छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के ग्रामीण बाज़ारों, जिनको हाट-बाज़ारों के नाम से जाना जाता है; ऐसे दूरदराज़ और दुर्गम क्षेत्रों में आयोजित स्वास्थ्य शिविर के ज़रिये ‘स्वास्थ्य सेवा प्रणाली’ नये आयाम गढक़र लोगों को राहत पहुँचा रही है। ब्लड प्रेशर, मलेरिया और शुगर टेस्ट जैसी सुविधाएँ इन शिविरों में प्रदान की जा रही हैं। हर हफ्ते लगने वाले हाट में बड़ी तादाद में लोग जुटते हैं और यहाँ पर बेहद रंगारंग व खुशनुमा माहौल होता है।
राज्य के कोंडागाँव ज़िले में स्थित एनजीओ साथी समाज सेवी संस्था के भूपेश तिवारी ने कहा कि स्वास्थ्य शिविर के ज़रिये स्वास्थ्य और कुपोषण के लिए काम करने को आसानी से पहुँच बनायी जा सकती है।
एक बेहतर पहल
हाट बाज़ार स्वास्थ्य शिविरों के आयोजन के लिए 2011 में रामकृष्ण मिशन के साथ और 2012 में साथी के साथ यूनिसेफ ने भी साझेदारी की। वर्षों से इन शिविरों के माध्यम से कमज़ोर तबके के आदिवासी आबादी तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचायी गयीं, जिससे इनको अपार लोकप्रियता मिली। यह सुविधा बस्तर जैसे इलाके में भी लोकप्रिय हुई, जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। यूनिसेफ के इमरजेंसी ऑफिसर विशाल वासवानी के अनुसार, हाट बाज़ार स्वास्थ्य दिवस अवधारणा हाट बाज़ार टीकाकरण अभियान से सीधी पहुँच होती है; जो पहले ही ऐसे छूटे बच्चों या ज़रूरतमंदों को कवर करने के लिए चल रहा था।
तिवारी ने कहा कि दूरदराज़ के जनजातीय क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच की स्थिति अब भी बहुत बेहतर नहीं है। कई बच्चों को टीकाकरण कवरेज से बाहर रखा जाता है; क्योंकि उनकी माँ उन्हें अपने साथ काम पर ले जाती हैं। साथी के लिए काम करने वाले प्रमोद पोटाई ने कहा कि शुरू में टीकाकरण की दर कम थी, हमें किसी तरह कुल कवरेज (आवृत्त क्षेत्र) सुनिश्चित करना था। ऐसे दुर्गम क्षेत्र में हमें बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और कई बच्चों को छोड़ दिया गया। हमारे रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए हाट बाज़ार टीकाकरण दिवस की अवधारणा की शुरुआत की गयी। इसने चीज़ों को आसान बना दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी अपने बच्चों के साथ खरीदने और बेचने के लिए साप्ताहिक बाज़ारों में जाते हैं, हम यहीं पर छूटे हुए बच्चों का भी आसानी से टीकाकरण कर देते हैं।
भूपेश तिवारी ने बताया कि छूट जाने वाले बच्चों के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए हाट बाज़ार स्वास्थ्य शिविर शुरू किया गया और टीकाकरण कवरेज की पहुँच 92 फीसदी तक की गयी। धीरे-धीरे यूनिसेफ फंडिंग की मदद से इन शिविरों में ओपीडी सेवाएँ भी शुरू की गयीं। अब एक हाट बाज़ार के लिए हमें किट के साथ लगभग 1,500 रुपये मिलते हैं। हम नारायणपुर ज़िले के नारायणपुर ब्लॉक में पाँच स्थानों पर ऐसे शिविर लगाते हैं, जो लगभग 20 गाँवों को कवर
