महाराष्ट्र में रिश्तों की नई स्क्रिप्ट राजनीति की पुस्तक के लिए तैयार है। दोस्त दुश्मन हो गए हैं और दुश्मन दोस्ती की दहलीज पर खड़े हैं। राजनीति में कुछ स्थाई नहीं। न दोस्ती, न दुश्मनी। और अभी तक जिन आदित्य ठाकरे को शिव सेना अपना मुख्यमंत्री बता रही थी, वह खुद अपने प्रमुख उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी कर रही है। उद्धव ने कुछ उलझन महसूस की तो एकनाथ शिंदे।
नई दोस्ती की यह स्क्रिप्ट कोइ पिछले २४ घंटे में नहीं लिखी गयी। नतीजों के बाद भाजपा के ”अहंकार भरे” रुख से ”खफा” शिव सेना ने कोइ १४ दिन पहले ही तय कर लिया था, वह भाजपा को झटका देगी। संकेत एनसीपी-कांग्रेस दोनों को भेज दिए गए थे। साफ़ जाहिर था, बगैर शिव सेना के भाजपा किसी भी सूरत में सरकार नहीं बना सकती थी।
एनसीपी दिग्गज शरद पवार चुनाव के दौरान भाजपा की अपने प्रति ”कटु वाणी” से सख्त नाराज थे। यहां तक कि पीएम मोदी ने भी कोइ बहुत सम्मानजनक रवैया उनके प्रति नहीं दिखाया था। शायद भाजपा और इसके नेताओं को १०० फीसदी भरोसा था कि भला मोदी की विराट छवि के आगे कांग्रेस-एनसीपी, यहां तक कि शिव सेना की भी क्या विसात ! लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भाजपा की ही विसात लघु हो गयी।
चुनाव में न भाजपा ने ईमानदारी से सहयोगी शिव सेना के लिए काम किया था, न शिव सेना ने भाजपा के लिए। दोनों अपने बूते ताकतवर बने रहना चाहते थे। और यह एक-दूसरे को कमजोर किये बिना नहीं हो सकता था। दोनों ने इसी लाइन पर काम किया। दोनों का नुक्सान हुआ लेकिन सरकार खोई सिर्फ भाजपा ने। ऊपर से उसके ”ओवर कॉन्फिडेंट” सीएम देवेंद्र फडणवीस ने अपनी वाणी से कसर पूरी कर दी। इस चुनाव और उसकी बाद की परिस्थितियों में यदि भाजपा से ज्यादा किसी ने खोया है, तो वे फडणवीस ही हैं।
खुद उद्धव ठाकरे कुछ देर पहले शरद पवार से मिलने पहुंचे हैं। रिश्तों की नई पटकथा लिखने की तैयारी है। जो ख़बरें छान कर ”तहलका” को मिली हैं, उसके मुताबिक उद्धव ठाकरे या एकनाथ शिंदे में से कोइ मुख्यमंत्री होगा। शिंदे बने तो बड़े ठाकरे की तरह मातो-श्री से राज चलेगा। जैसा बड़े ठाकरे साहब ने मनोहर जोशी को सीएम बनाकर किया था, और बाद में नारायण राणे को बनाकर।
शिव सेना एनडीए से बाहर आ चुकी है। यही कांग्रेस-एनसीपी की उससे सबसे बड़ी शर्त थी। शिव सेना के मंत्री अरविंद सावंत ने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया है और शिव सेना पूरी तरह भाजपा से बाहर आ गयी है। भाजपा ने एनडीए में अपना सबसे पुराना और बड़ा सहयोगी खो दिया है।
यह भाजपा का राजनीति और रणनीति दोनों लिहाज से बहुत बड़ा नुक्सान है। इसे भाजपा की रणनीति की नाकामी कहा जाएगा। हरियाणा में बहुमत न पाकर भी नड्डा-अनुराग की मेहनत से जीपीपी को अपने साथ मिलाकर सरकार बना ली लेकिन महाराष्ट्र में तो उसने अपना बहुत पुराना सहयोगी खो दिया।
हो सकता कांग्रेस इस सरकार को बाहर से समर्थन करे या फिर सरकार में विधायकों के दबाव के चलते शामिल भी हो जाए। लेकिन यह पक्का है कि विधानसभा अध्यक्ष कांग्रेस का होगा। उप मुख्यमंत्री एनसीपी का होगा और गृह विभाग भी शायद उसी के पास होगा। सोनिया गांधी की सरकार को समर्थन की स्वीकृति मिल चुकी है, कांग्रेस की सरकार में कैसी भागीदारी होगी, यह शाम ५-६ बजे पता चलेगा। कांग्रेस और एनसीपी की साझा बैठक शाम ४ बजे के आसपास होनी है।
न्यूनतम साझा कार्यक्रम (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम) बनेगा और उसमें साफ़ तौर पर सरकार के प्राथमिकताएं तय होंगी। इसमें किसानों से लेकर वो तमाम मुद्दे होंगे जो कांग्रेस और एनसीपी भाजपा-शिवसेना की सरकार रहते हुए उठाते रहे हैं।
साफ़ है कि शिव सेना अपने एजंडे को सरकार में सीएम पद पाकर भी पूरी तरह नहीं चला पाएगी। पवार जैसे मझे और समझदार नेता के होते हुए कांग्रेस इस लेकर निश्चिंत भी दिखती है। सच यह कि यह शरद पवार ही हैं जिन्होंने सोनिया गांधी को शिव सेना सरकार के समर्थन के लिए मनाया। सोनिया खुद इसे लेकर उलझन में थीं और समर्थन को लेकर उनके मन में हिचक थी। वैसे पवार चाहते हैं कि कांग्रेस सत्ता में भागीदार बने। कांग्रेस के ज्यादातर विधायक भी यही चाह रखते हैं।
कांग्रेस, जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ इस तरह सरकार चलाने का प्रयोग कर चुकी है। उसे ऐसी सरकार चलाने का ख़ासा अनुभव है। इसलिए शिव सेना कांग्रेस के चौथे बड़े दल होने के बावजूद उसे अपने हिसाब से हांक नहीं पाएगी। कुल मिलाकर नया घटनाक्रम भाजपा के लिए बड़ा झटका है और उसके नेतृत्व के लिए भी, जिसकी यह छवि पिछले सालों में बनी है कि ”वह कुछ कर सकता है।”
चुनाव नतीजों से साफ़ हो गया है कि एक पार्टी या उसके ताकतवर नेता भी नहीं कर सकते यदि जनता अपनी करने पर आ जाए या सहयोगी उससे रिश्ता तोड़ने की ठान लें। हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव नतीजे भाजपा के लिए बड़े सुखद नहीं रहे हैं। और अब महाराष्ट्र में उसका सरकार गंवा देना उसके लिए बड़ी राजनीतिक और रणनीतिक हार के रूप में सामने आया है। भाजपा के लिए यह गंभीर रूप से सोचने का वक्त है !