिक कर ली है। भाजपा महज आधा दर्जन सीटों पर सिमट गई है। कांग्रेस का पिछली बार की तरह खाता ही नहीं खुला है। अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। शीला दीक्षित के बाद यह पहली बार होगा, जब दिल्ली में कोई नेता लगातार तीसरी बार सीएम पद की शपथ लेगा। भाजपा ने जब 2019 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही चेहरे पर लड़ा और उसे 303 सीटें मिलीं तो आम आदमी पार्टी ने इसी से सबक लिया। तब दिल्ली में भाजपा ने सातों लोकसभा की सीटें दर्ज की थीं। उसका मत प्रतिशत भी सभी सीटों पर 50 फीसदी से अधिक था।
मोदी की तरह आप ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह प्रचारित किया कि केजरीवाल के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। इसे टीना यानी देयर इज़ नो अल्टरनेटिव फैक्टर कहकर प्रचारित किया। अब आप से उम्मीदें बढ़ने के साथ ही लोग उसे आगे देश में फिर से आगे बढ़ाने का दावा करने लगे हैं।
भाजपा ने राष्ट्रवाद का मुद्दा बनाया। आप ने दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल का चेहरा आगे रखते हुए काम पर फोकस रखा। कांग्रेस तो शुरू से ही दौड़ में नहीं थी, उसने कोशिश भी नहीं की। भाजपा ने अपने दिग्गजों को उतारा। यहां तक कि कई मुख्यमंत्रियों को भी बुलवाकर प्रचार करवाया। भड़काऊ बयान भी दिए गए, पर सब उलट साबित हुए। उसे भले ही पिछली दफा की तुलना में मत प्रतिशत अधिक मिला हो, पर सीटों में खास परिवर्तन नहीं देखने को मिला। आप का कमाल हर जगह कायम दिखा। उसने महज आधा दर्जन सीटों को छोड़ दें तो एकतरफा कब्जा कर लिया। 2015 में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थीं। तब केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बहुत मुखर थे। इस बार संयमित रहे। क्योंकि इससे पहले लोकसभा और नगर निगम के चुनाव में परिणाम उसके पक्ष में नहीं आया था।