इस बार जब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की तीसरी जीत हुई, तो अपार हर्ष के साथ अपने मुख्यमंत्री के स्वागत में खड़ी जनता पहले से ही बेसब्र खड़ी थी। चुनाव में जब केजरीवाल जनता के बीच आये, तो उन्होंने कहा- ‘दिल्ली वालो गज़ब कर दिया, आई लव यू’। वास्तव में यह गज़ब ही था। क्योंकि इतिहास में सीटों के फीसद के हिसाब से आज तक किसी की इतनी बड़ी जीत नहीं हुई है। वह भी तब, जब एक व्यक्ति के पीछे एक पूरी-की-पूरी सियासी पलटन लगी हुई थी; एक पूरी-की-पूरी लॉबी लगी हुई थी। अकेले केजरीवाल के पीछे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री, 200 सांसद, दर्जनों केंद्रीय मंत्री और कार्यकर्ता, सभी लगे हुए थे। यहाँ तक कि गृह मंत्री ने गली-गली में पर्चे बाँटे। प्रधानमंत्री ने एक प्रचारक की भाषा का इस्तेमाल किया। केंद्रीय मंत्री और एक सांसद ने केजरीवाल को आतंकवादी तक कहा। शाहीन बाग का मुद्दा पूरे चुनाव में सबसे ऊपर रखा। दिल्लीवासियों को मुफ्तखोर कहा। भाजपा सांसद गिरिराज सिंह पर तो पैसे बाँटने का भी आरोप लगा। और यही सब भाजपा के लिए घातक होता गया। हालाँकि चुनाव से पहले ही भाजपा को हार दिख रही थी, क्योंकि दिल्ली में जितने भी सर्वे हुए, सब केजरीवाल की जीत की ओर इशारा कर रहे थे। शायद यही बौखलाहट भाजपा नेताओं को अनर्गल बोलने को मजबूर कर गयी और नतीजा बुरी तरह हार के रूप में सामने आया। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने अपना चुनाव प्रचार केवल और केवल काम पर केंद्रित रखा और किसी भी भाजपा नेता के िखलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। न तो केजरीवाल शाहीन बाग गये और न ही उन्होंने अपने ऊपर उसकी ज़िम्मेदारी ली, जो कि थी भी नहीं। उन्होंने अपनी जीत-हार का सेहरा बड़ी चतुराई से जनता के सिर पर बाँधा। जनता को जनार्दन कहकर साफ कहा कि जनता उन्हें जो भी निर्णय देगी, वे उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। और इसी सादगी के चलते उन्हें तीसरी बार 88.57 फीसदी सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से जीत दिलायी। इससे पहले 2015 में 95.21 फीसदी सीटों के साथ केजरीवाल ने जीत हासिल की थी। अगर सीटों की प्रतिशतता के हिसाब से देखें, तो अरविंद केजरीवाल की ये दोनों जीतें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरेंद्र मोदी और छत्रपों में जाएँ तो लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती तक को नसीब नहीं हुई। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे बड़े राजनेता की तरह ही केजरीवाल भी अपने नाम पर दिल्ली के तीनों चुनाव जीते हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की इस जीत का मतलब यह है कि जनता विकास चाहती है। जनता ईमानदार राजनेता का चुनाव करना चाहती है। आपको याद होगा कि जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुए थे, तो जनता ने नरेंद्र मोदी की ईमानदार छवि को लेकर उन्हें अपना प्रधानमंत्री चुना था। इस बार दिल्ली में भी जनता ने अगर केजरीवाल को मुख्यमंत्री चुना है, तो उनकी ईमानदार छवि और काम की राजनीति के लिए चुना है। जनता ने यह साफ संदेश दे दिया है कि उसे अब मुद्दों का समाधान, देश की तरक्की, काम-धन्धा और विकास चाहिए। वह अनर्गल तरीके की राजनीति अब पसन्द नहीं करेगी। जनता ने यह तय कर दिया कि जो व्यक्ति भारत को तोडऩे की लकीर खड़ा है, उसे पीछे हटना होगा। हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अब और नहीं चलने वाला। वादािखलाफी अब और नहीं चलने वाली। सीएए, एनआरसी के नाम पर दमन की राजनीति अब नहीं चलने वाली। सिर्फ चुनावी घोषणा-पत्र के वादे अब नहीं चलने वाले, काम करके दिखाइए। अब चुनाव के दौरान किसी भी तरह की चाटुकारिता नहीं चलने वाली।
आज जब देश की जनता को केवल सवाल करने पर, सरकार की किसी नीति का विरोध करने पर देशद्रोही करार दिया जाता है। कहीं लोगों को कोई एजेंसी डराती है, कहीं पुलिस डंडे मारती है। कहीं भीड़ हमला कर देती है। ऐसी स्थिति देश में अब और नहीं चाहिए। यही वजह रही कि दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मैदान में उतरी भाजपा को मुँह की खानी पड़ी। यहाँ भाजपा नेताओं को केजरीवाल से सीखने की ज़रूरत है कि जनता स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और सबका सम्मान चाहती है। भाजपा नेताओं को समझना होगा कि राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने भर से देश महान् नहीं होने वाला, इसके लिए ज़मीनी स्तर पर काम करना होगा। जीडीपी दर ठीक करने के लिए नोटों पर लक्ष्मी मैया का फोटो छापने की सलाह से कुछ नहीं होगा, बल्कि उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। डॉलर के मुकाबले कमज़ोर होते रुपये को मज़बूत करने के लिए लोगों को आॢथक तौर पर मज़बूती देनी होगी।