आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 62 सीटें पाकर जीत का परचम लहरा दिया। आप के प्रदर्शन ने इसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के सपनों को चकनाचूर कर दिया। भाजपा सिर्फ 8 ही सीटें जीत सकी, जबकि कांग्रेस पिछली बार की तरह शून्य पर अटक गयी। देश में यह सबसे अधिक विवादास्पद चुनाव रहा और विभाजनकारी राजनीति और घृणा फैलाने वाले बयानों और प्रचार ने दिल्ली की सत्ता पाने की जंग को एक विषैले माहौल में बदल दिया। यह बहुत कड़ुवे अनुभवों वाला चुनाव अभियान था। आम आदमी पार्टी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित अभियान चलाया और सरकारी स्कूलों, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार और रियायती दरों पर बिजली-पानी देने की बात कही।
इस चुनाव में आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संयमित प्रचार किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने से परहेज़ किया। उन्होंने राष्ट्रीय मुद्दों को भी बहस के बीच नहीं आने दिया और केवल अपनी सरकार के विकास पर ही अभियान केंद्रित रखा, जिससे वे भाजपा की रणनीति के फंदे में नहीं फँसे। केजरीवाल ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में सामने रखा, जो भाजपा के किसी भी नेता की तरह हिन्दू हैं, राष्ट्रवादी हैं और उनके पास सरकार की उपलब्धियों का रिकॉर्ड है। इसके विपरीत भाजपा के पास कोई स्थानीय चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में नहीं था। भाजपा ने अपने अभियान के ज़रिये अपने एजेंडे को एक तरह से जनमत संग्रह में बदलने की कोशिश की और इसके लिए शाहीन बाग की बात उठाकर आम आदमी पार्टी और मुस्लिम समर्थन के घालमेल की कोशिश की। इस सारी प्रक्रिया में भाजपा नेता भड़काऊ बयानबाज़ी में भी लगे रहे। दिल्ली एक अनूठी राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है, जहाँ देश के हर कोने के लोग रहते हैं। चुनाव नतीजों ने न केवल विजेताओं और हारे हुए लोगों के राजनीतिक सामर्थक, बल्कि नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे विवादास्पद मुद्दों के बारे में धारणा को भी निर्धारित किया है। साल 2012 में लोकपाल आंदोलन से उपजी केजरीवाल और उनकी पार्टी की लोकप्रियता पाँच साल के कार्यकाल के बाद भी निर्विवाद रूप से उतनी ही मज़बूत है। स्वाभाविक रूप से, पूरा चुनाव अभियान एके-70 और अच्छे बीते पाँच साल, लगे रहो केजरीवाल जैसे लोकप्रिय नारे के इर्द-गिर्द घूमता रहा। दिल्ली के पानी को पीने के लिए असुरक्षित कहने वाले आलोचकों को करारा जवाब देने के लिए केजरीवाल ने पीतमपुरा में मंच पर एक गिलास जल बोर्ड का पानी पिया। एक टीवी साक्षात्कार के दौरान हनुमान चालीसा का जाप किया और सभी चीज़ें अंतत: उनके पक्ष में गयीं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी शानदार जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी अब निकट भविष्य में होने जा रहे अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में खुद को एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक ताकत बनाने की योजना बना रही है। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस ने जिस राज्य में 15 साल शासन किया, वहाँ उसने अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ी; लेकिन खाली हाथ रही। इसी तरह दिल्ली में सत्ता से बाहर रहने के 21 साल बाद वापसी की उम्मीद कर रही भाजपा का सपना टूट गया और आप ने फिर सत्ता पा ली। केजरीवाल ने हैट्रिक बनायी है। हालाँकि इससे उनके प्रति लोगों की उम्मीदें भी उतनी ही ऊँची हो गयी हैं। आप को अब दो प्रमुख मुद्दों से जूझना है- शासन से और अपने घोषणा-पत्र के वादों से।