करता है। साथी की काउंसलर निशा निषाद ने बताया कि चूँकि आदिवासी बहुल इलाकों में ओपीडी सेवाएँ मानकों के अनुरूप नहीं है, इसलिए लोग गुणवत्ता जाँच, दवा और उपचार की माँग करते हैं। इसके बाद जब स्वास्थ्य शिविर शुरू हुए, तो उसका अच्छी प्रतिक्रिया और तारीफ मिली। साथी के एक अन्य कार्यकर्ता अजय बैद्य ने बताया कि आमतौर पर ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुँच के लिए बड़े बाज़ारों को चुना जाता है। लोगों को शिविरों में आकर्षित करने के लिए, तमाम सेवाओं की पेशकश के बारे में घोषणाएँ साउंड सिस्टम के ज़रिये हिन्दी के साथ ही स्थानीय बोलियों के माध्यम से की जाती हैं। शुरू में लोग इस ओर भागे चले आते थे क्योंकि यह इलाके में अपनी तरह की नयी पहल थी। लेकिन अब मरीज़ नियमित रूप से दूर-दराज़ के गाँवों से भी खुद आते हैं। शिविर सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक लगाये जाते हैं। प्रत्येक शिविर में मरीज़ों की मदद के लिए स्वयंसेवक, परामर्शदाता और पर्यवेक्षक होते हैं।
यूनिसेफ के साझा किये गये आँकड़ों में कहा गया है कि 2014 से अब तक साथी ने इन हाट बाज़ार स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से 6,907 लाभाॢथयों तक पहुँच बनायी है। रामकृष्ण मिशन और साथी दोनों के साथ साझेदारी के तहत यूनिसेफ ने 2012 से अब तक कुल 39,61,800 रुपये के बजट के साथ 1,433 हाट, बाज़ारों में स्वास्थ्य शिविर आयोजित किये। लाभार्थियों की कुल संख्या 23,259 है; जिसमें मुख्य रूप से महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं। इस बारे में तिवारी ने कहा कि लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने में समय ज़रूर लगता है, लेकिन अब लोग हमारे पास खुद आते हैं।
राज्य सरकार की पहल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार भी यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच कमज़ोर जनजातीय आबादी तक हो सके।
इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री हाट बाज़ार क्लीनिक (औषधालय) योजना की शुरुआत 2 अक्टूबर, 2019 को की गयी। यह एक सरकारी पहल है, जिसका मकसद ऐसे जनजातीय क्षेत्रों को लक्षित करना है, जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच नहीं है। जनसम्पर्क आयुक्त तरन सिन्हा ने कहा कि कई बार आदिवासियों के पास डॉक्टरों की पहुँच के लिए चलने या गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं का विकल्प की कमी होती है।
स्वास्थ्य शिविर की पहल की शुरुआत बस्तर से की गयी और अब यह पूरे राज्य में पहुँच रही है। मार्च 2020 तक लगभग 26,357 हाट, बाज़ार क्लीनिक आयोजित किये गये हैं और 91 लाख से अधिक लोग स्वास्थ्य लाभ से जोड़े गये हैं। इन शिविरों से लगभग 8 लाख रोगियों को लाभ मिला है। छत्तीसगढ़ का लगभग 44 फीसदी भाग वनों से घिरा है और राज्य की 31 फीसदी आबादी आदिवासी है; जिनमें कुपोषण दर सबसे ज़्यादा है। उप-स्वास्थ्य केंद्र एडका (नारायणपुर का एक गाँव) की सहायक नर्स/मिडवाइफ (उपचारिका)नीलमणि दत्ता ने कहा कि आदिवासी बहुल इलाकों में जागरूकता की कमी के कारण कुपोषण एक गम्भीर मुद्दा है। भूपेश तिवारी ने कहा कि इसकी मुख्य वजह लोगों के खानपान में आहार की विविधता का नहीं होना है। अक्सर गर्भवती महिलाएँ कुपोषित और एनीमिक होती हैं, और इस तरह कम वजन वाले शिशुओं को जन्म देती हैं। कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए साथी अपने काम करने वाले क्षेत्रों में किचन गार्डन (शाक वाटिका) की अवधारणा को लोकप्रिय बनाने पर भी काम कर रही है।