हाई ब्लड प्रेशर और तम्बाकू से भी ख़तरनाक है ग़लत खानपान
चाय के साथ बिस्कुट, नाश्ते में पराँठा, मक्खन और दूध, लन्च (दोपहर के भोजन) में रोटी-सब्जी, नाश्ते और लन्च के बीच में डिब्बाबन्द फ्रूट जूस और कोल्ड ड्रिंक्स इत्यादि। शाम की चाय में फिर तले-भुने स्नैक्स या फिर शाम को बाहर का जंक फूड, टिक्की-चाट, गोलगप्पे और रात को भारी-भरकम भोजन। आजकल एक आम भारतीय की जीवन-शैली में ऐसा ही प्रतिदिन का आहार शामिल है। ख़ासकर बच्चों की पसन्द जंक फूड, तो बड़ों का भारी-भरकम भोजन बन चुका है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किये गये सर्वेक्षण, शोध और अध्ययनों से पता चलता है कि देश में पौष्टिक आहार की कमी और भुखमरी के आँकड़े डराने वाले हैं। भारत की अर्थ-व्यवस्था जहाँ तेज़ी से आगे बढ़ रही है, वहीं खाद्य पदार्थों की आसमान छूती क़ीमतों से एक आम नागरिक की थाली में से पौष्टिक आहार कम हो रहे हैं।
वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2021 के अनुसार, भारत उन 88 देशों में है, जो साल 2025 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों को पूरा करता नज़र नहीं आता। सन् 2010 के बाद ग़लत आहार के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 15 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर उच्च रक्तचाप और तम्बाकू से होने वाली मौतों से भी अधिक लोग ग़लत आहार की वजह से मरते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवोल्यूशन इंस्टीट्यूशन के डॉक्टर अशकान अफ़शीन का कहना है कि स्वास्थ्यवर्धक भोजन की कम मात्रा जैसे साबुत अनाज और स्वास्थ्य के लिए अहितकर जैसे मीठे पेय पदार्थ वैश्विक स्तर पर पाँच में से एक मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 के अनुसार, भारत में लोगों की सेहत और पोषण के स्टेटस को लेकर कोई ख़ास सुधार नहीं है। विकिपीडिया के अनुसार, जीडीपी में 50 फ़ीसदी की बढ़ोतरी (2013) के बावजूद एक-तिहाई से ज़्यादा कुपोषित बच्चे भारत में हैं। एसएफएओ की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग 194.4 मिलियन लोग कुपोषित हैं। वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2019 की रैंकिंग में भारत 117 देशों में से 102 में स्थान पर, जबकि वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 116 देशों की सूची में 101 में पायदान पर है। भुखमरी की तीव्रता स 27.9 फ़ीसदी है। कुपोषण के कारणों में अपर्याप्त भोजन, पौष्टिक तत्त्वों की कमी, आर्थिक कारण, धार्मिक कारण, जानकारी का अभाव और दोषपूर्ण पाचन है। वहीं इसके लक्षण झटपट भोजन करना, खेलने में अरुचि होना। अपच और क़ब्ज़ रहना, बच्चों में लम्बाई न बढऩा, वज़न कम होना, ख़ून न बनना आदि हैं।
पीजीआई चंडीगढ़ के डायटेटिक्स डिपार्टमेंट द्वारा सन्तुलित आहार की जागरूकता के लिए राष्ट्रीय पोषण माह के दौरान चंडीगढ़ के सेक्टर-10 के सरकारी स्कूल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शीर्षक था- ‘पोषण भी, पढ़ाई भी।’ इसके तहत बच्चों को आहार के सभी पोषक तत्त्वों के बारे में बताया गया। हेल्दी टिफिन रेसिपी में न्यूट्री बाइट, सोया रैप, मल्टीग्रेन बनाना पैन केक, वेजिटेबल बाजरा उत्तपम, स्प्राउटेड कटलेट, मल्टीग्रेन वेजिटेबल सैंडविच बनाना सिखाया गया। विशेषज्ञों का कहना था कि पोषण शारीरिक विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। विभाग की अध्यक्ष डॉ. नैंसी साहनी ने कहा कि लोगों को पता ही नहीं है कि आजकल वे क्या खा रहे हैं? जो प्लेट में रखा गया है, उसका स्रोत क्या है? कहाँ और कैसे बनाया गया है? ख़ासकर जॅमैटो, स्विग्गी के प्रति आज की पीढ़ी बिल्कुल भी जागरूक नहीं है कि ये हमारे मुँह में डाल क्या रहे हैं? जीवन शैली की ऐसी समस्याएँ, जो पहले प्रौढ़ावस्था में शुरू होती थीं, वो अब बचपन में हो रही हैं। यही वजह है कि आजकल युवा उम्र में ही हृदयाघात (हार्ट अटैक) के मामले बढ़ रहे हैं।
डॉ. नैंसी ने बताया कि पीजीआई में ज़्यादातर ऐसे रोगी आते हैं, जिनका खानपान ग़लत होता है। जैसे हृदय और मधुमेह (शुगर) के रोगी। या फिर उनका खानपान सन्तुलित व सही नहीं होता है। मेडिकल थेरेपी तब तक पूरी नहीं हो पाती, जब तक डाइट सही न हो। डाइट के प्रति सेंसिटाइज होने की सबको ज़रूरत है। जो लोग बाहर से तंदुरुस्त लगते हैं, देखने में आता है कि वे असल में तंदुरुस्त नहीं होते। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि हमारी प्लेट में क्या है? उसका आधार (बेस) क्या है? कहाँ से आया है? कैसे बनाया गया है? क्या वो शुद्ध दालों, शुद्ध फलों, शुद्ब ताज़ा सब्ज़ियों, शुद्ध प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स आदि से तैयार है? बेशक हमारे देश में शाकाहारी लोग ज़्यादा हैं; लेकिन फिर भी उनमें मोटापा अधिक क्यों है? क्योंकि उनका ज़्यादा स्रोत कार्बोहाइड्रेट होता है। प्रोटीन स्रोत बहुत कम। हमारे नाश्ते में, लन्च में और डिनर में रोटी-सब्ज़ी है; लेकिन प्रोटीन कहाँ है? स्नेक्स जो हम खा रहे हैं, उनमें वसा (फैट) कितना है?
