मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों कहा था कि वे भू-माफ़ियाओं के लिए वज्र से भी ज़्यादा कठोर हैं। भू-माफ़ियाओं को वे ज़मीन में गाड़ देंगे। बीते नवंबर खंडवा ज़िले के पंधाना में आयोजित पेसा जागरूकता सम्मेलन में भी कहा था कि आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) की ज़मीन में गड़बड़ करने वाले और भटकाने वालों को मैं लटका दूँगा और नौकरी खा लूँगा। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ये बातें सिर्फ़ बातें हैं, इसका सच्चाई से कोई वास्ता प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि पूरे मध्य प्रदेश के साथ-साथ ख़ुद शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र में ही आदिवासियों की ज़मीन भूमाफ़ियाओं द्वारा हड़प ली गयी है, जबकि कई आदिवासियों को अपनी ज़मीन पर आज तक क़ब्ज़ा प्राप्त नहीं हो सका है।
शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी के ग्राम पिपलिया में केशव प्रसाद गोंड की छ: एकड़ ज़मीन पर भूमाफ़ियाओं ने विगत 20 वर्षों से क़ब्ज़ा कर लिया है। केशव प्रसाद गोंड शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र बुधनी के ग्राम पिपलिया के निवासी हैं तथा गोंड आदिवासी समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं। केशव प्रसाद गोंड का कहना है कि ‘बुधनी के ग्राम पिपलिया में पटवारी-हलक़ा-नंबर 19 भूमि-खसरा-नंबर 51/2, 52/2, 53, 54, 55/2, 55/4, 55/6 कुल रक़बा छ: एकड़ मेरी कृषि भूमि है। मेरे पिता शंकरलाल, जो भूमि के मूल रैयत हैं, अशिक्षित एवं किसान हैं। उन्हें क़ानूनी दाँव-पेंच की जानकारी नहीं है। इसी बात का $फायदा उठाकर सुदामा शिवहरे नामक भूमाफ़िया ने 20 वर्ष पूर्व मेरी ज़मीन हड़प ली, और उस ज़मीन पर स्कूल खोल दिया। जबकि आदिवासी की ज़मीन ग़ैर-आदिवासी नहीं ख़रीद सकता है, फिर भी सुदामा शिवहरे ने फ़र्ज़ीवाड़ा कर मेरी ज़मीन हड़प ली है। मैं अपनी ज़मीन वापस पाने के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहा हूँ। एसडीएम बुधनी ने मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 170(ख) के तहत सुदामा शिवहरे के विरुद्ध प्रकरण पंजीबद्ध कर मेरी ज़मीन वापस दिलाने का वादा किया है; लेकिन पिछले 14 वर्षों से अभी तक मेरी ज़मीन पर मुझे क़ब्ज़ा नहीं मिला है।’
केशव प्रसाद गोंड कहते हैं कि उन्होंने अपनी ज़मीन वापस पाने के लिए मध्य प्रदेश के आदिवासी विधायक डॉ. हिरालाल अलावा से विधानसभा में प्रश्न भी लगवाया; लेकिन मामला कोर्ट में लंबित बताकर कोई कार्यवाही करने से मना कर दिया गया। बुधनी विधानसभा क्षेत्र के तहसील नसरुल्लागंज के ग्राम बालागाँव, तहसील रेहटी के ग्राम नीनोर और तहसील बुधनी के ग्राम जहानपुर के कई आदिवासियों का कहना है कि उन्हें पट्टे में प्राप्त ज़मीनों पर, जिसका भू-स्वामी हक़ पट्टेधारकों के पास है, आज तक क़ब्ज़ा नहीं मिला है। जबकि पट्टेधारकों द्वारा भूमि पर क़ब्ज़ा दिलाने के लिए बार-बार आवेदन दिया जा रहा है।
