आपदा –विपदा को अवसर में बदलों और आत्मनिर्भर बनों जैसे जुमलों से बेरोजगार युवा तंग आ चुके है। युवाओं का कहना है कि सरकार की योजनायें तो उन्हीं के लिये है, जो सरकारी सिस्टम में शामिल है। अन्यथा वास्तविकता कुछ और है।
तहलका संवाददाता को युवाओं ने बताया कि इस कोरोनाकाल में आत्मनिर्भर बनने के लिये उन्होंने बैंकों से लोन-कर्ज लिया और अपनी हुनुर के मुताबिक काम भी शुरू किये। किसी ने कोरोनाकाल में सैनेटाइजर, मास्क की दुकान लगाकर तो किसी ने घरों में मास्क बनायें , नये-नये डिजायन के तो ,किसी ने काम आयुर्वेद दवा की दुकान खोली। लेकिन युवाओं के काम –धंधे और आत्मनिर्भ तब पलीता लगा, जब वे सरकारी सिस्टम यानि इंस्पेक्टर सिस्टम से वाकिफ नहीं थे।
सुशील शर्मा का कहना है कि कोरोना काल में लाँकडाउन में उनको सैनेटाइजर और मास्क बेचना बाजारों में तब,तक मुश्किल हुआ जब,तक उन्होंने इंस्पेकटर राज में जो सिस्टम चलता है उसमें चढ़ावा नहीं चढ़ाया है। ऐसे हालात में उनको लाभ कम हानि ज्यादा हुई है।
श्री मति प्रेमलता ने तहलका को बताया कि देश में दिन व दिन अजीब सा माहौल पनप रहा है। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने अपना काम शुरू किया परिजनों को ये मानकर काम-काज में शामिल किया कि कोरोना काल एक बीमारी है। जो सालों साल- चलनी है। ऐसे में मास्को को बाजार से सूती कपड़ा खरीदकर खुद बनाया। लेकिन बाजारों में बेचना मुश्किल हो गया। जो जमा पूंजी थी उसको निकालना मुश्किल हो गया।
दिल्ली के साप्ताहिक बाजार बंद है, दिल्ली में लोगों के पलायन होने से अब बाजारों और गलियों में सन्नाटा है। जिससे उनके आत्मनिर्भर बनने और आपना-विपदा को अवसर में बदलने वाली सोच को पलीता लगा है और आर्थिक नुकसान हुआ है। इसी तरह आयुर्वेद की दवा का काम धंधा मंदा पड़ा है।
मौजूदा हालात में लोगों को कई बुनियादी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। युवाओं का कहना है कि अगर लाँकडाउन और कोरोना महामारी यूं ही चलती रही तो, आर्थिक तंगी के साथ भुखमरी शुरू हो जायेगी।