हमारा खानपान कैसे, किस समय क्या और किस तरह खाना चाहिए? यह सब पता होना चाहिए। अगर हम अपनी सुबह में चाय और बिस्कुट ले रहे हैं, तो ग़लत है। अगर चाय के नट्स ले रहे हैं, तो ठीक है। प्रोटीन की बात करें, तो 0.821 ग्राम, एक किलोग्राम के लिए। जितना शरीर का वज़न हो, उसी हिसाब से। अगर 50 किलो है, तो प्रोटीन की मात्रा 50 या 60 ग्राम होनी चाहिए। अगर नॉर्मल व्यक्ति है, तो वसा 25 से 30 ग्राम यानी पाँच-छ: चम्मच तेल या घी लिया जा सकता है। नाश्ते में अनाज, दूध, दही, सुबह में फल, दोहपहर के भोजन में फाइबर वाले खाद्य, जैसे- सलाद और कंपलेक्स कार्बोहाइड्रेट लेना ज़रूरी है। अगर सुबह नाश्ते में अकेले कॉर्नफ्लेक (भुने हुए मकई के दाने) खा लिये, तो उतना काफ़ी नहीं। वह सिर्फ़ कार्बोहाइड्रेट हो जाएगा। कंपलेक्स कार्बोहाइड्रेट, जैसे- चिल्ला, आटा, बाजरा, दलिया आदि ले सकते हैं।
जंक फूड, पैक्ड फूड, डिब्बाबंद जूस और कोल्ड ड्रिंक्स आदि स्वस्थ भोजन में नहीं गिने जाते। आज की तेज़ रफ़्तार जीवन शैली में शुद्ध और स्वादिष्ट परम्परागत भोजन को छोडक़र लोग फास्ट फूड के आदी हो चुके हैं, जिससे वे कई बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। आजकल लोगों में क़ब्ज़, मोटापा, थकान, तनाव, हृदय रोग, मधुमेह, ऑस्टियोपोरोसिस, फैटी लीवर, एनीमिया, कमज़ोरी, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने जैसी बीमारियाँ आम हो चुकी हैं।
आयुर्वेद में भोजन के नियम
भोजन की हमारे शरीर और मन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भोजन का हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए लोक भाषा में कहा जाता है कि जैसा अन्न वैसा मन। प्राचीन योगी आहार का महत्त्व भली-भाँति समझते थे। उन्होंने अनुभव किया था कि भोजन की आदतें शरीर और मन को सन्तुलित बना सकती हैं। हर व्यक्ति के लिए आदर्श आहार (आइडियल फूड) में अनाज, दुग्ध उत्पाद, फल, सब्ज़ियाँ, सूखे मेवे, शहद और पोषक जड़ी-बूटियों को शामिल किया जा सकता है, जिनके सेवन से अधिक सहनशक्ति और स्थायित्व प्राप्त होता है। ज़्यादा मसालों का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना गया। ऐसा भोजन जो खट्टा, तला हुआ और भारी हो, योगाभ्यासी के लिए वर्जित माना जाता है। आयुर्वेद में भोजन ग्रहण करने के लिए तीन नियमों का निर्देश दिया गया है- हितभुक् यानी हितकारी भोजन करना। मितभुक् यानी सन्तुलित मात्रा में भोजन करना। ऋतभुक् यानी ऋतु के अनुसार भोजन करना।
इसके अलावा भोजन को ठीक से चबाकर खाना चाहिए। उचित मात्रा में पानी पीना रोग नाशक होता है। शान्ति से किया गया भोजन पौष्टिक और सुपाच्य होता है। योगाभ्यासी के लिए तीन वक़्त का भोजन आवश्यक माना गया है। प्रत्येक भोजन के समय व्यक्ति को पेट भर खाने की सलाह नहीं दी गयी है। आधा पेट भोजन करना चाहिए। एक-चौथाई पानी और एक-चौथाई हवा के लिए ख़ाली छोडऩा चाहिए। प्रत्येक भोजन के बीच अंतराल चार घंटे का होना चाहिए।