जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी ने आधार कार्ड प्रणाली पर सुप्रीम कोर्ट में अपना फैसला सुनाते हुए कहा, कि सर्वश्रेष्ठ होने से बेहतर है निराला होना। देश की सबसे बड़ी अदालत ने आधार की वैधता बरकरार रखी है। साथ ही कुछ रोकथाम भी की है।
एक न्यायिक समीक्षा के आधार पर आधार को मंजूरी तो मिल गई लेकिन यह सलाह दी गई है कि ज़रूरी सुरक्षा प्रबंध किए जाएं जिससे डाटा सुरक्षित रहे। नागरिकों की आधार के ज़रिए निगरानी न होने देने के फैसले का स्वागत होना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र के नेतृत्व में पांच जज की बेंच ने सरकार से चाहा है कि और सुरक्षा प्रबंध किए जाएं साथ ही डाटा संग्रह की अवधि कम की जाए। ‘हमें जानकारी दी गई है कि इसी महीने के अंत में मंत्रिमंडल की एक बैठक में इससे संबंधित प्रस्ताव भी आने को है।’
आधार के प्रभाव को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि सरकार ने अपने 90 हज़ार करोड़ रु पए बचा लिए जो उन लोगों के नाम से लाभ कमा रहे थे जो सशरीर कहीं मौजूद नहीं थे। आज पूरे देश मेें तकरीबन 122 करोड़ लोगों के पास आधार कार्ड है।
सुशासन का एक औजार है तकनीक। कोई भी इसमें पीछे नहीं रह सकता। लेकिन आज ऐसे भी संशयी लोग हैं जो डिजिटैलाइजेशन या ईवीएम गड़बडिय़ां ही देखते हैं। जबकि डंके की चोट पर यह बताया जाता रहा है कि यदि आपको लाभ लेना है तो आपको अपनी पहचान का प्रमाण देना ही होगा। सब्सीडी के लेन-देन में आधार खासा प्रभावपूर्ण औजार था। अन्यथा गरीब को मिलने वाले लाभ को बिचौलिए और बेईमान लोग पहले ही हड़प लेते थे। लेकिन बाद में आधारकार्ड आम लोगों को परेशान करने का औजार बना दिया गया। यह ताकीद की जाती कि इसे राशनकार्ड से जोड़ो, बैंक खातों से जोड़ो, पैन कार्ड से जोड़ो, मोबाइल फोन से जोड़ो।
यह सब तब हो रहा था जब सरकार न्यूनतम सरकार और अधिकतम सुशासन का दावा कर रही थी। तब एक भय सब कहीं था कि हर चीज में आधार को लिंक ज़रूरी कर देने से यह कहीं इतना व्यापक तो नहीं हो जाएगा कि साइबर अपराधी और वैश्विक दखलंदाजी बढऩे के हालात बन जाएंगे। आखिर, सारी निजी जानकारी मसलन नाम, चित्र, पता, जन्मतिथि, वैवाहिक स्थिति, विवाह का प्रमाणपत्र, स्कूल में बच्चों का प्रवेश, मोबाइल नंबर, निजी ईमेल आदि आधार कार्ड को देकर हर व्यक्ति की निजी जि़ंदगी खतरे में पडऩे का अंदेशा बढ़ रहा था। संविधान में जिन अधिकारों की गारंटी दी गई है वे नए सिरे से व्याख्यायित होने लगी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड प्रणाली को संवैधानिक और न्यायिक तौर पर वैध माना है। साथ ही आधार कानून से अब कई बातें हटा दी हैं। उदाहरण के लिए बैंक में खाता खोलने, मोबाइल फोन कनेक्शन, स्कूलों में बच्चों के एडमिशन आदि के लिए आधार कतई ज़रूरी नहीं होगा। लेकिन अदालत ने आधार को ‘पैन’ से जोडऩे और इन्कम टैक्स रिटर्न में ज़रूरी माना है।
एपेक्स कोर्ट ने सरकार को सलाह दी है कि वे कमोबेश यह बंदोबस्त ज़रूर करें कि देश में अवैध तौर पर आ रहे शरणार्थियों का आधार कार्ड न बने जिससे वे सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ न ले सकें। इस फैसले के बाद निजी कंपनियां अब आधारकार्ड नहीं मांग सकतीं।
लेकिन इन तमाम चीजों के बाद भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि पहले से जो डॉटा कारपोरेट सेक्टर के पास है। उसका क्या होगा?