जब भी प्रेस की स्वतंत्रता को खतरा होता है, तो ज़्यादातर पत्रकार साथी पत्रकारों के बचाव में आते हैं। हालाँकि जब रिपब्लिक टीवी के हाई प्रोफाइल सम्पादक अर्णब गोस्वामी को 2018 में अन्वय नाइक और उनकी माँ को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले मामले में गिरफ्तार किया गया, तो पत्रकार बिरादरी उनकी पत्रकारिता के तौर-तरीकों और हाल में टीआरपी रेटिंग को लेकर उन पर कथित धाँधली के आरोपों के कारण विभाजित दिखी। वास्तव में यह साबित करने के लिए कि उनकी (अर्णब की) पत्रकारिता को जनता पसन्द करती है और विज्ञापनदाता उनके चैनल पर न्यौछावर हैं, अर्णब अक्सर टीआरपी को एक सुबूत के तौर पर अपने हक में पेश करते थे। जब नाइक की पत्नी अक्षता ने एआरजी आउटलायर के अर्णब गोस्वामी, फिरोज़ाबाद के स्काई मीडिया के फिरोज़ शेख और स्मार्ट वर्क के नितेश सारदा के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी और जब इस मामले में गिरफ्तारियाँ हुईं, तो इसे लेकर एक व्यापक जनमत-विभाजन था; जिसमें अधिकतर ने कहा कि यह गिरफ्तारी एक आपराधिक मामले में की गयी है और इसका पत्रकारिता से कुछ लेना-देना नहीं है। जबकि कुछ का कहना है कि अर्णब के खिलाफ मामला राजनीति से प्रेरित है। हाल के दिनों में पत्रकारिता की विश्वसनीयता में गिरावट आयी है। एजेंडा आधारित अभियानों और पत्रकारिता के बीच अन्तर धुँधला गया है।
जैसा कि अपेक्षित था, गोस्वामी ने यह कहने में समय नहीं गँवाया कि उनके खिलाफ एक राजनीतिक मुहिम चल रही है। निश्चित रूप से यह समकालीन पत्रकारिता पर एक दु:खद टिप्पणी है। अर्णब गोस्वामी टेलीविजन पर सबसे चर्चित चेहरों में से एक हैं और काफी राजनीतिक रसूख रखते हैं। उनके लिए जीवन घूमकर वहीं आ गया है और जिस व्यक्ति ने एक साथ जज, वकील और वादी की भूमिका निभाकर कई मौकों पर मीडिया ट्रायल किया, फलस्वरूप पत्रकारिता की संस्था को नुकसान पहुँचाया; अब वही खुद प्रेस विशेषाधिकार की स्वतंत्रता के तहत आश्रय लेना चाहता है।
दरअसल पत्रकार की गिरफ्तारी गलत है; क्योंकि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति का रास्ता खोलती है। कोई भी व्यक्ति किसी के पत्रकारिता के तरीके से सहमत या असहमत हो सकता है; उसे पसन्द या नापसन्द कर सकता है; लेकिन राज्य को स्थापित कानून के अनुसार काम करना चाहिए। पत्रकार को तलब किया जा सकता है। अर्णब से भी कथित शारीरिक ज़ोर-जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए थी। संविधान के अनुच्छेद-19 (1)(ए) में प्रेस की स्वतंत्रता का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है और जो उल्लेख किया गया है, वह केवल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर है। संविधान सभा की बहसों में मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. अंबेडकर द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि किसी व्यक्ति या नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रेस की तरह ही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्णब मामले में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी किया है; जबकि कई मंत्रियों ने इस कार्रवाई की निन्दा की है।
ज़िम्मेदार प्रेस की भूमिका समाज के पहरेदार के रूप में काम करने की है और ऐसे नैतिक मानदंड हैं, जिनका मीडिया को पालन करना चाहिए। हाल के दिनों में पत्रकारिता की विश्वसनीयता में कमी आयी है। पत्रकारिता व्यक्तिपरक एजेंडा, अभियानों और जनहित-यथार्थ की पत्रकारिता के बीच बँट गयी है। इस पत्रकार की गिरफ्तारी से हमें आत्मचिन्तन करना चाहिए और सच्चाई व जनहित की पत्रकारिता करनी चाहिए, जो स्वतंत्र, स्पष्ट और निर्भीक हो। ‘तहलका’ हमेशा ऐसी पत्रकारिता का प्रहरी रहा है।