रीवा ज़िले के हुजुर तहसील के ग्राम समान के वार्ड 14 की निवासी विमला कोल पत्नी स्व. जगदीश कोल जो कोल आदिवासी समुदाय से हैं; का कहना है कि ‘तहसील-हुजुर अंतर्गत ग्राम-समान में हमारी 15.39 एकड़ भूमि हमारे पूर्वज वंशा कोल एवं लुशुरु कोल पिता दमड़ी कोल के नाम पर पूर्व में दर्ज था; लेकिन कामता प्रसाद शुक्ल पिता नन्दलाल ने अधिकारियों से मिलीभगत कर उक्त ज़मीन से हमारे पूर्वजों का नाम विलोपित कर अपने नाम करवा कर क़ब्ज़ा कर लिया, जिसका पुराना ख़सरा नंबर 146, 149, 160, 161, 162, 58, 902, 170, 175 और नया ख़सरा नंबर 146, 337, 338, 339, 149, 344, 345, 347, 160, 356, 358, 359, 360, 161, 361, 362, 363, 58, 902, 107, 108, 109, 177, 400, 401, 175, 393, 394, 395, 396, 397 है।’
विमला कोल ने बताया कि यह मामला सिविल न्यायालय में एवं राजस्व न्यायालय में अपील प्रकरण क्रमांक 414 अपील/2017-18 विचाराधीन है एवं कमिश्नर महोदय ने आश्वासन दिया है कि मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा-170(ख) के तहत यह ज़मीन मिल जाएगी। किन्तु कामता प्रसाद शुक्ल आये दिन धमकी दे रहे हैं कि उक्त ज़मीन उनके नाम हो गयी है और मेरा घर गिरवा देंगे। जान से मारने की भी धमकी देते हैं।’
विमला कोल का कहना है कि ‘शासन प्रशासन भी भू-माफ़ियाओं के साथ मिला हुआ है। उन्होंने कलेक्टर, कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक रीवा से सुरक्षा माँगी, तो कोई सुरक्षा नहीं मिली। हमेशा हमले का ख़तरा रहता है। विधानसभा में 15 सितंबर, 2022 को राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने उक्त ज़मीन के सम्बन्ध में ज़िला अभिलेखागार और तहसील में पुराने ख़सरा सम्बन्धी कोई डाटा उपलब्ध नहीं होना बताकर पल्ला झाड़ लिया।’
आगर मालवा ज़िले के तहसील नलखेड़ा के ग्राम गोठड़ा निवासी रामसिंह, जो भील आदिवासी समुदाय से हैं; कहते हैं कि ‘उनकी 55 बीघा ज़मीन पर गाँव के ही दबंग मगन लाल पाटीदार द्वारा जबरन क़ब्ज़ा कर अपने पुत्र कुँवर लाल, जानकी लाल, विष्णुलाल को बाँट दी गयी है। कोर्ट द्वारा आदेश दिये जाने के बावजूद भी आज तक उक्त ज़मीन को आरोपियों से क़ब्ज़ा मुक्त नहीं कराया गया है।’
फ़र्ज़ीवाड़े के अन्य मामले
जबलपुर ज़िले के चरगवां के ग्राम डोंगरझांसी में राजनीतिक प्रभाव वाले भू-माफ़ियाओं ने कई आदिवासियों की सैकड़ों एकड़ ज़मीन नक़ली आईडी बनवाकर अपने परिजनों एवं मृत व्यक्तियों के नाम पर करवा लिया है। इस मामले में एडिशनल एसपी ने जाँच के आदेश दिये हैं।
रायसेन ज़िले के ग्राम गुन्दरई नीमढाना में जीवन मुल्ला नामक एक आदिवासी व्यक्ति की मेन रोड पर चार एकड़ ज़मीन को भू-माफ़ियाओं ने जीवन मुल्ला के नाम पर फ़र्ज़ी आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज़ जैसे पैन कार्ड, बैंक पासबुक आदि बनवाकर भोपाल के एक दम्पति को ओने-पौने दामों बेंच दी। एक वायरल वीडियों द्वारा पूरे मामले का ख़ुलासा होने के बाद बीते जनवरी में रायसेन एडीएम कोर्ट ने पटवारी को सस्पेंड करने और फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार कर ज़मीन का फ़र्ज़ीवाड़ा करने मामले में संलिप्त सभी लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिये।
