भारत को आज़ाद हुए 77 साल हो चुके हैं। लेकिन कई तरह की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समस्याओं से देश आज भी जूझ रहा है। इनमें से सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद की है। आतंकवाद के चलते भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ जैसे महत्त्वपूर्ण इलाक़े में दहशत बनी रहती है। हाल की आतंकी घटनाओं ने एक बार फिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भारत की इस घाटी को दहला दिया है। केंद्र में एनडीए की तीसरी बार सरकार बनने के बाद से 78 दिनों में ही 11 आतंकी हमले तो सिर्फ़ जम्मू में हुए। इसके बाद कई और आतंकी हमले हुए हैं।
भले ही पाकिस्तान की सीमा पर जम्मू-कश्मीर में तैनात भारतीय सैनिक आतंकवादियों का सफ़ाया कर रहे हैं; लेकिन कई भारतीय सैनिक इन आतंकी हमलों में शहीद हो चुके हैं और कई नागरिक निशाना बन चुके हैं। इसके बाद भी केंद्र सरकार इन हमलों पर चिन्तित होने से ज़्यादा अपने 10 साल के शासन-काल की आंतकी घटनाओं की तुलना यूपीए सरकार के 10 साल के शासन-काल की आतंकी घटनाओं से कर रही है। राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बड़ी बेशर्मी से कहा कि उनकी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल की अपेक्षा 68 प्रतिशत कम आतंकी हमले हुए हैं। इससे यह ज़ाहिर होता है कि मौज़ूदा केंद्र सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को कोसने से बाज़ नहीं आने वाली। राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद ने कितने गर्व से कहा कि मोदी सरकार आने के बाद साल 2014 से 21 जुलाई, 2024 के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएँ घटकर 2,259 रह गयीं। यूपीए सरकार के मुक़ाबले मोदी सरकार में आतंकी घटनाओं में 68 प्रतिशत कमी आयी है। उन्हें सोचना चाहिए कि कई बार आतंकवाद को ख़त्म करने का दावा और वादा करने वाली भाजपा तीसरी बार केंद्र में आने पर भी आतंकवाद ख़त्म नहीं कर सकी। फिर किस मुँह से अपनी प्रशंसा कर रही है? क्या नोटबंदी के दौरान, सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान, अनुच्छेद-370 हटाने का दावा करने के दौरान और चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे बड़े भाजपा नेताओं ने आंतकवाद को जड़ से ख़त्म करने के दावे नहीं किये थे? क्या उनके दावों और वादों के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले रुके?
अगर प्रधानमंत्री मोदी के अब तक के कार्यकाल के दौरान की बालाकोट और पुलवामा जैसी बड़ी आतंकी घटनाओं को ही देखें, तो इनकी संख्या लगभग तीन दज़र्न है। ख़ुद गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी यह मान चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के 10 साल के शासन-काल में 21 जुलाई, 2024 तक 2,259 आतंकी हमले हुए। फिर यह बेशर्मी कैसी कि हमारी सरकार में आतंकी घटनाएँ कम हुई हैं?
देश की जनता एक तरफ़ पाकिस्तान नियोजित आतंकवाद से पीड़ित है, तो दूसरी तरफ़ आंतरिक आतंक से परेशान है। पाकिस्तानी आतंकवाद कुछ देशद्रोहियों की देन है, तो आंतरिक आतंक भी भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की देन है। बाहरी आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर देश-सेवा में लगे भारतीय जवान अपने घरों से दूर रहकर रात-दिन देश और देशवासियों की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। लेकिन आंतरिक आतंक से जनता को बचाने के लिए ले-देकर पुलिस ही है, जिसके हाथ ज़्यादातर मौ$कों पर बँधे रहते हैं। ज़्यादातर मामलों में पुलिस अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के बारे में सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाती। यही वजह है कि पुलिस में भी भ्रष्टाचारियों की संख्या काफ़ी है। राजनीतिक और पूँजीवाद के दबाव में काम करने को मजबूर पुलिस के कई जवान ऊपर के भ्रष्टाचार को सींचने के लिए इतने मजबूर किये जाते हैं कि अगर वे उन ग़ैर-क़ानूनी आदेशों को न मानें, तो उनकी नौकरी नहीं बचेगी। यह भी हो सकता है कि ईमानदारी का नतीजा उन्हें सज़ा के रूप में भुगतना पड़े। आज़ाद भारत में कई ईमानदार पुलिकर्मियों का अंजाम काफ़ी बुरा देखा भी गया है। फिर भी लाखों पुलिसकर्मी आज भी अपने ज़मीर का सौदा नहीं करते हैं और ज़िन्दगी भर ईमानदारी से जन-सेवा करते हैं। यह अलग बात है कि इसके बदले उन्हें बार-बार तंग किया जाता है। उनकी उन्नति रोक दी जाती है। कई बार उन्हें ईमानदारी के इनाम में अवनति मिलती है।
लेकिन जनता क्या करे? उसे कभी कोई भ्रष्टाचारी अपने लालच का शिकार बनाता है, तो कभी कोई अपराधी अपने ग़ुस्से का शिकार बना डालता है। कभी राजनीतिक बहकावे में आकर मूर्खों की भीड़ किसी को पीट देती है; किसी की हत्या कर देती है; तो कभी क़ानून के रखवाले ही उसे अपना शिकार बना लेते हैं। सबसे ज़्यादा शिकार निर्धन और मध्यम वर्ग का होता है। इन वर्गों में भी महिलाएँ सबसे आसान शिकार हैं। यह आंतरिक आतंकवाद हर दिन देश में लाखों लोगों की ज़िन्दगी बर्बाद कर रहा है। दज़र्नों समस्याएँ इस आंतरिक आतंकवाद की देन हैं। इस आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले इतने मज़बूत हैं कि चाहकर भी उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सरकार इन दोनों तरह के आतंकवाद से आख़िर कब निपटेगी?