सागर ज़िले के बसा गाँव के निवासी वीरसींग गोंड, जो गोंड आदिवासी समुदाय से हैं, की 40 एकड़ ज़मीन कंप्यूटरीकरण मुहिम के दौरान किसी अन्य के नाम दर्ज हो गयी। ज़िले में ऐसे दर्ज़नों मामले सामने आये हैं जिसमें ज़मीन कंप्यूटरीकरण मुहिम के तहत अनुचित व्यक्तियों को कई आदिवासियों की ज़मीनों का नामांतरण हो गया, जिससे ज़मीन पर क़ब्ज़ा और मालिकाना हक़ असली मालिकों के बजाय अनुचित व्यक्तियों का हो गया है। वीरसींग गोंड समेत कई आदिवासी इस मामले की शिकायत तहसीलदार, कलेक्टर और सीएम हेल्पलाइन में कर चुके हैं; लेकिन अभी तक सुनवाई नहीं हुई।
बालाघाट ज़िले के ग्राम टेमनी निवासी हरे सिंह बैगा दिव्यांग हैं और विशेष संरक्षित बैगा आदिवासी समुदाय से हैं। बैगा आदिवासी समुदाय की ज़मीन के क्रय-विक्रय तथा भूमि अधिग्रहण पर प्रतिबंध है। लेकिन टेमनी में हरेसिंह बैगा के ज़मीन पर पुलिस विभाग जबरन क़ब्ज़ा कर पुलिस चौकी का निर्माण कर लिया है। सीधी ज़िले के तहसील गोपद बनास, ग्राम करवाही निवासी 72 वर्षीय बांकेलाल, जो मारिया आदिवासी समुदाय से हैं, का कहना है कि उन्होंने अपनी पत्नी के बीमार होने पर ग्राम-तहसील मझौली ज़िला सीधी निवासी राहुल सिंह से 50,000 रुपये उधार लिये; लेकिन राहुल सिंह ने कूटरचित कर बांकेलाल को हरिजन बताकर धोखाधड़ी से वर्ष 2012 में ग्राम करवाही में उनके स्वामित्व की भूमि ख़सरा नंबर 1055 रक़बा 0.50 हेक्टेयर ज़मीन को अपने नाम रजिस्ट्री करा ली।
आदिवासी समुदाय सबसे अधिक हाशिये पर ही नहीं, बल्कि अलग-थलग और वंचित आबादी रही है। आदिवासियों को उनकी ज़मीनों से $गलत ढंग से बेदख़ल करने से रोकने एवं उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए मध्य प्रदेश के कई क़ानूनों में स्पेशल प्रावधान किये गये हैं। अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 के तहत अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को उनकी भूमि से $गलत तरी$के से बेदख़ल करना अत्याचार का अपराध घोषित किया गया है। फिर भी मध्य प्रदेश में आदिवासियों को उनकी ज़मीनों अवैध ढंग बेदख़ल करने, फ़र्ज़ी नामांतरण और अवैध क़ब्ज़ा के मामले अनवरत जारी हैं।
ज़मीनों के फ़र्ज़ी नामांतरण, अवैध क़ब्ज़ा जिन मामलों में पीडि़तों ने शिकायत की है, वे मामले भी वर्षों से या तो विचाराधीन हैं या कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। कई मामलों में क़ानूनी दाँव-पेंच की जानकारी नहीं होने और अशिक्षा के कारण आदिवासी समुदाय के व्यक्ति प्रशासन तक अपनी शिकायत पहुँचाने में भी असमर्थ हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के दावे सिर्फ़ हवा-हवाई ही प्रतीत हो रहे हैं।